आज समय की पगडंडी पर उलझन की पौं-बारह हैं,
जीवन के हलचल में देखो गजब खेल की धारा हैं,
मानवता आज कहीं धूल फांकती, ऐसा बना नजारा हैं,
हलचल हैं जो प्रति-पल, कौरव का सजा अखाड़ा हैं।।
आज झूठ बोलने बाले सार्थकता के बोधक हैं,
अनुशासन का वो डींग हांकते जीवन के अवरोधक हैं,
ऐसा अजब-गजब हुआ आज, दुर्लभ बना नजारा हैं,
हलचल ही तो हो रहा यहां, कौरव का सजा अखाड़ा हैं।।
आज जो सामर्थ्य-वान हैं, वही गुणों की खान हैं,
छल के बल के द्योतक को अब मिलता सम्मान हैं,
जो कहने में निपुण, उसका ही लगता जय-कारा हैं,
हलचल ही तो हैं भाई, यहां कौरव का सजा अखाड़ा हैं।।
जो नीति के अवरोधक हैं, वही आज तत्व के बोधक हैं,
हानि-लाभ से पड़े वह जो निजता के संशोधक हैं,
जो कहने में बलशाली यह दुनिया का राज हमारा हैं,
उसका ही होता हैं जय, यहां कौरव का सजा अखाड़ा हैं।।
आज समय के पगडंडी पर अपनी-अपनी चलती हैं,
स्वार्थ की रोटी खाने में दुनिया अब धूं-धूं कर जलती हैं,
अपना हित करने को ही अब बनता जाता नारा हैं,
अपना लाभ मिले तो जय, कौरव का सजा अखाड़ा हैं।।
अब जो प्रतिवादी हैं, छल-बल के नींव बुनियादी हैं,
कर्तव्य बोध से पड़े अब लाभ की आशा में आबादी हैं,
नाहक ही तो कहने वाले हैं, मानव धर्म विचारा हैं,
अपना भला बस करना हैं, कौरव का सजा अखाड़ा हैं।।