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यथार्थ के पन्नों पर लिख डालूं,
कल का वह बीता हुआ वृतांत,
चलता रहा था जो छल नितांत,
लिख डालूं निश्चय हो स्याह रात,
भ्रमणाओं से लिपटी मिथक बात,
लिख ही डालूं मन के तमाम ज्ञात।।
आज हुआ जो सुनहरी सुबह का आगमन,
मन हर्षित हो उठा प्रखर किरणों से,
अभिलाषा के बीज अंकुरित हो उठे,
लिखने की ललक, हुआ प्रमुदित मन,
कल तक सजा हुआ था जो स्वार्थ हाट,
लिख ही डालूं मन के तमाम ज्ञात।।
अंकित कर डालूं कोरे पन्नों पर कृदंत,
निश्चल होकर कहलाऊँ फिर कथाकार,
उकेरूं सहज भाव से मन के तमाम भार,
कल की वह बात और मन के विचार,
अनुत्तरित जो थे प्रश्न और उलझा था वाट,
लिख ही डालूं मन के तमाम ज्ञात।।
इच्छाओं के स्याही से लिखूं सही कथानक,
बीता का जो मन पर हावी हुआ था भय,
क्षणिक भाव जो उलझा, उपज पड़ा विस्मय,
पथिक का भाव टूटा, भूला कदम का लय,
जो भावों के विष लिपटा, ढ़ूंढ़ रहा था काट,
लिख ही डालूं मन के तमाम ज्ञात।।
यथार्थ के पन्नों को आज निश्चय ही भर डालूं,
ढ़ृढ़ होकर लिख डालूं तमाम सही ग्यातव्य,
बीते हुआ पल का भय, विस्मय और मोह,
बातों की अग्नि में पड़ा जो इच्छाओं का हव्य,
पथिक का कर्म मन भूला, उलझे थे हालात,
लिख ही डालूं मन के तमाम ज्ञात।।