Photo by Worshae on Unsplash
घुटने तक काले-काले घने बाल, जैसे काले बादलों का समूह उमड़ आया हो। उसपर तीखे नैन-नक्श और कटारी जैसी आँखें और रसीले गुलाबी अधर। बिल्कुल कमायनी की तरह सुंदर दिखने बाली वह लड़की, नाम था राधिका। ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी होने के बावजूद उसने माँडर्णता को पूरी तरह से अपनाया हुआ था। तभी तो जिंस और टाँप पहन कर वह सड़क पर कूल्हे मटका कर चल रही थी।
राधिका, जो डिग्री इंजीनियरिंग काँलेज में पढ़ती थी। इस समय भी वह काँलेज से निकली थी और गांव जाने के लिए पैदल ही सड़क पर चल पड़ी थी। क्योंकि’ उसका गांव शहर से सटा हुआ था, इसलिए पैदल भी चले, तो घंटे भर में गांव में पहुंचा जा सकता था।
फिर भी, गांव की ओर जाने वाली कोई टेंपु और बस मिल जाए, तो बैठ जाएगी, ऐसा सोचकर उसने अपने कदमों को आगे बढ़ाने की शुरुआत कर दी थी। जानती थी, शाम होने बाली हैं, ऐसे में किसी साधन का इंतजार करती रही, तो देर हो जाएगी घर पहुंचने में। इससे तो अच्छा यही होगा, कदम बढ़ाया जाए और कहीं साधन मिल गया, तो फिर बैठ लिया जाएगा।
हलांकि’ काँलेज से निकलने वाले बहुत से लड़कों ने उसको लिफ्ट देने की कोशिश की थी और उनकी कोशिश ऐसे ही नहीं थी। राधिका पूरे काँलेज में सब से स्मार्ट और सुंदर थी, साथ ही माँडर्ण भी। ऐसे में स्वाभाविक था, युवा मन कुछ ज्यादा ही उसकी ओर आकर्षित हो।
बस’ काँलेज के अधिकांश लड़के उससे नजदीकी बढ़ाने की लालसा मन में पाले हुए थे। उनके मन में जो राधिका को पाने की इच्छा बलवती होती थी, उसको पूरी करने के लिए प्रयास रत रहते थे। उनकी गिद्ध नजर हमेशा ही राधिका पर टिकी होती थी अवसर की तलाश में।
राधिका उन गिद्ध नजरों को अच्छी तरह से समझती थी। इसलिए जब उसे गांव तक छोड़ने के लिए लड़कों ने कहा, तो उसने स्पष्ट इनकार कर दिया। फिर अपने कदम बढ़ाते हुए आगे की ओर बढ़ चली, मन में आशा पाले हुए कि” कोई न कोई साधन तो मिल ही जाएगा।
ऐसा ही हुआ भी। उसे गांव की ओर जाने वाली टेंपु मिल गई। फिर तो, वो शाम ढ़़लने से पहले ही घर पहुंच गई। घर पहुंचने के बाद वह अपनी मां सुमित्रा देवी के साथ घर के कामों में जुट गई। उधर’ उसके पापा जगन्नाथ ठाकुर ने उसे घर आया देखकर राहत की सांस लेने लगे।
जानते थे आज की दुनिया-दारी को। ऐसे में जवान और खूबसूरत लड़की घर से बाहर शहर में पढ़ने जाती थी। तो उनके मन में अंजाना सा भय समाया हुआ रहता था। उसमें भी उनकी बेटी का पहनावा, जो उन्हें खुद भी पसंद नहीं आता था। उनका मानना था, लड़की तो पूरे कपड़े में ही सुंदर दिखती हैं। जानते थे, इज्जत जब तक ढका हुआ हैं, तभी तक ही सुरक्षित हैं।
किन्तु” अपनी इस मान्यता को वे बेटी पर थोप नहीं सकते थे। उनके मन में बच्चे के प्रति प्रेम और एक अंजाना सा भय कि” अगर उन्होंने राधिका को रोक-टोक किया और अगर उसने विरोध कर दिया तो, तो इज्जत चली जाएगी। दूसरी, राधिका मां की दुलारी थी, इसलिए भी प्रतिरोध नहीं जता पाते थे। ऐसे में जब राधिका शहर से वापस लौट आती थी, तभी वे चैन की सांस ले पाते थे।
