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गांव की और वापस लौटते मज़दूरों को देख जाने-माने मशहूर लेखक और गीतकार गुलज़ार साहब का दिल दहल उठा. मज़दूरों की दुर्दशा को देखकर भावुक हो गए . अपनी भावनाओं को प्रकट करते हुए उन्होंने फेसबुक पर एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में उन्होंने एक कविता सुनाई है. कविता है 'मरेंगे तो वहीं जाकर, जहां पर ज़िंदगी है.’ इसमें उन्होंने पलायन करते मज़दूरों के महत्व उजागर किया है. '

साथ ही उन्होंने मज़दूरों के बिना वीरान होते शहर, खेत-खलिहानों में लगी फसलें और अपनों के साथ रहने का प्रेम जैसी बातें कही हैं. यूं कहें कि इस कविता में गुलज़ार ने मज़दूरों, किसानों और कारीगरों की पूरी की पूरी जीवनी बयां कर दिया है.

गुलज़ार साहब एक मशहूर लेखक, कवि और गीतकार हैं, लेकिन वे हमेशा सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील रहे हैं. अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं. गुलज़ार की पूरी कविता पढ़े-

महामारी लगी थी
घरों को भाग लिए थे सभी मज़दूर, कारीगर.

मशीनें बंद होने लग गई थीं शहर की सारी
उन्हीं से हाथ पाओं चलते रहते थे
वगरना ज़िन्दगी तो गाँव ही में बो के आए थे.

वो एकड़ और दो एकड़ ज़मीं, और पांच एकड़
कटाई और बुआई सब वहीं तो थी.

ज्वारी, धान, मक्की, बाजरे सब
वो बँटवारे, चचेरे और ममेरे भाइयों से
फ़साद नाले पे, परनालों पे झगड़े
लठैत अपने, कभी उनके.

वो नानी, दादी और दादू के मुक़दमे
सगाई, शादियां, खलियान,
सूखा, बाढ़, हर बार आसमां बरसे न बरसे.

मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर ज़िंदगी है
यहाँ तो जिस्म ला कर प्लग लगाए थे !

निकालें प्लग सभी ने,
'चलो अब घर चलें' - और चल दिये सब,
मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर ज़िंदगी है !

आज कोरोना अंतरराष्ट्रीय आपदा बन चुका है. पूरा विश्व इसके चपेट में आ चुका है. भारत में यह महामारी पांव पसार चुकी है. इससे निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च,2020 को देश भर में 'लॉकडाउन’ लागू कर दिया. नतीजा यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह रुक गई. कारोबार ठप्प पड़ गया. कंपनियां बंद होने लगीं. लोगों की नौकरियां जाने लगीं. इतना आर्थिक संकट उभरा कि मज़दूर एक-एक रोटी के लिए तरसने लगे. और आख़िर में मज़दूरों को पलायन करने पर मज़बूर होना पड़ा. सभी मज़दूर दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता जैसे बड़े शहरों से अपने-अपने घर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड के लिए निकल पड़े.

कोई पैदल, कोई सीमेंट मिक्सर मशीन के अंदर बैठकर तो कोई सब्जी से लदे ट्रक के ऊपर छुपकर अपने घरों के लिए निकला. कई लोग साइकिल से तो कई ख़ुद की रिक्शा से ही घर के लिये निकले. लोग किसी भी हाल में अपने घर पहुंच जाना चाहते थे. उन्हें डर है कि कोरोना से पहले भूख से उनकी मौत हो जाएगी.

राज्य सरकारें अपने यहां मजदूरों के लिए बेहतर इंतज़ाम के दावे कर रही हैं लेकिन आए दिन मजदूरों का सड़कों पर उतर जाना उन सरकारों की पोल खोलने के लिए काफी है. गुजरात के सूरत में लॉकडाउन के बाद कई दफा मजदूर सड़कों पर उतर चुके थे. उधर मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मजदूरों की भीड़ को रोकने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. मजदूरों के लगातार पलायन और नाराजगी को देखते हुए केंद्र सरकार ने उनके घर वापसी का फैसला लिया.

केंद्र सरकार ने मज़दूरों की वापसी के लिए स्पेशल ट्रेनें चालू करवाईं. तो वहीं राज्य सरकारें भी मद्द करने के लिए सामने आईं. इसके साथ ही प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को देखते हुए राज्य सरकार ने एक जनसुनवाई पोर्टल भी लॉन्च किया है जहां रजिस्ट्रेशन कराकर प्रवासी मज़दूर अपने घर जा सकते हैं. इस पोर्टल पर प्रदेश के बाहर अथवा दूसरे किसी राज्य के जो लोग प्रदेश में फंसे हैं वो भी अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं.

योगी सरकार ने दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे लोगों को वापस लाने के लिए बसें भेजीं. इसके साथ ही यूपी की योगी सरकार ने अन्य राज्यों से यूपी लौटने वाले कामगारों और श्रमिकों के लिए 20 लाख रोजगार उपलब्ध कराने की योजना पर काम शुरू कर दिया है.

तो वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक उन्होंने भी पंचायत स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर बनाए हैं. इन सेंटर्स पर अच्छा और समय पर खाना, दरी, चादर, कपड़े, बर्तन, मच्छरदानी और चिकित्सीय सुविधा की व्यवस्था की गई है. क्वारंटीन पीरियड के ख़त्म होने पर प्रत्येक प्रवासी मज़दूर को 500 रुपये और बिहार आने में खर्च हुए रेल टिकट की राशि की अदायगी की जाएगी.

राज्य की सरकारें और केंद्र सरकार दोनों मिलकर कोरोना से आई आर्थिक संकट से निपटने की कोशिश कर रहे हैं. और साथ ही किसानों और मज़दूरों को भी अनेक योजनाओं के तहत मदद किया जा रहा है.

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