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हां, यह शीर्षक देने का तात्पर्य यही हैं कि, आज का युवा जीवन के कई केंद्र पर उलझा हुआ हैं। अब’ युवा जीवन के किस-किस केंद्र पर उलझा हुआ हैं, उसकी चर्चा करने से पहले हमें समझना होगा, युवा चेतना किसी राष्ट्र के लिये सर्वाधिक कीमती पुजी हैं। जिसके सामर्थ्य के बल पर राष्ट्र का तीव्र विकास होता हैं।

कोई भी राष्ट्र मानव शक्ति के बिना न तो संपन्न हो सकता हैं, न सुरक्षित रह सकता हैं और न ही संसाधनों का संचालन सही से कर सकता हैं। उसमें भी युवा शक्ति की तो बात ही अलग हैं। युवा चेतना किसी राष्ट्र के लिये प्राण वायु के समान हैं।

हां, हम उसी युवा शक्ति की बात कर रहे हैं, जो कई केंद्र पर उलझा हुआ हैं। वो उलझन में इस तरह से लिपटा हुआ हैं कि स्वाभाविक चेतना बल को पहचान ही नहीं पा रहा हैं। हां, आज भारत के युवा शक्ति का बहुत बड़ा हिस्सा न तो अपना ही विकास कर पा रहा हैं और न ही राष्ट्र के विकास में ही योगदान दे पा रहा हैं। जिसका कारण हैं कि” वह व्यक्तिगत तौर पर उलझा हैं, उसके पास पारिवारिक उलझन है, वह सामाजिक स्तर पर भी कुंठा-ग्रस्त हैं और न ही राष्ट्रीय हित में ही कोई भूमिका निभा पा रहा हैं।

अब इन सारे केंद्र बिंदुओं की सिलसिलेवार चर्चा भी कर लेते हैं, क्योंकि’ यह वो भयावह समस्या हैं, जो राष्ट्र के युवा पुजी को घुन की तरह खाए जा रही हैं। इसकी चर्चा इसलिये भी होना जरूरी हैं कि” इसको जानते हुए भी हम और आप या तो अंजान बने हुए हैं, अथवा अंजान बनने का ढोंग करते हैं।

यह तो हुई भूमिका की बात, अब चर्चा की बात शुरु करते है व्यक्तिगत स्तर की, तो आज का युवा, कहें तो पूरी संख्या का आधे से भी ज्यादा खुद को पहचान ही नहीं पा रहा हैं। साथ ही उसके मन में कई बात को लेकर युवा होते ही कुंठा बन जाती हैं और उन बातों में प्रमुख हैं, रिश्ते का दबाव, सेक्स के प्रति जानकारी की कमी और उसकी ओर आकर्षण और पश्चिमी सभ्यता के लालच में उपजी हुई मृग-तृष्णा, जिसके बल पर वह निषिद्ध आजादी का आग्रही बनता जा रहा हैं।

इन तमाम कारणों के कारण वह चिड़चिड़ा बन जाता हैं और अपनी चेतना को पहचान ही नहीं पाता। इसके कारण उसके स्वभाव में रिक्तता की खाई बन जाती हैं। जिसे न तो समझने की कोशिश किया जाता हैं और न ही उसको पाटने का ही प्रयास किया जाता हैं।

फिर तो पारिवारिक स्तर की उलझन भी तो अपना काम करती हैं। आज एकल परिवार का चलन बढ़ चला हैं, जिसके कारण बचपन से ही उसे जो शिक्षा चाहिए, नहीं मिल पाता। उसे मानव के नैतिक गुणों और जीवन जीने के लिये जरूरी नियमों को सिखाने बाला कोई नहीं होता हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से युवा चेतना स्वच्छंदता को ही जीवन मान बैठता हैं और उसी के अनुरूप आचरण भी करता हैं।

आज के युवा में (ज्यादातर) स्नेह, सहिष्णुता, प्रेम और धैर्य की बहुत कमी हैं, अथवा हैं ही नहीं। जिसका सारा दोष पारिवारिक उलझन को जाता हैं। आज हम और आप यही मान कर चलते हैं कि” युवा पढ़ाई कर रहा हैं, ऊँचे पोस्ट पाकर पैसा कमा रहा हैं, बस भयो-भयो। लेकिन’ हम यह भूल जाते हैं, जीवन जीने के लिये पैसे के अलावा और भी बहुत कुछ जरूरी हैं।

अब बात करते हैं सामाजिक स्तर पर युवा चेतना की, तो सामाजिक स्तर पर उलझन के भी कई कारण हैं, जिसके कारण युवा शक्ति का हास सा हो रहा हैं। आज समाज में कलुषित भावना का प्रभाव चरम पर हैं। बस’ अपना लड़का अच्छा निकले, वो सफल हो, इसके आगे की बातें गौण हो जाती हैं। तभी तो’ आज जैसे ही बचपन युवावस्था के पगडंडी पर कदम रखता हैं, वह तमाम बुरी आदतों को सीख लेता हैं।