इतने पर भी उनके मन में भय तो बना ही रहता था और वो भय अकारण भी तो नहीं था। आज-कल जिस तरह से लव-चक्कर का प्रभाव समाज पर हावी हो रहा था, उस स्थिति में भय तो उत्पन्न होना ही था। उसमें भी उनकी बेटी माँडर्ण थी। एक तरह से कहा जाए, तो सामाजिक बंधनों को नहीं मानती थी। किसी के भी साथ बिल्कुल सहज होकर बात करती थी।
उसपर समस्या ये कि” वो सुंदर भी थी। स्वाभाविक रूप से काम-लोलुप नजरें उसपर ही टिकी हुई रहती होगी। उनके मन की यह शंका, जिसने अब धारणा का रुप ले लिया था और ऐसा हुआ था गांव वाले के कारण। हां, गांव वाले राधिका के वेषभूषा से दु:खी कम और ईर्ष्या ज्यादा रखते थे। इसलिए गाहे-बगाहे उनके कानों तक तरह-तरह की बातों को पहुंचाते रहते थे।
ऐसे में जगन्नाथ ठाकुर के मन में भय का ग्राफ और भी बढ़ जाता था। जब गांव का कोई व्यक्ति उन्हें रास्ते में रोककर दुनिया-दारी समझाने लगता था। जब उन्हें बताने लगता था, देखो जगन्नाथ, आज की दुनिया बहुत गजब की हो गई हैं। ऐसे में तुम्हारी बेटी शहर में पढ़ने जाती हैं, पूरी लोक-मर्यादा को त्याग कर। बस’ देख लेना, वो किसी दिन प्यार-मुहब्बत के चक्कर में फंसकर कुल का नाम न डूबा दे।
बस’ इतना सुनते ही उन्हें लगता था, हकीकत उनकी आँखों के सामने घटित हो रहा हैं। वह भयावह सा दृश्य, जब राधिका किसी लड़के के साथ परिवार का मुंह काला कर के भाग गई हैं। इसके बाद वे अपने सिर को झुकाकर और चेहरा छिपा कर चोरी-छीपे कहीं आ रहे हैं। फिर भी, गांव वाले उनको पहचान ही लेते हैं। इसके बाद शुरु होता हैं अंतहीन ताने और छींटाकशी का दौर, जो सीधे आकर उनके हृदय पर लगता हैं। जिससे उनका अंत: करण पूरी तरह से लहूलुहान हो जाता हैं और वो वेदना में डूब जाते हैं।
पापा… पापा!...आप कहां खो गए?
अ…हां!.. आवाज सुनकर उनकी तंद्रा टूट गई। फिर उन्होंने नजर उठाकर देखा, राधिका सामने थी। बस’ उन्होंने अपने मन के भावों को छिपा लिया और उसकी ओर देखकर सहज ही मुस्करा कर बोल पड़े। कुछ नहीं बेटा!... बस ऐसे ही। वैसे, बेटा तू यहां, क्या कोई बात हैं?
खास तो कुछ नहीं हैं पापा!... बस, बताना था, कल इंफोसिस बाले काँलेज में आकर कैंपस सलैक्सन करेंगे। तो आप कल मेरे साथ चलते, तो अच्छा रहता। राधिका ने सहज होकर कहा, फिर उनके चेहरे की ओर देखने लगी। जबाव में उन्होंने पहले तो राधिका के चेहरे की ओर देखा और कुछ पल तक सोच में डूबे रहे। इसके बाद मुस्करा कर बोल पड़े।
कोई बात नहीं बेटा!... कल हम आपके साथ काँलेज जरूर चलेंगे।
ऐसा हुआ भी। अगले दिन जगन्नाथ ठाकुर राधिका के साथ इंजीनियरिंग काँलेज पहुंच गए। इसके बाद शुरु हुई इंफोसिस कंपनी के द्वारा काँलेज छात्रों का सलैक्सन करने की प्रक्रिया। बहुत ही उबाऊ, लेकिन जैसे ही कंपनी बालों के द्वारा सलैक्ट छात्रों की घोषणा हुई, वह हर्ष के सागर में डूब गए।
हां, राधिका का नाम सलैक्ट छात्रों की लिस्ट में सब से ऊपर था और उसे पच्चीस लाख का पैकेज दिया गया था। बस’ उनके मन में जो राधिका के माँडर्णता को लेकर जो मैल था, धूल गया था। तभी तो, उन्होंने राधिका को अपने पास बुलाया और हृदय से लगाकर बोसे लेने लगे।