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अरे! गीता तु अभी तक तैयार नहीं हुई है। सुबह से, मैं कितनी बार बोल चुकी हूं, लेकिन तु है कि सुनती ही नहीं। बिल्कुल अपने पापा पर गई है।...क्या और इक बार बोलना पड़ेगा तुझे। बस बहुत हुई पड़ाई, अब किताब रख और जल्दी से तैयार हो जा, सुना क्या? लड़के वाले कभी आते ही होंगे। 

हे... भगवान क्या लड़की है, सुबह से चार बार चाय पी चूँकि है... चारों कप वही पड़े है। और पता नहीं तेरे पापा भी कब आएंगे बाजार से, कब से गए है।

मैं भोजन कब तैयार करूंगी, और मैं अकेले भी क्या क्या करू, तु तो किचन मे आने से रही। तु बड़ी अफसर जो बन गई है अब... (मीना सारी बातें एक ही सास मे बोले जा रही थी, साथ में घर के भी सभी काम कर रही थी।...अरे! माँ तुम क्यो इतना टेंशन ले रही हो जो होना है वही होगा। (गीता अपनी माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए)

गीता :- और मैंने कह दिया है न कि मुझे शादी-वादी नहीं करनी है। मैं बस यही रहना चाहती हूँ, तो आप क्यों जिद कर रही हो। (गीता अपनी किताब के पन्ने पलटते हुए।)

मीना :- हा... ओर यही कहते- कहते तु 21 लड़कों को मना कर चूँकि है।

गीता :- तो क्या करू तुम मानती ही नहीं हो मेरी बात को। मुझे नहीं जाना, मेरा घर छोड़कर किसी दूसरे के घर। समझीं तुम?

मीना :- हा... तो क्या तु जीवन भर यही रहेगी। कभी तो जाना ही पड़ेगा न तुझे।

गीता :- नहीं जाना न कह दिया मैंने।

"दरवाजे की घंटी बजते हुए।"

"ले तेरे पापा भी आ गए। अब उनसे ही बहस कर, कब तक मेरा दिमाग खाएगी। (मीना दरवाजा खोलते हुए।)

क्या चल रहा है, भई... माँ और बेटी के बीच किस विषय पर चर्चा चल रही है। मुझे भी तो पता चले... (मोहन बाजार से लाया सामान टेबल पर रखते हुए।)

तुम ही समझाओ, अपनी लाडली को मेरी बात तो इसकी समझ में ही नही आती है। (मीना, मोहन के हाथों में पानी का गिलास देते हुए, कहती है।)

देखों न पापा... माँ मुझे यहाँ से भगाना चाहती है।

मैं आपको छोड़कर कहीं नही जाऊगी। सुना आपने... (गीता, अपनी माँ कि ओर इशारा करते हुए। कहती है।)

ठीक है... बेटा लेकिन एक बार लड़के को तो देख लो, इसके बाद किसी भी लड़के को नही बुलाऊंगा।

ठीक है... (मोहन, अपनी बेटी गीता को समझाते हुए।)

ठीक है... पापा सिर्फ आप के लिए, लेकिन अब ये आखिर बार होगा। (गीता अपने कमरे की ओर जाते हुए, कहती है।)

हा... बेटा। (मोहन, मीना कि ओर देखते हुए, कहता है।)

"दरवाज़े कि घंटी बजती है"

लगता है वो लोग आ गए। तुम भोजन की तैयारी करो! मैं देखता हूँ। (मोहन, मीना से कहते हुए, दरवाज़े कि ओर जाता है।)

पंडित जी, आप आइये... अन्दर आइये। (मोहन दरवाजा खोलते हुए।)

अच्छा हुआ, आप आ गये। लड़के वाले भी अभी आते ही होंगे। वैसे भी आप ही की वजह से तो गीता को इतना अच्छा रिश्ता मिला है। (मोहन पंडित जी के पैर छूते हुए।)

मोहन जी, वो लोग अब नही आएंगे, उन्होंने मना कर दिया है। इस रिश्ते से। (पंडित जी अपने सिर को नीचे कि झूकाते हुए, कहते हैं।)

नही आएंगें... लेकिन क्यों नही,क्या हुआ कल ही तो बात हुई थी। मेरी उनसे। (मोहन धीमी आवाज में कहता है।)

उन्होंने गीता की तस्वीर देखकर ही हा... कह दिया था। और उन लोगों ने देहज का भी मना कर दिया था। लेकिन वो लड़का घर जमाईं नही बनना चाहता है। (पंडित जी मोहन से कहते हुए।)

लेकिन पंडित जी हमने तो घर जमाईं... ऐसा कुछ नहीं कहा ही नहीं तो...

