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आज के आधुनिक युग में सबसे चर्चित विषय ‘विकास’ है. जब भी विकास की बातें हुईं, विचारधारा ने अपनी खेप जमा लीं. समाजवाद, उदारवाद और साम्यवाद, ये तीनों सबसे चर्चित विचारधाराएं हैं.

लेकिन जब भी विकास की बातें हुईं, गांधी जी के विचार को स्थान दिया गया है. भले ही अपनाया न गया हो. गांधी जी ने हमेशा से गाँव के विकास पर ज़ोर दिया था.

उसी के क्रम को आगे बढ़ाया जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव, राममनोहर लोहिया और चंद्रशेखर जी ने. लेकिन इन सब ने समाजवाद को महत्व दिया.

उदारवाद के विरोध में चंद्रशेखर ने यहां तक कहा है कि बाज़ार और करुणा कभी एक साथ नहीं चल सकते.

इतना ही नहीं, उनका एक क़िस्सा बड़ा दिलचस्प है. यह तब का क़िस्सा है जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. चंद्रशेखर और इंदिरा गांधी की मुलाक़ात हुईं. बातचीत शुरू हुई.

इसी बातचीत के दौरान चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा “मैं कांग्रेस को समाजवादी बना दूंगा और अगर ऐसा नहीं कर पाया तो कांग्रेस को तोड़ दूंगा.”

ऐसी बहुत सी बातें हैं. लेकिन सबसे ज़रूरी यह है कि चंद्रशेखर ने कभी अपने आदर्शो से समझौता नहीं किया. समाजवाद के आदर्श पर अड़े रहे.

समाजवाद की बात हुई तो कार्ल मार्क्स के विचारों को समझना ज़रूरी हैं. जब भी विकास और ग़रीबी की चर्चाएं हुईं हैं, कार्ल मार्क्स ने कहा “ग़रीबी नियति की देन नहीं है. यह इस सामाजिक व्यवस्था की देना है.”

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आप कितना भी मार्क्स को नकार दो. लेकिन सच आज सबके सामने है. उपभोक्ता वादी विचार ने अपना पैर जमा लिया है. जिसका ज़िक्र पहले ही मार्क्स ने कर दिया था.

पहले अधिक मात्रा में उत्पादन करना. फिर विज्ञापन के माध्यम से प्रचार करना. लालच पैदा करना और ऐसा ही हुआ.

आज उपभोक्तावादी समाज पैदा हो चुका है. जो मार्क्स के विचारों की आलोचना करते थे, आज वही लोग वितरण की मांग कर रहे हैं. पूंजीपतियों के धन का वितरण हो. यह बात मार्क्स ने बहुत पहले ही कह दी थीं.

आप कितना भी समाजवाद और कार्ल मार्क्स को नकार दें, लेकिन समाज की वास्तविकता को कभी नहीं नकार सकते.

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