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प्रिय" ढ़ूंढ़ें से तुम मिल जाते जो,
इन नयनों से नयन मिलाते जो,
प्यासे मन के मिलने की तड़प मिटाते जो,
सच मैं प्यासा हूं रस-प्रेम सुधा का,
प्रिय" तुम आकर धीर धराते जो,
पलकें प्यासी हैं, अपनी छवि दिखाते जो।।

मन तेरे प्यार में बना पागल पंछी सा,
ढ़ूंढ़ा करें प्रिय तुमको नित उपवन में,
ढ़ूंढ़ें बनकर व्याकुल नैना तुमको ही निर्जन में,
मिलो न तुम जो व्याकुलता से भर आए नीर नयन में,
तुम जो मेरा स्नेह लिए, आकर के लौटाते जो,
पलकें प्यासी हैं, अपनी छवि दिखाते जो।।

मैं प्रेमी हूं प्रेम नगर में, भटकूँ गलियों में,
तुम बिन अब सच में भाव-शून्य हो जाऊँगा,
जीवन के कदमों में सच कहीं दूर खो जाऊँगा,
तुम जो रुठे से हो, बात समझ नहीं पाऊँगा,
तुम ही हो सपनों में मेरे, आकर पास सताते जो,
पलकें प्यासी हैं, अपनी छवि दिखाते जो।।

मैं प्रेमी हूं, चाहत के बंधन में तुम से बंधा हुआ हूं,
चाहत की पगडंडी पर तुम संग साथ चलूंगा,
सही कहूं तो प्रिय, थामे हुए तेरा हाथ चलूंगा,
तुम जो मन में हो मेरे, ले सपनों की बारात चलूंगा,
मन प्रेम सुधा का प्यासा, तुम आकर तृप्त कराते जो,
पलकें प्यासी हैं, अपनी छवि दिखाते जो।।

तुम आ जाते जो, मेरा जीवन पूर्ण हो जाता,
तुम संग सतरंगी आभा में भाव संपूर्ण हो जाता,
तुम आ जाते जो, व्याकुलता मन की मिट जाती,
मैं फिर धन्य-धन्य हो जाता, जीवन परिपूर्ण हो जाता,
तुम भावों के रंग लिए मुझपर भरकर छलकाते जो,
पलकें प्यासी हैं, अपनी छवि दिखाते जो।।

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