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हमारे चारों ओर संसार रस से भरा हुआ हैं। वे रस, जो हमारे लिए उपयोगी हैं, जो हमारे जीवन को सुचारु रुप से चलाने में सहायता करते हैं, साथ ही हमारी भावनाओं को तरंग प्रदान करते हैं। सच, रस के बिना किसी भी जीव की, वस्तु की अथवा तो सुख की कामना बिना रस के संभव नहीं।

जीवन का आनंद ही रस के अनुभूति से हैं और बिना इसके कुछ भी कल्पना नहीं किया जा सकता। मतलब साफ हैं, अगर आनंद रूपी खजाने से जीवन के पल को संवारना हैं, तो हमें रसानुभूति का लहाव लेना ही पड़ेगा। जीवन के उस तथ्यपरक बोध को प्राप्त करने के लिए हमें रस रूपी सागर में गोते लगाना ही पड़ेगा। तभी हम सही अर्थों में जीवन जीने का महतम आनंद उठाने में सफल हो पाएंगे।

इससे मतलब कि” हमारे आस-पास जो जीव जगत हैं, जो चैतन्य हैं, उसके स्पंदन को महसूस करना, यथा संभव उनका मददगार होना और उनके द्वारा किए जा रहे कृयाकलापों का अवलोकन करना। यह कुछ ऐसे कार्य हैं, जो हमारे मन को सुखद अनुभूति करवा सकते हैं। साथ ही वैचारिक दृष्टिकोण से हमारे अंदर कई तरह के बदलाव भी ला सकते हैं। जिसके बाद हमें लगने लगेगा कि” जीना इसी का नाम हैं और इसकी ही आवश्यकता हमें थी। बस’ एक बार प्रयोग करने की जरूरत भर हैं, उसके बाद सभी चीजें सार्थक लगने लगेगा।

हां, क्योंकि जीवन भी तो एक रस ही हैं, जो सदा ही प्रवाहित होता रहता हैं। निरंतर ही गतिमान बना रहता हैं और इसकी सहायता के लिए, इसके प्रवाह को सरल रूप से गतिमान रखने के लिए ही तो प्रकृति ने तरह-तरह के रस की रचना की हैं। वो रस, जो भोजन के रुप में हम प्राप्त करते हैं और यही रस हमारे शरीर में जाने के बाद उर्जा के रुप में परिवर्तित होकर हमें आनंद और गतिमान रहने के लिए बल प्रदान करता हैं।

यह संसार, जो कौतूहल से भरा हुआ हैं, इसमें श्रृंगार रस, माधुर्य रस, हास्य रस, वीर रस और भी अनेकानेक रस, जो कि” अपने-अपने गुण धर्म में श्रेष्ठ हैं, भरे हुए हैं। ऐसे में आवश्यकता हैं कि” हम अपने अंदर के अहं का त्याग कर के समय के अनुकूल रसो का उपयोग करें और जीवन को सार्थक बनाए। अन्यथा तो, सिर्फ अनुकूल-प्रतिकूल के भंवर में फंसेंगे, तो कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।

मतलब कि” जब मन में इच्छा जागृत हो जाए कि” हमें फलानी वस्तु खानी हैं, बस उस भावना को दबाइए नहीं और सामर्थ्य के अनुसार उस वस्तु का सेवन कीजिए। हां, कुछ पल के लिए भूल जाइए कि” मेरे बाद भी और कई हैं। हां, माना कि” जिम्मेदारी बरी चीज हैं, लेकिन’ कुछ पल, कुछ कमाई अपने ऊपर भी खर्च करिए। क्योंकि समय का पता नहीं, कल वह स्वाद आपके स्वस्थ के अनुकूल हो या नहीं।

इसी तरह श्रृंगार रस के लिए भी मन से उन्मुक्त रहिए। मतलब, जो सौंदर्य हैं, उसको देखने से खुद को रोकिए मत। हां, इतना जरूर ध्यान रखिए कि” आपका इरादा मलिन न हो। बस, जी भरकर सौंदर्य का पान करिए और यदि जीवन संगिनी हैं, तो मुक्त मन से उनके सौंदर्य का बखान करिए,उन्हें अपने मन के भावनाओं से अवगत करवाइए। सच कहूं, इसके बाद आपका जीवन सुगंध की तरह खिल उठेगा। हां, आपको लगने लगेगा कि” जीना इसी का नाम होता हैं।

इसी तरह जीवन में हास्य रस की उपयोगिता और उसका महत्व हैं। यहां तक कि” सुखी और स्वस्थ जीवन जीने की चाबी ही हास्य रस हैं। जब मन उन्मुक्त होकर हंसता हैं न, तो शरीर में कई तरह के सकारात्मक हार्मोंस का स्राव होता हैं, जो हमारे तन-मन को फुर्ती प्रदान करता हैं। इसलिए तो कहता हूं, जब भी मौका मिले, खुलकर हंस दीजिए, मुस्करा दीजिए। हां, एक पल के लिए भूल जाइए कि” कुछ पल पहले तक आप तो सीरियस थे। बस हंसिए और हंसाइए, सच कहता हूं, टेंशन आपसे कोसो दूर भागेगा।

इसी तरह माधुर्य रस भी हैं। हां, आप भाव और स्वभाव दोनों से ही विनम्र बने रहिए। खासकर रिश्तों और अपनो के बीच। आप उनके छोटे-मोटे गलतियों को नजर अंदाज करके चलिए और यथा संभव उनकी जरूरतों, उनकी भावनाओं का कद्र करिए। उनके साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश करिए और जरूरत पड़ने पर कुछ पल के लिए छोटा भी बन जाइए। सच कहूं तो, इन छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखने से आपके जो रिश्तों के बीच जो तनाव हैं न, कुछ हद तक समाप्त हो जाएंगे, जिससे आपको सभी कुछ सकारात्मक लगने लगेगा।

और हां, वीर रस की भी जानकारी आपको होनी चाहिए। आप अपने अधिकारों और अपने स्वाभिमान के प्रति हमेशा सचेष्ट रहें। जहां आपको लगे कि” कुछ गलत हो रहा हैं, अथवा तो आपके स्वाभिमान पर प्रहार हो रहा हैं, क्रुद्ध हो जाइए। इतना ही नहीं, अपनी आपत्ति दर्ज करवाइए और अगले को गलती स्वीकार करने के लिए विवश कीजिए, यह आपका धर्म हैं।

सच’ इन तमाम रसो का सम्यक रूप से पालन करने और उसको अपने जीवन में उतार लेने के बाद आपको जीवन बहुत ही आनंद दायक लगेगा। कल तक जो आप तनाव में जीते थे न, वह तनाव गायब हो जाएगा और आप जीवन के पथ पर अनुकूल गति से खुद को आगे बढते हुए पाएंगे।

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