ऐसा है ये देश मेरा
आज़ाद भी है,आबाद भी है
दिल मे बस्ता है ये मेरे,
इसीलिए सच कहु
थोड़ा सा बर्बाद भी है
अठहत्तर साल हो चुके है आज़ादी को
फिर भी नजाने घर से निकलने मे खौफ क्यों आता है
क्या बताऊ हाल मेरा
हाल ही की खबरों से दिल सेहेम सा जाता है
सेनानियों ने कितने ख्वाब बुने होंगे ना इस देश को लेकर
वो लड़ गए अपनी बात पे अड़ गए
क्या इसलिए लड़े थे की
आज़ादी तो मिले पर सिर्फ मर्दो को ही
आज़ादी बाहर निकलने की
आज़ादी आवाज़े कसने की
आज़ादी किसी को छूना हो
वो फिर चाहे एक छोटी बच्ची क्यों ना हो
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ
अब तो पढ़ने से भी नहीं बचती बेटियां
ना ही मरने से बचती है
क्यूंकि चाहे ज़िंदा हो या मुर्दा
चाहे इंसान हो या जानवर
लड़कियां किसी ना किसी के हवस की भेंट चढ़ जाती है
और उसके मुजरिम को चुटकीयों मे बैल मिल जाती है
इस देश की मिट्टी के कन-कन मे बस्ता है लहू उन महावीरों का
जिनके लिए अपनी जान से ज़्यादा अपनी भारत माँ को बचाना ज़रूरी था
माँ के आगोश मे तो बच्चे सुरक्षित रहते है हैना
पर क्या हो की किसी माँ के सामने उसकी बेटी को ही चीर दिया जाये
इतना सस्ता तो नहीं था खून उन शहीदों का
की इस देश को यु रौंद दिया जाए
पढ़ाओ अपनी बेटी को ये उनका हक़ है मगर
अपने बेटे को भी ये सिखाओ
की नहीं होती ना बर्दाश्त किसी की उठती आंखे अपनी माँ या बहन पर
तो वो लड़की जो घर से निकलती है
जो निकलने से भी डरती है
वो भी किसी की बहन है
जिसके शरीर पर तुम्हारी आँखे गड़ती है
और तुम क्या जानो हाल तुम्हारी अपनी बहन का
वो भी जब निकलती है तो कितनी हिम्मत करके कितने डर के साथ
की कोई कसे ना आवाज़ कोई उसके बदन पर डाले ना अपना हाथ
कितना कुछ वो सहती है किसी से कुछ ना कहती है
ऐसा है ये देश मेरा
आज़ाद भी है,आबाद भी है
दिल मे बस्ता है ये मेरे,
इसीलिए सच कहु
थोड़ा सा बर्बाद भी है