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बीती कारी रैना, बीते कारे ख्वाब।
क्यों है प्यासी नैना, लिए नमी का सैलाब?

कुछ पंक्तियाँ हृदय को छू जाती हैं।
कुछ हृदय की गहराइयों में बस जाती हैं।
पर जरूरी नहीं कि एक वार,
वही चोट दे हर बार।

कुछ चिट्ठियाँ संदूक में खो जाती हैं।
कुछ आँखों के सामने रोशन हो जाती हैं।
पर जरूरी नहीं कि एक खुशी,
वही अहसास दे हर बार।

आज वह दौर नहीं जो कल था।
कल वह दौर नहीं जो आज है।
बैठे हो जो यूं मायूस होकर,
क्या समक्ष तुम्हारे कल का ख्वाब है?

बीती कारी रैना, बीते कारे ख्वाब।
क्यों है प्यासी नैना, लिए नमी का सैलाब?

अभी अंत नहीं, आगाज़ है।
नए दौर की शुरुआत है।
कर दृढ़ हृदय, उठ, हो खड़ी।
संग तेरे तुझी का साथ है।

नित नया दिन, नित नयी राह,
सब पूछें तुझसे तेरी चाह।
मंजिलों की यहाँ कोई कमी नहीं।
रंजिशों से घिरी यहाँ सबकी घड़ी।

गर्दिश में है तारे उसके यहाँ,
जिसने त्याग दिया है खोजना वहाँ,
जहाँ श्रमसीकरों का साथ है,
जहाँ मन-मस्तिष्क में ताल है,
जहाँ बनते हैं असंख्य स्वप्न,
जहाँ मिटते हैं असंख्य स्वप्न,
जहाँ मिलती है प्रतिपल एक हार,
जहाँ दिखती है प्रतिपल एक जीत,
जहाँ रुकने की किसी को न खबर,
जहाँ सब में है हौंसला व सबर,
जहाँ मंजिल है राही की दीवानी,
जहाँ गूंजे हर मौसम की कहानी,
जहाँ हर रंग हर भाव असीम,
जहाँ हर ठोकर व ठुकार असीम।

जब अपनी तलाश तुम यहाँ करो,
तब संयम का तुम शस्त्र गहो।
आनी है अभी रैना, आने हैं अभी ख्वाब।
कुछ बूंदों से नहीं बनता- नमी का सैलाब।

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