प्रेम पुष्प की कलियां बहुत निराली, अनोखी और कोमल होती हैं। ऐसे में इसको नजाकत के साथ अगर नहीं संभाला जाए, तो प्रगाढ़ से प्रगाढ़ संबंध भी रेत के स्तूप की तरह ही भड़भङ़ाकर बिखर जाता हैं और रह जाता हैं तो सिर्फ मायूसी और उदासी। एक ऐसी रिक्तता, जिसके आंगन में भयावह सन्नाटा पसरा हुआ होता हैं। हृदय को वेधने को तत्पर अजीब सा वेदना छिपा हुआ होता हैं।
ऐसा ही कुछ-कुछ हाल वेदिका सोनी का था। वह जो उम्र के इस पायदान पर पहुंचने के बाद भी आकर्षक लग रही थी। उम्र के पैंतालीसवें बसंत में भी वह लग रही थी कि” छुई-मुई सी सकुचाती हुई नवयौवना हो। हां, वह सुंदरता की प्रति-मूरत थी।
वह जो अभी भी आँखों में शरम को अनुभव करती थी। उसके गाल, जो सेव की तरह ही निखरे-निखरे लग रहे थे और होंठ तो गुलाब की तरह ही सुर्ख और नाजुक। उसपर घुटनों तक फैले हुए घने रेशमी बाल। उनको जो भी एक बार देख लेता, उफ किए बिना नहीं रहता।
तभी तो, साधारण सी सुती साड़ी भी उन पर फबता था। हां, वह सुंदर थी, बिल्कुल कमायनी की तरह। पेशे से शिक्षिका और व्यवहार से मृदुल। तभी तो हमेशा अपने होंठों पर मुस्कान सजाए रहती थी। लोगों के स्वागत और सत्कार में तत्पर रहती थी। अपने आस-पास के लोगों को जताती रहती थी कि” मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूं। मेरे मन में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हैं।
किन्तु’ ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था। वेदिका सोनी, जो पेशे तो शिक्षिका थी, खुद ही जीवन के पाठ नहीं पढ़ सकी थी। तभी तो उनके जीवन में सूनापन था, गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। जिसके आवृति में फंसी हुई वो और उनका मन जार-जार रोता रहता था। जब’ जीवन में अकेलापन कुछ अधिक ही काट खाने को दौड़ता था, तो वह विकल हो जाती थी। हैरान-परेशान सी बन जाती थी और फिर बीते हुए समय को मथने लगती थी। अतीत के उस स्याह परत से गलतियों को ढ़ूंढ़ने लगती थी।
क्योंकि’ पहले उसका जीवन ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं था। हां, उन्हें याद हैं, जब वह अमित के साथ ब्याह करके इस घर में आई थी, कितना खुश थी वो। उसे लगता था, जीवन की अगर सार्थकता हैं, तो यही हैं। भरा-पूरा परिवार, पारिवारिक दिनचर्या में तल्लीन बनी हुई वो और अमित। जो शाम होते ही जब काम से लौटता था, तो उसके ऊपर जहां भर के प्यार को लूटा देता था।
बिल्कुल मजे से चल रहा था जीवन की गाड़ी। जिसका पहिया बनकर वो पति के कंधे से कंधे मिलाकर चल रही थी। पर-सुकून था उसके जीवन में। वह जो चाहती थी, पलक झपकते ही पूरा कर दिया जाता था। हां, अमित उसकी छोटी से छोटी खुशी के लिए पलक-पांवड़े बिछाए रहता था। उसे मुहब्बत की हसीन वादियों में सैर करवाने के लिए हमेशा तत्पर रहता था।
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था उनके जीवन में। इस बीच उनके आंगन में नन्हे से मेहमान राघव का भी आगमन हो गया। जिससे उनके दांपत्य जीवन में और भी मिठास घुल गई। परंतु….होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। तभी तो उसने शिक्षिका की नौकरी करने के लिए आवेदन दिया और सरकार द्वारा चुन भी ली गई। बस’ इसके बाद उनके जीवन में तूफान सा आ गया।
क्योंकि’ अमित नहीं चाहता था, वो कोई नौकरी करें। अमित तो चाहता था, वह कुशल गृहिणी की तरह परिवार संभाले और उसके लिए ही जीये। परंतु….वेदिका, वह इसके लिए तैयार नहीं थी। बस’ अमित के द्वारा किए जा रहे विरोध से उनका मन विद्रोही बन गया। उसे लगने लगा, यह पुरुषत्व के अहंकार का विरोध हैं, जो उसके स्त्रीत्व मन की कोमल भावनाओं को कुचलने पर आमादा हैं।
उसपर नैहर के लोगों द्वारा उसके मन की भावनाओं को भड़काया गया। जिससे उन्हें लगने लगा, अमित शायद उनकी आर्थिक आजादी को नहीं चाहता। वह चाहता हैं कि” मैं सदा ही उसकी गुलाम बनी रहूं और उसकी मर्जी के अनुसार बच्चे पैदा करती रहूं।
बस’ विरोध का दावानल भड़का, तो मन में कई धारणाओं ने जगह बना लिया। जिसके कारण घर में कलह का साम्राज्य रहने लगा। और तो, कभी-कभी तो बात मारपीट तक भी पहुंच जाती। ऐसे में तंग आकर एक दिन अमित उनको अकेले छोड़कर कहीं चला गया। साथ ही वह राघव को भी अपने साथ ले गया। हां, छोड़ गया तो उनके लिए अंतिम चिट्ठी, जिसमें उनको आजादी की ढ़ेरों शुभकामनाएँ थी।