....कहीं गीता ने तो नहीं कहा, ऐसा उनसे फोन करके। (मोहन सोचते हुए।)

गीता... मीना जरा गीता को बुलाना।(मोहन गीता को आवाज देते हुए, मीना से कहता है।)

हा... पापा कहो, क्या हुआ।(गीता आते हुए।)

बेटा क्या... तुम्हारी कल शर्मा जी के घर बात हुई।

हा... पापा हुई थी। मैंने उनसे बस इतना ही कहा था कि... क्या उनका लड़का शादी के बाद भी यही मेरे घर रहेगा।(गीता ने बिना हिचकिचाते, बहुत ही सरलता से यह बात अपने पापा से कह दी)

लेकिन मोहन जी कोई लड़का अपने माता पिता को छोड़कर घर जमाईं क्यों बनेगा।(पंडित जी अपना मुँह तेड़ा करते हुए।)

क्यों नहीं पंडित जी जरूर बन सकता है। अब मेरे भाई को ही देख लो। वो भी तो अपने माता पिता को छोड़कर चले गए। और घर जमाईं बन गए। (गीता ताने मार के जवाब देते हुए।)

बस कर गीता और कितना बोलेगी।(मीना पीछे से गीता को डाटते हुए।)

ठीक है बेटा... कोई बात नहीं। जाओ, तु अपना काम करो।(मोहन, गीता से बड़े प्यार से कहते हुए।)

मोहन जी आपकी बेटी ने इतना अच्छा रिश्ता तोड़ दिया। और आप उसे डाटने कि जगह पर आप प्यार से बात कर रहे हों।(पंडित जी, मोहन कि ओर बड़ी हैरानी से देखते हुए।)

सब बताता हूँ पंडित जी आपको...

ऐ वहीं लड़की है, पंडित जी जो मुझे मन्दिर कि सीड़ियों पर मीली थी। तब वह सिर्फ चार माहीने कि ही थी। और पता नहीं कौन इस मासूम को छोड़ गया था।

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ऐ वहीं लड़की है, जिसे आप ने घर लाने से मना कर दिया था। और कहा था कि यह लड़की अशुभ है। ये जहां भी जाएगी, वहां बस हानियाँ ही होगी।

पंडित जी, ऐ वहीं गीता है। जो आज तक अशुभ अशुभ का भार उठाते आईं हैं।

आज वह एक कामयाब अफसर बन गई है। और आज हम नहीं, ऐ हमारा पालन कर रही है।

ऐसे लग रहा है कि गीता को हम नहीं, बल्कि गीता ने हमें गोद लिया है। मैंने कोई गलती नहीं कि पंडित जी गीता को मेरे घर लाकर... (मोहन यह कहते कहते भाऊक हो जाता है।)

मोहन जी आपने कोई गलती नहीं कि गीता को गोद लेकर... मुझे अफसोस है खुद पर कि आज मैं गलत साबित हो गया।(पंडित जी का भी गला भर आता है।)

तभी गीता आती है। ओके पापा मैं ऑफिस जा रही हूं।

आती हूँ।(गीता, मोहन और पंडित जी के पैर छूते हुए।)

ठीक है... बेटा (मोहन, गीता को आशीर्वाद देते हुए।)

अच्छा ठीक है, मोहन जी अब मुझे भी आज्ञा दीजिये।

और गीता बेटी तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे लिए इससे भी अच्छा रिश्ता लाऊंगा। ठीक है...

किस के लिए, पंडित जी... अब इस घर में कोई लड़की नहीं है। ये तो मेरा बेटा है।(मोहन, गीता को गले से लगा कर कहता है।)

"पंडित जी की आँखें नम है।"

बाप बेटी का प्यार देखकर उसे खुद पर लज्जा आ रही थी।क्योंकि कि... गीता को मंदिर की सीढिय़ों पर छोड़ कर जाने वाला और कोई नहीं खुद वही था। ईश्वर से कामना करते हुए। कहता है,

हे... ईश्वर मुझे फिर से अगले जनम... मे गीता जैसी ही बेटी देना ताकि.... मैं अपनी इस गलती को सुधार सकूँ।

मैं धन्य हो जाऊँगा।

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