भूली नहीं मैं कुछ भी ।
टूटी, हूँ पूरी फिर भी ।
यादें है ताज़ा तन में ।
इरादे थे ज़्यादा मन में ।
ख्वाब थे बहुत अधूरे ।
हुए न जग में पूरे ।
मिला ना कोई अपना ।
टूट गया वह सपना ।
पाया था मैंने जो भी ।
खोया हुआ है वह भी ।
जान ना मैं अब पाऊँ ।
खुद को मैं कैसे सिखाऊँ ?
क्या है खरा? क्या खोटा ?
है कौन बड़ा ? कौन छोटा ?
कल्पना है या हकीकत ?
या सबकी है कुछ कीमत ?
अमूल्य का मोल यहाँ है ।
अतुल्य का तौल यहाँ है ।
भावों के भाव बताएँ ।
मधुरता के बाण बनाएँ ।
रसीले को नीरस करना ।
भद्र को अभद्र बनाना ।
जान ना मैं अब पाऊँ ।
खुद को मैं कैसे सिखाऊँ ?
अल्फाज़ों से अपने मुकरना ।
मिज़ाज़ों को पल में बदलना ।
अमृत में विष घोलना ।
और विष को अमर बनाना ।
आई कारी रैना, हुए कारे ख्वाब,
अब हैं प्यासी नैना, लिए नमी का सैलाब ।