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"नहीं... अंदर मत आना..." दरवाज़ा खोलते ही चीखते हुए स्वर आया। आवाज़ दिया की ही थी।

"बेटा, मैं हूँ - मम्मा।" कहते हुए उसकी माँ उस अंधेरे कमरे में आगे बढ़ी, पीछे पिता थे।

दोनों धीमे-धीमे कदमों से चल रहे थे, उनके दिल धड़क रहे थे। दो दिन पहले वे एक शादी में बाहर गए थे। दिया घर में अकेली थी। आज सवेरे लौटे ही थे कि एक पड़ौसी भागा-भागा आया और बताया कि पिछली रात उनके घर से अजीबो-गरीब आवाज़ें आ रही थीं और उनका पालतू कुत्ता आज सवेरे घर के पीछे मरा हुआ है। दिया के माता-पिता को संदेह हो चुका था कि कोई प्रेत बाधा हुई है।

"नहीं... तू मेरी मम्मा नहीं है... तू आरती है..." दिया फिर चीखी।

उसी समय दिया के पिता ने कमरे की बत्ती ऑन की। रोशनी होते ही दिया की हालत देखकर वे भौचंके रह गए। बिखरे बाल और बेतरतीब लाल साड़ी पहने दिया किसी पागल से कम नहीं दिखाई दे रही थी। रोशनी से बचने के लिये दिया ने अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढक रखा था।

"दिया... ये क्या है?" उसके पिता हिम्मत कर बोले।

और दिया ने अपने हाथ, अपने चेहरे से हटाये। लाल सुर्ख आखें और होंठो पर जमे खून को देखकर दोनों बहुत घबरा गए। माँ वहीं बेहोश होकर गिर गई।

"कौन?" पिता ने डरते-डरते पूछा।

"रक्त पिशाचिनी..." कहते हुए दिया अट्टहास करने लगी, जिसे सुनकर पिता बेतहाशा डर गए। उन्होंने अपनी पत्नी को अपनी बाहों में लिया और भागते हुए बाहर चले गए।

बाहर मोबाइल फोन निकाल कर उन्होंने फोन किया और सामने से स्वर आते ही बोले, "गुरूजी... दिया को कुछ ऊपरी बाधा हुई है...”

कुछ पलों की चुप्पी के बाद वहां से स्वर आया, "कुछ दिखाई नहीं दे रहा, मैं स्वयं ही आता हूँ।"

कुछ ही देर में एक गाड़ी वहां आई, तब तक दिया की माँ को भी होश आ गया था। गाड़ी में से तेजस्वी चेहरे वाला एक आदमी बाहर निकला। दोनों उसके पास गए और पैर छुए।

उस आदमी ने हुए दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा, "चलो अंदर चलते हैं।"

अंदर जाते ही गुरुजी आँखें बंदकर खड़े हो गए, लगभग 10 मिनट बाद बोले, "कुछ दिखाई नहीं दे रहा। दिया के कमरे में चलते हैं।"

वे दिया के कमरे में पहुंचे ही थे कि दिया दौड़ कर आई और गुरूजी से घबराए स्वर में बोली, "मुझे बचा लो... मुझे मां महीषमर्दिनी के मंदिर ले चलो..." कहते-कहते वह बेहोश हो गई।

गुरूजी कमरे का मुआयना करने लगे और फिर बोले, "कुछ दिखाई नहीं दे रहा।"

जैसे ही उन्होंने यह शब्द कहे, दिया बुदबुदाने लगी, "हुम्म्म्म... रक्त पिशाचिनी हूँ... माँ महिषमर्दिनी के मंदिर..."

