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आती है कारी रैना लेके अपने साथ
थोड़ी-सी खामोशी और भावों का सैलाब।
होता है जिसमें चिंतन और नया आगाज़,
मिटती नहीं वह कृति जिसने पा लिया आकार।
जब हों यादें ताजा़, आरंभ हो प्रक्रम
जिनमें बने इरादे और स्पष्ट हो हर भ्रम।

आती है कानी रैना लेके अपने साथ
छोड़ी-सी स्याही और चित्रों का सैलाब।
होता है जिसमें चयन और नव-निर्माण,
मिटते नहीं वे चित्र जिनमें पा लिया आकार।
जब न जानों खुद को, आरंभ करो प्रक्रम
जिसमें दिखे प्रतिच्छाया व दृश्यों का वह क्रम
जिसमें बनी थी रूह और था सब मूल,
जिसमें बने विचार व स्पष्ट हुई हर भूल,
जिसमें जाना तुमने मोल और करना तौल,
जिसमें तुमने पहचाना कि जग में क्या अनमोल।

आती है कारी रैना लेके अपने साथ
थोड़ी-सी नींद और ख्वाबों का सैलाब।
मिलती है जिसमें राहत और एक ठहराव
भटकता नहीं वह राही जिसे मिल गया बहाव।
जब लगे जग वैरी, आरंभ हो प्रक्रम
प्रत्यक्ष हो यथार्थ और संग वही उपक्रम-
ना हुआ जग में पूरा, जो न बना अपना
रह गया अधूरा और बन गया एक सपना,
जिसमें तुमने जाना- क्या खरा? क्या खोटा?
जिसमें तुमने पहचाना- न कोई बड़ा, न छोटा।

ख्वाबों की इस दुनिया में, हैं अनगिनत हकीकत,
कुछ भावों के हैं भाव, कुछ कल्पना की कीमत।
आती है कारी रैना लेके अपने साथ
थोड़े-से अल्फाज़ और मिजाज़ों का सैलाब
होता है जिसमे मंथन और विचित्र विषपान
मिटते नहीं वे फूल जिन्हें वसंत का इंतज़ार ।

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