जहां पर उसको स्वस्थ रहने के लिये नशा विहीन होना चाहिए, वह नशा के गिरफ्त में फंस जाता हैं। इसका कारण हैं, नशा के संसाधनों का उसे सहजता से प्राप्त हो जाना। साथ ही आज समाज में बहुतायत में ऐसे लोग मौजूद हैं, जो खुद की सुविधा के लिये नशा करते समय युवाओं को भी अपने साथ बिठा लेते हैं। उसे नशा के संसाधनों को तैयार करने और परोसने के लिये बोलते हैं। साथ ही आज व्यापार का मतलब बिक्री और शुद्ध मुनाफा रह गया हैं। इसलिये नशीले पदार्थों को युवाओं के हाथों धड़ल्ले से बेचा जाता हैं।

फिर तो, राष्ट्रीय स्तर की उलझन, जहां पर बाजार वाद के कारण उत्पन्न हुआ दबाव, सामाजिक असमानता का प्रभाव, क्षेत्रवाद, राजनीति का बिगड़ता हुआ स्वरूप और इसके द्वारा स्वार्थ सिद्धि के लिये आपराधिक गतिविधि का बढ़ावा दिया जाना, जातिवाद और अवसर में असमानता का अवगुण आ जाना। इन तमाम बातों ने युवा चेतना को कुंठित कर के रख दिया हैं।

हां, आज जिस तरह से बाजार वाद का बोल-बाला हैं, उसके कारण कई समस्याओं ने जन्म ले लिया हैं। आज जो नेट” का दौर आ गया हैं, उसने क्रांति ला दी हैं। लेकिन’ यहां पर लाभ की अधिकता को बढ़ाने के लिये तमाम तरह के मटेरियल की भरमार होने लगी हैं। जिसके बारे में युवा शक्ति जल्दी आकर्षित होते हैं। उन्हें इस तरह का कांटेंट ज्यादा ही आकर्षित करता हैं, जिसके भयावह दुष्परिणाम हैं।

ये तमाम बातें, जो युवा-चेतना को अवरोधित करता हैं। उसे जो सकारात्मक होना चाहिए, खुद के विकास में तल्लीन होना चाहिए, पारिवारिक और सामाजिक विकास में सहयोगी बनना चाहिए और राष्ट्र के उत्थान में सहभागिता निभानी चाहिए, उसकी जगह पर वह उलझ कर रह जाता हैं। वह नशे के दलदल में फंसने लगता हैं, उसकी प्रवृति अपराधी की होने लगती हैं और कामुकता के प्रवाह में फंस कर मन: कुंठा का शिकार हो जाता हैं।

जो कि” आगे भयावह स्थिति का निर्माण करने बाला होता हैं और वहीं हो भी रहा हैं। आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया हो, या फिर प्रिंट मीडिया, इन तमाम बातों से भरा मिलता हैं।

ऐसे में हमें संभलने की जरूरत हैं और ये सुधार सामाजिक स्तर पर, पारिवारिक स्तर पर और राष्ट्रीय स्तर पर हो। ताकि युवा चेतना को सही दिशा दिया जा सके। इन तमाम बिंदुओं की, जिसकी चर्चा हुई हैं और जो युवा शक्ति को प्रभावित करते हैं। उसपर विचार किया जाना चाहिए, उसपर अंकुश लगाई जानी चाहिए और यह काम परिवार के द्वारा, समाज के द्वारा और राष्ट्र के द्वारा संकल्पित होकर व्यापक स्तर पर किया जाना चाहिए।

तभी हम युवा-चेतना” को सही दिशा दे सकेंगे, उसके विकास में सहभागिता निभा सकेंगे और उससे उत्पन्न हुए सकारात्मक उर्जा का लाभ उठा सकेंगे। उस उर्जा से जो प्रभाव उत्पन्न होगा, वह परिवार, समाज और राष्ट्र को सही दिशा और गति देने बाला होगा।

मतलब साफ हैं, युवा-चेतना का लाभ उठाने के लिये पहले कई बदलाव करने होंगे। बचपन से ही हमें वह परिस्थिति बनाना पड़ेगा, जो क्रमिक विकास के क्रम में युवा होने पर उचित माहौल का निर्माण कर सकें। जो युवाओं के सकारात्मक विकास में सहयोगी बने, युवा मन के अनुकूल बन सके।

तभी तो हम श्रेष्ठ परिणाम की आशा कर सकते हैं। स्वस्थ परिवार, स्वस्थ समाज और स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण के सपनों को सकार कर सकेंगे।

धन्यवाद!... इससे आगे फिर कभी।

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