यह देख गुरुजी ने अपना मोबाईल फोन निकाला और एक नम्बर मिला कर बात करनी प्रारंभ की।

बात खत्म होने पर गुरुजी ने दिया की मां से कहा, "कल जब तक मैं नहीं आता तब तक दिया को कहते रहें - तू दिया है - मेरी बेटी - हमारी बेटी।"

दिया की माँ ने हामी भरी।

अगले दिन सवेरे-सवेरे गुरुजी आ गए। उनके साथ एक और आदमी था।

गुरूजी ने दिया के पिता को बताया, "यह जय है, जितना प्रकट है उतना ही अदृश्य। दिया के इलाज के लिए आया है।"

पिता ने बता्या कि दिया रात भर सोई नहीं। अंदर कमरे में दिया पलंग पर लेटी हुई थी ।

जय दिया के पास गया और उसके सिर पर हाथ रख कर बोला, "दिया... मेरी बात सुनो... मैं जानता हूँ तुम थक गई हो... बहुत थक गई हो... तुम्हें नींद आ रही है... सो जाओ..." उसके स्वर में जैसे सम्मोहन था। दिया ने हाँ की मुद्रा में धीरे-धीरे सिर हिलाया।

दिया के सिर पर हाथ रखे-रखे ही जय बोलने लगा, "दिया… तुम कहां हो, क्या कर रही हो?"

दिया बुदबुदाने लगी, "मैं घर पर चेरी के साथ खेल रही हूँ।"

दिया के पिता धीरे से बोले, "चेरी हमारा पालतू डॉग था।"

दिया बुदबुदा ही रही थी, "लैपटॉप ऑन है... चेरी बाहर भागा... मैं ट्यूशन जाने के लिए कपड़े बदल रही... फिर... दमन का फोन आया है और... और... मैं रक्त पिशाचिनी हूँ... मुझे माँ महिषमर्दिनी के मंदिर जाना है... चेरी के रक्त से मेरी प्यास नहीं बुझी..."

जय ने दिया के पिता से पूछा, "दमन?"

वे बोले, "दिया के कॉलेज में साथ पढता है।"

"चलो उसके पास।" जय बोला

वे दमन के घर पहुंचे। दमन वहां नहीं था। जय बिना इजाज़त दमन के कमरे में चला गया। अंदर डेस्कटॉप रखा था, उसे ऑन कर वह काफी देर तक खंगालता रहा। दमन के परिवार वालों ने आपत्ति की तो दिया के पिता ने उन्हें सारी बात बता दी।

कुछ देर बाद जय बोला, "चलो माँ महिषमर्दिनी के मंदिर।"

वे सभी लौटे और दिया को लेकर कार में बैठे। इस बार जय ने स्टेयरिंग सम्भाला।

जय उन सभी को एक जगह लेकर गया। जिसे देखकर दिया के पिता बोले, "अरे! यह तो पुलिस स्टेशन…"

जय ने कुछ जवाब नहीं दिया और सभी को अंदर आने का इशारा किया।

अंदर जाकर जय एक पुलिस अधिकारी के पास गया, और पूछा, "सर, काम हो गया?"

वह अधिकारी बोला, "हाँ..."

जय दिया का हाथ पकड़ कर अंदर कमरे में ले गया।

वहाँ दमन बैठा था, देखते ही दिया की आँखें क्रोध से लाल हो गईं। जय चिल्ला कर बोला, "दिया, यही है महिष और अब देखो इसका मर्दन…”

कहते हुए जय ने इशारा किया तो दो पुलिसकर्मी दमन को डंडे से पीटने लगे। दिया हंसने लगी। जय दिया से बोला, "रक्त पिशाचिनी, तुम्हें जिसका रक्त चाहिए था वह मिल गया... अब दिया को छोड़ दो..."

दिया बोली, "हाँ।" और कहते ही वह बेहोश हो गई।

जय गुरूजी और दिया के पिता से बोला, "इसने दिया का ही नहीं और भी लड़कियों के कम्प्यूटर के केमरे हैक कर उनके वीडियो बनाये। दिया को ब्लैकमेल करने के लिए फोन किया, जिससे दिया के दिमाग में शॉक लगा और वह ऐसी हो गई। असलियत में यही साइबर घोस्ट दिया के सिर पर चढ़ गया था।"

"और इसीलिए मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।" गुरूजी भी मुस्कुराते हुए बोले।

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