परंतु…..वह शुभकामनाएँ उनके लिए अभिशाप साबित हुई। हां, अमित के जाने के बाद उनको समझ आया, जीवन में दांपत्य का कितना महत्व हैं। हां, अब वो समझ गई थी कि” जो आजादी उसे चाहिए था, वह अंदर से खोखला हैं। ऐसे में उनके जीवन में खुशियों का अकाल पड़ गया और सन्नाटा और वीराने पन ने उनके अस्तित्व को अपने बांहूपाश में जकड़ लिया।
एक लंबा अरसा, पूरे पंद्रह वर्ष हो गए अमित को गए हुए और इन पंद्रह वर्षों में वो कभी खुश नहीं रह सकी। लेकिन अब नहीं, वह जो भूल हो चुका था, उसका भार वह अब नहीं ढोएगी। हां, उसे कुछ दिन पहले ही अमित के बारे में जानकारी मिली थी और मन ही मन फैसला कर लिया था। हां, वह खुद की गलती को सुधार लेना चाहती थी, क्योंकि’ यह सूनापन उन्हें खलने लगा था।
तभी तो, वह सुबह धुंधलके में ही घर से निकल गई थी और अब, जब दोपहर होने को आया था, शहर में पहुंच गई थी। परंतु…मन के किसी कोने में अनजाना भय भी था, अगर जानकारी गलत हुई तो?....हां, वह विकट स्थिति होगा उनके लिए। किन्तु’ बस एक भय के कारण ही वह अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ सकती। वह अमित को तब तक खोजती रहेगी, जब तक मिल नहीं जाता।
मन में सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का प्रवाह और उन्होंने हैंड बैग में रखी हुई पर्ची को निकाला और मन ही मन पता को पढ़ा। सरोजिनी सोसाइटी, रचिता अपार्ट मेंट। बस, उन्होंने बगल से जा रही टैक्सी को रुकवाया, अंदर बैठ गई और ड्राइवर से बोल दिया, रचिता अपार्ट मेंट चलने के लिए।
इसके बाद’ घंटे भर का सफर और वह रचिता अपार्ट मेंट के सामने खड़ी थी। परंतु…हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कि” मुख्य द्वार पर नाँक करें, या बेल ही बजा दे। मन में अंजाना सा भय, जो उनपर पूरी तरह हावी हो चुका था। साथ ही आशंकाओं के बादल भी उनकी आँखों के आगे मंडराने लगे थे। ऐसे में धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और किसी मूर्ति की तरह खड़ी वो।
किन्तु’ ऐसी स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही। क्योंकि’ अचानक ही एक बाईक आकर अपार्ट मेंट के अहाते में लगी और उसपर से खूबसूरत और सजीला नौजवान उतरा, बिल्कुल अमित की ही शक्ल-सूरत बाला। बस’ वेदिका सोनी पहचान गई और पल भर में अह्लाद, वेदना और ग्लानि से भर गई।
उधर वो नौजवान, जैसे ही उसकी नजर वेदिका सोनी पर पड़ी, वह आश्चर्य के सागर में डूब गया। कुछ पल, जो उसकी आँखों में खुशी के सागर हिलोरे मारने लगे और वह आगे बढ़ा। वेदिका सोनी के पांव में झुक गया और जब खड़ा हुआ, मासूमियत से बोल पड़ा।
मम्मा!.. आखिर आप आ ही गई।… सच कहूं, तो मैं और पापा आपका वर्षों से इंतजार कर रहे थे।
यह प्रेम और आत्मीयता से भीगा हुआ स्वर, जो उनके कानों से टकराया, हृदय कराह उठा। वेदना की एक तीव्र लहर, जो उनके अस्तित्व को अपने आगोश में समेट लिया। ऐसे में वह अपनी जुबान को खोलने में बिल्कुल ही असमर्थ हो गई।
तब, राघव ने उनकी मनोदशा को समझ लिया और दरवाजा खोलकर उन्हें घर के अंदर ले आया। घर के अंदर, सोफे पर बैठे हुए अमित, जो किसी फाइल में उलझे हुए थे। चेहरे पर वही रुआब, लेकिन’ उम्र के थपेड़े ने उन्हें समय से पहले ही बुढ़ा कर दिया था।
बस’ वेदिका सोनी को समझते देर नहीं लगी, उन्होंने जो गलती की हैं, उसके कारण कितना कुछ खो गया हैं। इसके साथ ही वो आत्म-ग्लानि के भार से दब गई और दौड़कर अमित के पांव से लिपट गई। फिर तो, मिलन के तूफान में सारे गिले-शिकवे बहने लगे।
उन दोनों की आँखें, जो एक दूसरे को देख रही थी और मन में उठते हुए एक समान भाव, अगर पहले ही समझौता कर लिया होता, तो इतना कुछ खोना नहीं पड़ता। परंतु….अब नहीं, जो गलती हो गई, उसको अब नहीं दुहराएंगे। इस बात का संकल्प दोनों ही मन ही मन में कर रहे थे और दूर खड़ा मूक बना हुआ राघव मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसे प्रसन्नता थी, अब उसको मम्मी और पापा, दोनों का प्यार मिलेगा।
उसने जो पापा की आँखों में सूनापन के असीम दर्द की अनुभूति करता रहता था। समझता था, मां की स्थिति भी इससे कुछ अलग नहीं होगी। किन्तु’ अब, जब दोनों मिल रहे थे, तो वह बीते हुए समय की घटनाओं को भूल जाना चाहता था और हर्षित था, जीवन की अब फिर से नए सिरे से शुरुआत होगी।