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ओ मन चल अब नया कुछ करें,
बसाएँ प्रेम-रस भीना-भीना शहर,
जहां गैर ना हो कोई, हो अपने सभी,
जहां रिश्तों में भीगा हो सपनों का घर।।

ओ मन चल अब नया कुछ करें,
लगाए प्रेम के भीने फूल खुशबू भरे,
ऐसा बाग हो जिसमें कोई ना डरे,
देखे जहां हर कोई प्रेम भरकर नजर।।

ओ मन चल अब नया कुछ करें,
लिखने लगे प्रेम के मीठे-मीठे बोल,
भाव का तरंग-रस मिश्री संग घोल,
ऐसा भाव जगे जिसका हो नूतन लहर।।

ओ मन चल अब नया कुछ करें,
रिश्तों के धागे में डाले ना गांठ अब,
परस्पर का स्नेह बिके नहीं हाट अब,
ऐसा न करें काम, जिसका गहरा हो असर।।

ओ मन चल अब नया कुछ करें,
छल भरी बातों को करें दरकिनार,
मानक गुणों से करें खुद का श्रृंगार,
बने मानव फिर से, छोड़ द्वेष का जहर।।

ओ मन चल अब नया कुछ करें,
अंतर के अहं का करें सही से निदान,
अपनो के बीच छोड़े करना अपना बखान,
जीवन के आंगन में, जीवन को बांहों में भर।।

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