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आज देश में आम चुनाव हो रहा हैं, जिसका नतीजा भी कुल दो सप्ताह के बाद आ जाएगा। लेकिन, इस चुनावी मौसम ने अनेकों सवाल खड़े कर दिए हैं।

हां, आज की राजनीति का प्रारुप कुछ बदला-बदला सा लगने-लगा हैं, अथवा तो कह सकते हैं कि” पूरी तरह से ही बदल गया हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि आज की परिस्थिति कह रही हैं। हां, राजनीति में आज-कल जो बदलाव हो रहा हैं, अथवा हो चुका हैं, एक तरह से भयभीत करने बाला हैं।

क्योंकि” अब राजनीति में जन-मन की बातों से ज्यादा दो विचारधारा की लड़ाई ने जगह ले लिया हैं। जी हां, आज देश में वाम-पंथ और दक्षिण-पंथ नाम के दो ध्रुव-केंद्र बन चुका हैं राजनीति का और दोनों ओर ही का नेतृत्व अपनी पूरी शक्ति लगा रहा हैं अपनी विचारधारा को जन-मानस तक पहुंचाने के लिए।

वैसे भी, विश्व के सभी देशों की, जहां पर लोकतंत्र हैं, कमोवेश यही स्थिति हैं। ऐसे में मानवता का मानदंड कही कोने में पड़ा हुआ सिसक रहा हैं। लेकिन, इन बातों से इन विचारधारा के ध्वजा वाहकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने बाला। क्योंकि” दोनों तरफ के ही प्रतिनिधि इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि” बड़ी मछलियां छोटी मछली को खा जाया करती हैं।

हां, यह सत्य हैं कि” बड़ी मछलियां छोटी मछली को खा जाती हैं। लेकिन’ यह तो प्रकृति का नियम हैं, जो उसने पारिस्थितिक -तंत्र को नियंत्रित करने के लिए बनाया हुआ हैं। ऐसे में इन नियमों को हम अपने ऊपर अथवा तो, अपने प्रतिद्वंद्वी पर नहीं लाद सकते। परंतु….अफसोस कि” ऐसा ही हो रहा हैं, जो मानव सभ्यता के लिए विनाशकारी हथियार का रुप ले रहा हैं।

अब जो बात यहां तक पहुंच ही गई हैं, तो समझना जरूरी हैं कि” वाम-पंथ और दक्षिण-पंथ हैं क्या चीज?...जी हां, यह हमारे लिए समझना जरूरी हो जाता है, तभी तो हम और आप पक्ष और विपक्ष के मन में पलते हुए मंसूबों को समझ सकेंगे। उसमें भी अभी चुनावी मौसम चल रहा हैं, तो इस बात को समझने और गंभीरता से दोनों के बीच के अंतर को आंकने की जरूरत हैं।

तो’ सब से पहले बात करते हैं वाम पंथ की, जो कि” राष्ट्र प्रेम से बहुत दूर हैं। यह व्यक्ति-वादी संस्था का प्रारुप हैं, जो लुट-खसोट का समर्थन करता हैं। यह जन-हित की जगह पर व्यक्ति-हित को प्राथमिकता देता हैं। यह शक्ति को एक ही केंद्र में रखने का पोषक हैं। साथ ही यह ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने का अधिकार भी रखता हैं। वैसे तो, यह जनता के हितों की बात करता हैं, परंतु….जहां पर भी यह हावी हैं, जन-मानस के मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया हैं। वैसे भी इसकी और भी बहुत खूबियां हैं, जैसे कि” बीना बात के भी रक्तपात कर देना, साथ ही और भी बहुत कुछ।

ठीक इसके उलट दक्षिण पंथ हैं, जिसके केटलाँग में राष्ट्र प्रथम हैं। साथ ही यह ईश्वर की सत्ता में खासा विश्वास रखता हैं। इसकी और भी बहुत खूबियां हैं, जैसे कि” धर्म की ध्वजा को थामना, नैतिकता के स्थापना के लिए संघर्ष-रत रहना और अपने विरासत को संभालना और भी बहुत कुछ। लेकिन” अपने सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए रक्त-प्रपात करने में यह भी विचारधारा पीछे नहीं हैं।

उसमें भी आज का समय आधुनिक बन गया हैं, या कहें कि” अतिशय आधुनिक। आज चंद मिनट में किसी बातों को इतना तूल दे दिया जाता हैं कि” सच झूठ और झूठ सच लगने लगता हैं और ऐसा सब-कुछ संभव हो रहा हैं टेक्नोलाँजी के कारण, जिसको मानव हितों के लिए विकसित किया गया।

लेकिन” चर्चा का विषय यह नहीं हैं, चर्चा का विषय हैं पक्ष और विपक्ष की विचार धारा। जी हां, आज जहां विपक्ष को समझने की जरूरत हैं कि” वाम-पंथ से आज-तक किसी का भला नहीं हो सका हैं। हां, वाम-पंथ ने आज-तक राष्ट्र को तोड़ने का ही काम किया हैं। वहीं पर दक्षिण पंथ को भी समझना चाहिए कि” विचार-धारा की स्थापना के लिए नैतिक मूल्यों का हनन नहीं हो।

ऐसे में पक्ष और विपक्ष, दोनों मिल कर बीच का रास्ता निकालें और राजनीति को एक नया रूप दे। जो राष्ट्र प्रेम से पोषित हो, धर्म का संवाहक हो, राजनीति का शिखर हो और नैतिक मूल्यों का संरक्षक हो। जी हां, जिस दिन ऐसा हो गया, चुनावी मौसम को सार्थक माना जाएगा।

वैसे भी, आज-कल चुनावी मौसम अपने पूरे उफान पर हैं और दोनों ही विचारधारा विजयी होने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत हैं। साथ ही जनमानस ने अपना निर्णय भी कुछ हद तक ई. वी. एम. में कैद कर दिया हैं। साथ ही अभी भी जनमानस लोकतंत्र के इस महान पर्व को मनाने में जुटी हुई हैं।

हां, यह जनमत का समय हैं और जनमानस के लिए दायित्वों का भी मौसम हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता हैं, जनमानस अपने वोट का प्रयोग वर्तमान-भविष्य, राष्ट्र और धर्म, इन सभी बातों का मूल्यांकन करने के बाद करें। परंतु….अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें।

क्योंकि’ कुछ वर्षों से मतदान प्रतिशत में गिरावट को दर्ज किया गया हैं, जो स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कतई भी हितकर नहीं हो सकता। ऐसे हम और आप, पक्ष और विपक्ष के सार्थक गुण-दोषों का तटस्थ होकर मूल्यांकन करें और जो प्रतिनिधित्व सही लगे, उसके पक्ष में मतदान अवश्य करें। क्योंकि” यही हमारा और आपका नैतिक दायित्व हैं।

ऐसे में जनमानस के कर्तव्यों का निर्वहन क्यों नहीं किया जाए?....इसका कोई सार्थक उत्तर नहीं होगा किसी के पास, तो फिर अन्य समय पर सक्रियता दिखाने बाला जन-समूह “चुनावी मौसम” में इतना उदासीन क्यों हों?...जी हां, हम और आप आज संकल्प लेते हैं, अपने वोट का प्रयोग अवश्य करेंगे।

चलते-चलते फिर कभी…

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