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पथ का हो कैसा सजग विवेक?
हे पथिक' उत्तर का अनुमोदन कर देते।
कहीं भ्रांतियां बनी हुई जो, संशोधन कर देते।
हे पथिक धैर्य का वाहक बन संबोधन कर देते।
चमत्कार उपमानों से अलग' कर लेते संवाद।
जीवन पुष्प फिर खिल उठता, टल जाता विवाद।।

माना' अभी निशा प्रहर है' है अंधकार बाकी।
जीवन को महकाने को आए नव प्रकाश झांकी।
तुम सहर्ष सत्य की बातों को अनुमोदित कर देते।
जो ठना रार था कब से, उसका परिशोधन कर देते।
तुम ढृढता का दामन थाम जो लेते, टलता व्यर्थ प्रमाद।
जीवन पुष्प फिर खिल उठता, टल जाता विवाद।।

मानक बिंदु पर' पुनीत धैर्य का बल दिखलाते।
उठा प्रश्न जो वृत लिए, उत्तर तो सही बतलाते।
तुम भी पथिक हो' पथ पर जीवन से स्नेह लगाते।
विस्मय का संग छोड़ प्रिय, तुम पुनीत हो जाते।
तेरा संबोधन होता सत्या लिए, तुमुल के स्वर निनाद।
जीवन पुष्प फिर खिल उठता, टल जाता विवाद।।

सहज भाव-भंगिमा से बतलाते अपना ध्येय।
मानव हो, मानक बिंदु पर, इतना ध्यान तुम्हें है।
नवनीत से कोमल बन जाओगे, इतना अनुमान तुम्हें है।
जीवन पथ पर होता सप्तपदी, इसका ज्ञान तुम्हें है।
अब तक जो कटु बना हुआ था, मिटता प्रबल विषाद।
जीवन पुष्प फिर खिल जाता, टल जाता विवाद।।

पथ पर फैलाव कांटों का, चुभने का भय भी है।
तुम निर्धारित कर देते, पक्ष विवेक का लेकर।
नियम की सीमा से अलग, समता को बल देकर।
विस्मय सागर अति अगाध, नाव ले आते खे कर।
बीती बातों के दुस्तर समूह को, तुम कर देते जो बाद।
जीवन पुष्प फिर खिल जाता, टल जाता विवाद।।

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