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इतिहास की यह घटना सबको ज्ञात तो होगी, राकेश शर्मा, भारत के पहले अंतरिक्ष हैं। जब वे अंतरराष्ट्रीय स्टेशन में थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने, उनसे एक सवाल किया था, “अंतरिक्ष से हमारा भारत कैसे दिखता है?” और उनका जवाब था, “सारे जहान से अच्छा हिंदुस्ता हमारा।” भारत की नैसर्गिक सुंदरता, विश्व के हर मनुष्य को, भारत की ओर आकर्षित करती आ रही हैं, फिर चाहे वह कश्मीर की खूबसूरत बर्फीली वादियाँ हो, या फिर गुजरात के कच्छ के रण की सफेद नमकीन रेगिस्तानी रेत, या भगवान की अपनी खुद की नगरी कहे जाने वाला केरल हो। असीम खुबसूरती से संपन्न है, मेरा भारत।

लेकिन यह बात भी ध्यान देने वाली है कि, जिस प्रकार, सिर्फ चार दीवारों को घर नहीं कहा जाता। घर बनता है, घर में रहने वाले लोगों से, उनके आपस के प्रेम से, अपने गर के प्रति उनके लगाव और कर्तव्य से। उसी प्रकार देश बनता है, उसके नागरिकों से। नागरिकों व्दारा किए गए, कर्मों से ही देश का सम्मान गर्व से या तो ऊंचा उठ जाता है, या फिर शर्म से मिट्टी में जा मिलता है।

हम भारत के कुछ ऐसे नागरिकों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे, जिनके नाम इतिहास में दर्ज है लेकिन आज की नई युवा पीढ़ी इसके बारे में कुछ भी नहीं जानती। उनके लिए तो वे उनके इतिहास की किताब के कुछ पन्ने हैं। आज कि युवा पीढ़ी को यह जानना बहुत जरुरी है कि, किस प्रकार से विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए उन्होंने देश के सम्मान के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया। ऐसे गुणों की कमतरता आज की पीढ़ी में हम देख सकते हैं इसी और प्रेरणा के अभाव में वे आसानी से अपने मार्ग से भटक जाते हैं। आज, यही प्रेरणादायी कदम बढ़ाते हुए हम जानते हैं भारत के कुछ महान नागरिकों के बारे में, जिन्होंने भारत को, अलग – अलग क्षेत्रों में नई बुलंदी प्रदान की है।

गणिती क्षेत्र

वैसे तो शून्य का अपना कोई मूल्य नहीं होता। यदि किसी अंक के पहले यह शून्य लगा दिया जाए तो, उस संख्या का मूल्य, वैसे का वैसे ही रह जाता है। लेकिन यदि, यही शून्य संख्या के बाद में लग जाए तो, उस संख्या का मूल्य दस गुना बढ़ जाता है। इसी शून्य की वजह से ही, कहीं ना कहीं गणित का साकार रूप हो पाया है। लेकिन सबसे रोमांचक बात यह है कि, पूरे विश्व को शून्य की भेंट, भारत से ही मिली है। इसके रचयिता थे, भारत के प्रसिध्द गणितज्ञ आर्यभट्ट। इस शून्य के बलबूते पर, आज बड़े-बड़े गणित सुलझाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, विज्ञान के क्षेत्र में बड़े से बड़े अविष्कार किए जा रहे हैं। गणित और शून्य की जुगलबंदी इतनी गहरी है कि शून्य के बिना गणित की कल्पना से भी डर लगता है।

