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परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम हैं। इस संसार में ऐसी कोई भी चीज ऐसा नहीं हैं, जो समय के इस बदलाव से अछूता हो। लेकिन बात इस बात को लेकर नहीं हैं कि” समय हमेशा परिवर्तित होता रहता हैं और बीतते समय के साथ ही हमारे आसपास की तमाम वस्तुएँ-होते हुए घटनाक्रम भी बदल जाते हैं। इसके साथ ही बदल जाता हैं हमारे मन में उत्पन्न होता हुआ विचार और उससे प्रभावित होती हुई परिस्थितियां। हां, यह कालचक्र हैं, जो निरंतर ही गति करता रहता हैं और अपने साथ ही पूरे सृष्टि को गतिमान किए रहता हैं, एक निर्धारित मानक धुरी पर, जो प्रकृति द्वारा नियंत्रित होता हैं।

परंतु… हम इसकी तो बात ही नहीं कर रहे, हम तो बात करना चाहते हैं सकारात्मकता और नकारात्मकता का, क्योंकि’ ये जो दो शब्द हैं न, अतिशय ही प्रभावी हैं। हां, समयानुकूल परिवर्तन अगर सकारात्मक हुआ, तो वह सार्थक परिणाम देगा। हमारे अंदर जीने के लिए उत्साह का संचरण करेगा। हमारे लिए इस तरह के पथ का निर्माण करेगा, जिसपर आगे बढ़कर हम अपना और आने वाली पीढ़ी का जीवन संवार सके। हम उन प्रयासों, उन कर्तव्यों का संपादन कर सके, जो आगे जाकर किसी के लिए प्रेरणा श्रोत बन जाए, किसी को भी उस आचरण पथ पर चलने के लिए प्रेरित करें।

लेकिन’ अगर बदलाव नकारात्मक हुआ तो?....यह प्रश्न उलझे हुए धागाओं की तरह ही उलझा हुआ हैं। हां, आज जिस तरह से परिवर्तन के एक नए दौड़ ने जोड़ पकड़ा हैं, उसने अनेकों प्रकार के आशंकाओं को जन्म दिया हैं। जी हां, आज समाज, राष्ट्र और व्यापक विश्व में बाजार-वाद ने अपना पंजा जमा लिया हैं, या यू् कह सकते हैं कि” आज पूरी मानव सभ्यता ही बाजार-वाद के शक्तिशाली पंजे में फंस चुकी हैं और लाचार हैं। फिर तो इन बातों से इनकार नहीं किया जा सकता कि” बाजार-वाद औपनिवेसिक साम्राज्यवाद का ही एक स्वरूप हैं। तो फिर इससे इनकार कैसे किया जा सकता हैं कि” बाजार-वाद के मांधाता अपने हित की अनदेखी कभी नहीं होने देना चाहेंगे, वे अपने हितों के सुरक्षा के लिए यत्नशील रहेंगे।

बस, सारी समस्याएँ यही से शुरु होती हैं। आज जिस तरह से आधुनिकता का नया दौर शुरु हुआ हैं, उसने निश्चित ही हमारे जीवन को सुगम बना दिया हैं। हां, आधुनिक-करण की इस तीव्र लहर ने मानव जीवन को सिरे से ही बदल दिया हैं। आज मानव सारे सुख- सुविधाओं से लैस हो चुका हैं, या यूं कहें कि" पूरी दुनिया ही उसकी अंगुली पर आ गई हैं।

लेकिन, इस आधुनिक-क्रांति से मानव को लाभ कम और हानि ज्यादा होता हुआ प्रतीत हो रहा हैं और इस बात को हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं। हम अपने आस-पास होते हुए गतिविधियों में होते हुए व्यापक बदलाव को अपने नग्न आँखों से देख रहे हैं और महसूस कर रहे हैं कि” यह समयानुकूल परिवर्तन नहीं हैं। क्योंकि’ समयानुकूल परिवर्तन तो जीवन केंद्र की शक्तियां नियंत्रित करती हैं, जिसे हम प्रकृति कहते हैं।

लेकिन’ आज का बदलाव सिर्फ और सिर्फ अपने हितों को साधने के लिए, अपने लाभ की गणना बढ़ाने के लिए हो रहा हैं। जिस कारण से मानव सभ्यता के हितों को आँख बंद कर के अनदेखी किया जा हा हैं। हां, मैं इन बातों को ऐसे ही नहीं कह रहा, आप भी कोशिश करें, तो अपने आस-पास हो रहे बदलाव को देखकर इस बात को महसूस कर सकते हैं।

हां, आज जिस तरह से हताशा और निराशा का साम्राज्य निर्मित हो रहा हैं और इसके चंगुल में मानव सभ्यता, खासकर युवा जिस तरह से जकड़ते जा रहे हैं, वह खतरे की घंटी के समान हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा, अभी भी समय हैं, संभल जाए, नहीं तो बाद में पछताने का अवसर भी नहीं मिले शायद।

हां, आज समाज में रिश्तों और आपसी संवाद की जगह आधुनिक उपकरणों ने ले लिया हैं। साथ ही, आज बदलाव के साथ ही व्यक्ति अपने चरित्र और व्यक्तित्व को निखारने की जगह कृत्रिम संसाधनों के द्वारा अपने चेहरे को निखारने में लगा हुआ हैं। इतना ही नहीं, भोजन मैनर्स को निखारने के लिए आंनलाइन सर्च करने में जुटा हुआ हैं। साथ ही रिश्तों में व्यवहार की बातों को भी वह इन बाजार-वाद से ही सीखना चाहता हैं। बस, हमें यही तो समझना हैं कि” हम बदलाव की ओर अग्रसर हैं, या गलती पर गलती करते जा रहे हैं, जो आखिर में ले जाकर मानव सभ्यता को पतन के गर्त में धकेल देगा।

जी हां, चेत जाने का अवसर अभी भी हैं। वैसे भी, होते हुए इस कृत्रिम बदलाव के प्रभाव को हम अपने आस-पास नित्य ही देख रहे हैं। जैसे लिव इन रिलेशनशिप का बढ़ता हुआ ग्राफ और इससे उत्पन्न होती हुई समस्या, युवाओं में उत्पन्न होता हुआ मानसिक दबाव और रिश्तों के प्रति उदासीनता और सामाजिक संबंधों में उत्पन्न होता हुआ गैप, जो बाद में खाई का रुप ले लेगा।

बस’ हमें सचेत होना हैं और होते हुए परिवर्तन को समझना हैं। साथ ही हमें इसके प्रभाव से बचने के उपायों को ढ़ूंढ़ना होगा और उन उपायों के द्वारा अपना और अपने आने वाली पीढ़ी को संरक्षित करना होगा। अन्यथा तो’ विकास के इस अंधे दौड़ के आगे बियाबान घने अंधेरे का साम्राज्य हैं, जहां सब कुछ खतम हो जाएगा। जिसका उदाहरण भी हैं। हां, अनेकों विकसित मानव सभ्यताएँ हैं, जो विकास के गति को नियंत्रित नहीं कर सकी और काल के गाल में समा गई।

चलते-चलते फिर कभी...

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