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"ये विधर्मी गौमाता का माँस खा रहे हैं, तो हम क्या चुप बैठेंगे? जो हमारे लिये पूज्यनीय है, उसकी हत्या करने का दंड हम ही देंगे।" उसकी आँखों में खून उतर आया था, आवाज़ में तीव्रता के साथ-साथ, बड़ी संख्या में एकत्रित हुए लोगों को देखकर, बहुत सा जोश भी भरा हुआ था।

"ये लोग गौमाता को जहाँ से लेकर आते हैं... वो जड़ ही खत्म कर देनी चाहिये।" भीड़ में से एक आवाज़ आई।

"लेकिन जब पालते हम हैं तो बेचता कौन है?" एक और आवाज़ गूंजी।

यह सुनकर सब एक क्षण को चुप हो गये, और फिर आपस में फुसफुसाने लगे।

उसी समय एक वृद्ध व्यक्ति बोला , "मैं बताता हूँ..."

सभी का प्रश्नवाचक चेहरा उसकी ओर घूम गया, जो देख नहीं पा रहे थे, वो भी ध्यान लगा कर सुनने लगे, और उस वृद्ध ने कहा,

"गौमाता बूढी हो जाये तो घर से निकाल देते हैं और बाकी को सवेरे-सवेरे दुह कर भटकने को छोड़ देते हैं... सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु को तो कोई भी उठा..."

बात ख़त्म होने से पहले ही ‘आवारा पशु’ सुनकर किसी ने आक्रोशित हो उसे धक्का दे दिया।

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