दूसरे महत्वपूर्ण व्यक्तिमत्व इस क्षेत्र में रहे हैं, राधानाथ सिकदार। यह वह अनसुना नाम है जो, यदि अपने समय में, अपने काम के लिए जाना जाता तो, शायद आज वर्तमान समय में, एवरेस्ट पर्वत शिखर की जगह, वह पर्वत शिखर - सिकदार पर्वत शिखर कहलाता। जी हाँ ! सिकदर वही हैं, जिन्होंने सबसे पहले एवरेस्ट पर्वत शिखर की ऊंचाई नापी थी। यह वह समय था, जब भारत में, प्रत्यक्ष रूप से कंप्यूटर थे ही नहीं। और इस जमाने में यदि, कोई व्यक्ति गणित का सवाल आसानी से सुलझा ले तो, उसे ‘कंप्यूटर’ के नाम से जाना जाता था। वैसे ही, राधानाथ सिकदार अपने जमाने में, अपने समय के ‘कंप्यूटर’ कहलाए जाते थे। इतना ही नहीं, उन्हें सरकारी दफ्तर में, कंप्यूटर की नौकरी भी मिली थी। जब सिकदार को, पीक15 (Peak 15) की ऊंचाई नापने का काम सौपा गया तब उन्होंने, Method Of Minimum Squares, Method Of Averages, Trigonometric Calculations इन सबकी सहायता से, 4 साल की अवधि लेकर सन् 1852 में पीक15 की ऊंचाई 29000 फीट बता दी थी और और अंग्रेज ठहरे अंग्रेज, उन्होंने इसके बाद, और चार साल की अवधि लेकर, 1856 में, पीक15 की ऊंचाई 29002 फीट की पुष्टी करते हुए तत्कालीन कर्नल वॉग ने पीक15 का नाम कर्नल एवरेस्ट के नाम पर रख दिया। एक ऐसे शक्स. जिन्होंने कभी एवरेस्ट देखा तक नहीं था। हालाँकि, कहा जाता है कि, अंग्रेजों व्दारा प्रकाशित होने वाले, सर्वे मैन्युअल (Survey Manual) में, एवरेस्ट पर्वत शिखर की ऊंचाई नापने का श्रेय सिकदार के नाम तो था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद, इस मैन्युअल से उनका नाम हमेशा के लिए, गुमनामी में चला गया। तो ऐसी थी, हमारे भारत के प्रसिध्द गणितज्ञ राधानाथ सिकदार की कहानी।

वैद्यकीय क्षेत्र

वैद्यकीय क्षेत्र, ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर इंसानी शरीर में यदि कोई भी बीमारी हो तो, उसकी उचित चिकित्सा कर उस पर योग्य उपचार किया जाता है। आज इंसानी शरीर में, कोई भी अंदरूनी घाव हो या कोई हड्डी टूट गई हो तो, सर्जरी (शल्य चिकित्सा) कर उसे ठीक किया जाता है। आज वैद्यकीय क्षेत्र, भारत में इतना आगे बढ़ चुका है कि, आज भारतीय शल्य चिकित्सक, जटिल से जटिल सर्जरी भी बड़ी ही सहजता से करते हैं। लेकिन यदि, इतिहास की खिड़की से झाँके तो, आपको पता चल जाएगा कि, शल्य चिकित्सा की निर्मिती भारत में हुई थी और इसकी शुरुआत की थी, शल्य चिकित्सा के पितामह आचार्य सुश्रुत ने। आचार्य ने अपने समय में, मृत शरीर को पानी में रखकर, सड़ते हुए शरीर से मानवीय शरीर का अध्ययन किया था। इतना ही नहीं, शल्य चिकित्सा में लगने वाले भिन्न भिन्न प्रकार के औजारों की, उस समय बहुत कमी हुआ करती थी और जैसा कि कहा जाता है, ‘आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है’। इसी मूल मंत्र को लेकर आगे बढ़ते हुए, आचार्य सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में लगने वाले लगभग 121 औजारों का निर्माण किया। इतना ही नहीं, शल्यक्रिया का विस्तृत ज्ञान आचार्य सुश्रुत ने अपनी संस्कृत किताब में संजोए रखा है जिसका नाम है ‘सुश्रुत संहिता’। जो आज के, नये भारत के, वैद्य के लिए है किसी चमत्कार से कम नहीं है। उस समय की बात है, तब यह क्षेत्र ना के बराबर था, उस समय का, आचार्य सुश्रुत व्दारा उठाया गया यह बुनियादी कदम पूरे विश्व के वैद्यकीय क्षेत्र के लिए तथा शल्य चिकित्सा में, किए गए विकास का महत्वपूर्ण भाग रहा है।

सामाजिक क्षेत्र

भारत का यह वह दौर था जब, यहाँ भगवान से भी ऊपर जाती को रखा जाता था। इतिहासकारों की मानें तो अंग्रेजों ने भारतीयों की, इसी दुखती रग पर पैर रखकर, पूरे भारत को अपना गुलाम बना दिया था। यह दुखती रग थी - छुआछूत की। अर्थात उच्च जाति के लोग, निम्न जाति के लोगों को अछूत मानकर, उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। यहाँ तक कि, उनकी छाया तक पड़ने पर, वे खुद का शुध्दिकरण करवाते थे। निम्न जाति के लोगों की हालत पशुओं से भी बदतर थी। उनके साथ होने वाले उच्च जाति के लोगों के, व्यवहार के बारे में सुनकर मन कचोट उठता है। इसी बीच, उनका मसीहा बनकर सामने आए, उन्हीं में से एक, महान व्यक्तिमत्व डॉ. भीमराव आंबेडकर। वे खुद निम्न जाति से आने के कारण, उन्होंने खुद को, इस दुष्चक्र से, मुक्त कराने के लिए बौध्द धर्म को अपनाया था। इतना ही नहीं, जब भारत स्वतंत्र हुआ तब, वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून एवं न्याय मंत्री रहे। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एक विद्वान, विशेषज्ञ थे। भारतीय संविधान के निर्माण हेतु, उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधान का अध्ययन किया था। आज अनुसूचित जातियों को जो भी सुविधाएं प्राप्त हो रही है मुख्यतः आरक्षण, यह सब कुछ डॉ. बाबासाहब की दूरदृष्टि तथा उनके गहन अध्ययन से निर्मित भारतीय संविधान के कारण है। ऐसे भारतीय समाज के महानायक को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम!!

