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तुम हो चांदनी सी, इतनी हसीन हो'
ख्वाब की परी' कोमल ओस सी'
कवि के कल्पनाओं में निखरी हुई'
गुलाब के पंखुड़ियों सी बिखरी हुई'
हे सुंदरी' कहूं, तुम इतनी नाजनीन हो।।

तुम कवि के कल्पनाओं में उकेरी हुई'
हसीन हो इतनी कि" चाँद शरमा उठे'
तुम खिली कली' भंवरे ललचा उठे'
दिल आशिकों का' तुम हो निखरी हुई'
हे सुंदरी' कहूं, तुम इतनी नाजनीन हो।।

चलने की ठसक' तेरी खनके है कंगना'
हलचल मच गया, पैजनिया के शोर से'
मन बंधने को व्याकुल प्रीति की डोर से'
जुल्फ नागिन से तेरे' लहराये जो ऐसे'
हे सुंदरी' कहूं, तुम इतनी नाजनीन हो।।

तेरे अधर' खिलखिला उठे, रस लिये'
तेरा अक्स उभर आया है जो, ख्वाब में'
लिखने को आतुर हूं, तुम्हें मन के किताब में'
तुम अति सुकोमल भामिनी, सुलोचना हो'
हे सुंदरी' कहूं, तुम इतनी नाजनीन हो।।

हे सुंदरी' मन में, बसी हुई हो तुम तरंग सी'
अदब से' खिदमत में तेरे, लग ही जाऊँ'
हो तुम हसीन, कसम से तेरा बन ही जाऊँ'
नयनों में लगे कारे कजरा, लगते कटार जैसे'
हे सुंदरी' कहूं, तुम इतनी नाजनीन हो।।

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