विचार के जीवंत प्रवाह के द्वारा मानव अपने व्यक्तित्व का सुंदर और आकर्षक निर्माण कर सकता हैं। जहां से सफलता, जीवंतता, श्रेष्ठता और मानवता के शिखर तक जाने का सुगम रास्ता हैं और हम और आप अपने चरित्र का निर्माण कर के शिखर तक पहुंच सकते हैं। जहां पर पहुंचने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रह जाता। हां, इस शिखर तक पहुंचना ही पूर्णता हैं।
क्योंकि, इसके बिना जीवन में शून्यता हैं, एक अपूर्ण भाव हैं, सिर्फ रिक्तता ही रिक्तता हैं। तभी तो, जिनके जीवन में ध्येय” होता हैं, वह इस शिखर तक पहुंचने के लिए हर-संभव प्रयास करते हैं। अपने जीवन को चुनौती के कसौटी पर कसने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वे अपने जीवन में उन आदर्श मूल्यों का पालन करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखलाते हैं। वे जीवन को बिल्कुल आईने की तरह रखते हैं, जिससे उनके श्रेष्ठ व्यक्तित्व का प्रतिबिंब मुखरित हो उठता हैं।
हां, आज तक जिन्होंने ने भी इस “शिखर तक” का सफर किया हैं, उनका जीवन चरित्र अनुकरण करने योग्य हैं। हां, वे सभी दिव्य आत्मा, जिन्होंने इस शिखर को छूआ हैं, चाहे वे स्वामी विवेकानन्द हों, ब्रह्मर्षि दया नंद सरस्वती हों, रामकृष्ण परमहंस हों, चाहे तुलसी दास, कबीर दास, गुरुनानक और रैदास हों। यह सब महान विभूतियां तो धार्मिक आचरण बाले थे। राजनीतिक विभूतियों की बात करें तो, महराणा प्रताप, हिंदु हृदय सम्राट वीर शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, सुभाष चंद्र बोस इत्यादि।
इन सभी विभूतियों के जीवन का अगर अध्ययन किया जाए, तो उनमें एक समानता तो हैं कि” उन्होंने स्व:हित से ऊपर संसार हित को रखा और जीव मात्र का किस तरह से कल्याण हो, किस तरह से राष्ट्र हित और धर्म हित को साधित किया जाए, इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही अपने जीवन के समस्त उर्जा को लगा दिया। तभी तो, उनका जीवन और आचरण अनुकरण करने योग्य हैं।
जी हां, मैंने तो सिर्फ कुछ थोड़े से महान विभूतियों की चर्चा की हैं। वास्तव में शिखर तक” पहुंचने बाले अगणित महान आत्मा हैं। हां, इस तरह के विभूतियों का इस धरा-भूमि पर समय-समय पर प्रादुर्भाव होता रहता हैं और वे आकर समय-चक्र” के बिंदु पर मानव जीवन के उत्तम आदर्शों का प्रतिपादन करते रहते हैं। वे जीवंत भाव के शुभ- चिंतक बन कर शिखर तक” पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं।
हां, राजनीति की बातों को अगर किनारे कर दिया जाए, तो आज के समय में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ऐसे ही विभूति हैं, जिनके जीवन पद-चिन्हों का अनुकरण कर के हम और आप में से कोई भी “शिखर तक” पहुंच सकता हैं। हां, वर्तमान समय में जिस अनुकरण को हम पढ़ने की जगह साक्षात प्रत्यक्ष देख सकते हैं, जीवन के श्रेष्ठ गुण-धर्मों का अवलोकन कर सकते हैं और अपने जीवन में उतार कर पुरुषार्थ और श्रेष्ठता को चरितार्थ कर सकते हैं, ऐसा ही व्यक्तित्व हैं हमारे प्रधानमंत्री साहब का।
लेकिन” आज के समय में काल-चक्र कुछ अलग उलझ सा गया हैं। आज सिर्फ आर्थिक सफलता को ही श्रेष्ठता के तराजू पर तौला जाने लगा हैं। आज” सिर्फ ऐश्वर्य को ही जीवन का ध्येय बना लिया गया हैं, जिसके कारण “मानक जीवंत मूल्यों का हास होने लगा हैं। आज’ जिधर भी नजर उठाकर देखा जाए, उधर अजीब सा दौड़ लगा हुआ हैं, धन कमाने का, बहुत सा धन संचय करने का। जिसके कारण मानव जीवन में बहुत से विरोधाभास का पदार्पण हो गया हैं।
आज’ परिवार में, सदस्यों को-बच्चों को जीवन संस्कार सिखलाने की जगह यह सिखाया जाता हैं कि” किस तरह से धन को कमाया जाए, उसका संचय किया जाए और उससे अधिक धन कमाया जाए। हां, ऐसा ही हमारे चारों ओर हो रहा हैं और ऐसा इसलिए हो रहा हैं कि” हम पर बाजार-वाद पूरी तरह से हावी हो चुका हैं। जिसके दुष्परिणाम स्वरूप कई तरह के आसामाजिक, अनैतिक और भ्रामक अवगुणों ने मानव जीवन को घेर लिया हैं, अपने बेड़ियों में जकड़ लिया हैं।
जी हां, यही सत्य हैं कि” आज मानव जीवन ऐश्वर्य के इर्दगिर्द सिमट सा गया हैं, जहां पर ध्येय, श्रेष्ठता और समर्पण जैसे सदगुणों का अभाव सा हो चुका हैं। आज समाज में गुणों की जगह धन-बल का सम्मान होने लगा हैं। साथ ही यह कहना अनुचित नहीं होगा कि” आज आत्म-बल, स्वाभिमान और नैतिकता के गुणों का विकास करने की जगह हम मैं” शब्द के ही पुष्टि करने में लग गए हैं।
परिणाम’ जो कि” भयावह हैं और हमारे सामने दृष्टिगोचर भी होने लगा हैं। फिर भी हम वर्तमान के आघात से अंजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि’ जरूरत तो यह हैं कि” हम अपने जीवन को जीवंत भावों से आच्छादित कर लें। अपने विचारों को श्रेष्ठता के चरम-बिंदु तक ले जाए। सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए तत्पर बने और उन मानक नियमों को- उन श्रेष्ठ आदर्शों को एक बार फिर से जागृत करें और आचरण में उतारने के लिए तत्पर हो जाए।
जो कि” वक्ती जरूरत सा हो गया हैं। आज उन श्रेष्ठ आदर्शों-गुण धर्मों को समाज में, परिवार में और राजनीति में, यानी कि” सभी जगह उतारने की जरूरत हैं-स्थापित करने की आवश्यकता हैं। तभी तो, श्रेष्ठता के शिखर तक” हम पहुंचने के अधिकारी बनेंगे, जहां पर हमारे आदर्श ऐसे महान विभूतियां पहुंच चुके हैं। अन्यथा तो, मानव जीवन पाना व्यर्थ ही जाएगा।
चलते-चलते फिर कभी…