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वेदना कुछ बीते हुए पल की,
हृदय में दु:श्चिंताओं के थे बादल,
कुछ अज्ञात घटित हो जाने का हलचल,
कुछ अजीब बातें बीते हुए पल की।।
इच्छाओं के बल का लगा हुआ था जोर,
कुछ अधिक की आशा का था शोर,
फिर मन के भावों का बनता हुआ प्रतिफल,
बीता जो दु:स्वप्न कठिन था उसकी झलकी।।
अंधकार मय प्रभाव था मन के भावों को,
सूनसान-बियाबान वन मन का था आंगन,
और कठिन अवरोध अहं का दल-बल,
और आशाएँ सेवीत हृदय था मीठे फल की।।
निराधार ही ग्रहीत अहं का आवरण फैला,
बना हुआ अवरोध अतिशय कालिमा-मैला,
फिर चिन्ताओं के दावानल से हुआ था निर्बल,
और इच्छाओं का वेग सुमधुर भावते फल की।।
कुछ बीते पल, कालिमा आंचल में बचे अवशेष,
सार्थकता से दूर ध्येय मानकता से बांधे द्वेष,
निरंकुश हुए भाव के बल का जो था दलदल,
सत्य यही हैं यथार्थ बातें हैं बीते हुए कल की।।
वेदना जो शूल रुप में स्थूल बन ग्रहीत मन में,
भ्रम की जालाएँ बुनते हुए उलझाने को तत्पर,
द्वंद्व के राग-रंग में डूबा हुआ मलिन बीता पल,
अब संभला हूं तो समझा हूं, बातें नहीं था हलकी।।

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