Photo by Timur Weber: pexels

निकले जो तीव्र गति से शब्दों के अंगारे,
बना प्रश्न का गुच्छ, मन द्वंद्व में उलझा,
सजा कुरुक्षेत्र, अब होगा रण भीषण,
बहेगी शोणित धारा, जीवन होगा निर्जन।।

बिछा हैं चौसर, फिर से चलेंगे छल के पाँसे,
आकर आमने-सामने बनेंगे खून के प्यासे,
हलचल होगा युद्ध भूमि में, वाणों की वर्षा से,
मानक नियम उलझेगा, जीवन होगा निर्जन।।

द्वेष हृदय में, कुंठित हो आकार जो लेगा,
गलती का दोहराव वह बारंबार करेगा,
जो उसका है नहीं, उसका अधिकार कहेगा'
बन कौरव का दल बल, ठानेगा रण भीषण।।

शब्दों के अंगारे जो, करने को भस्मीभूत,
सूचक हैं अहंकार का, वार करेगा निश्चित,
मानवता के गुण ध्येय का संहार करेगा निश्चित,
जो आग लगेगा तीव्र, जलेगा जीवन उपवन।।

जो कुछ समय बिंदु पर अघटित हुआ अभी,
प्रचंड वेग से शब्दों के अंगारे बढ़ चुके हैं आगे,
हो सकता हैं अब ये विष बुझे वाण को दागे,
जो होगा ऐसा, दारुण करुणा का होगा वो क्षण।।

अभी-अभी जो हुआ, निकल पड़ा क्रोध के द्वारा,
शब्दों ने लिया विकट रूप, बन चुका तीव्र अंगारा,
ताड़-ताड़ हो चुकी मर्यादा, दोष स्वार्थ का सारा,
फिर तो होगा अब रण, अमर्यादित अति भीषण।।

.    .    .

Discus