समाज के और एक पहलू के बारे में बात की जाए तो वह है नारी शिक्षा। आज भारत तेजी से प्रगति की ओर बढ़ रहा है, और इसी प्रगति में, लगभग 80% योगदान स्त्री व्दारा किया जाता है। आज भारतीय स्त्री पढ़ी लिखी है, दुनियादारी समझती है और इसका सारा श्रेय फुले दंपत्ति को जाता है - श्री ज्योतिबा फुले और उनकी अर्धांगिनी श्रीमती सावित्रीबाई फुले। पुरातन काल के, भारतीय सामाजिक नियमों के अनुसार, स्त्री का सिर्फ घर की चार दीवारी में रहकर, चुल्हा - चौका संभालना तथा बच्चों को पालना इतना ही काम था। और इस नियम का उल्लंघन कर, जो भी स्त्री घर से बाहर निकलती, उन्हें हीन दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन इसी काल में, श्री ज्योतिबा फुले जी ने, अपनी पत्नी को शिक्षित करने हेतु, पहला कदम उठाया। अपने पति को, अपना सर्वस्व मानने वाली, श्रीमती सावित्रीबाई ने, अपनी पति का यह निर्णय स्वीकार किया और वे इस ओर आगे तो बढ़ी लेकिन, उस समय के पुरुषवादी समाज की, कट्टर मानसिकता का उन्हें शिकार होना पड़ा। भिन्न-भिन्न तरीके से उनको अपमानित किया गया लेकिन, फुले दंपत्ति ने अपनी हिम्मत ना हारकर समाज के उध्दार के लिए आगे बढ़ते चले गए। और आज इसी वजह से भारत की स्त्री, हर क्षेत्र में, अपने देश, अपने माता-पिता तथा अपने समाज का नाम रोशन कर रही है. यदि फुले दंपत्ति ने, अपने अखंड प्रयास जारी ना रखे होते और इस पुरुषवादी कट्टर मानसिकता के आगे अपने घुटने टेक दिए होते, तो पूरे विश्व के समक्ष भारत सिर्फ पिछड़ेपन का एक उदाहरण बन कर रह जाता।

वैज्ञानिक क्षेत्र

वैसे तो वैज्ञानिक क्षेत्र बहुत बड़ा है लेकिन, आज हम विज्ञान के सिर्फ एक ही हिस्से को छूने वाले हैं, वह है खगोल शास्त्र अर्थात एस्ट्रोनोमी। विज्ञान का यह क्षेत्र इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, भारत में, आसमान से तारे तोड़ लाना, चाँद सितारों की बातें करना, सिर्फ कवियों - लेखकों तक ही सीमित था। उसके अलावा किसी ने, कभी यह कल्पना तक नहीं की होगी कि, हम चाँद तारों के पार जाकर, वहाँ के बारे में पढ़ सकते हैं। लेकिन जब पूरे संसार की नजरों में, भारत वह पिछड़ा देश था, जो सिर्फ शुभ - अशुभ के दायरे में बँधा था, तब सभी दायरों को रौंदते हुए, आज का भारत तो मंगल पर भी जा पहुँचा और अपने विरोधियों को दाँतो तले उँगली दबाने के लिए मजबूर किया है। इस में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, भारत के प्रसिध्द वैज्ञानिक श्री विक्रम साराभाई का। अंतरिक्ष अनुसंधान में, इनका योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, आज भारत जो कुछ भी बन पाया है, उसकी मजबूत एवं बुलंद नींव साराभाई व्दारा डाली गई थी। इतना ही नहीं, उन्होंने अंतर -भूमंडलीय अंतरिक्ष और भूमध्य रेखीय संबंध और भू - चुंबकत्व पर अध्ययन कर, भारत तथा भारतीयों को अंतरिक्ष तथा उसके रहस्य को देखने तथा समझने के लिए, एक नई प्रगतिशील दृष्टि प्रदान की है।

राजनीतिक क्षेत्र

हमारे भारत में, पुरातन काल से लेकर, आज के आधुनिक काल में भी, राजनीति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती नजर आ रही है। भारत पर, कई राजाओं, सम्राटों ने अपना राज्य स्थापित किया था। अनेक राजाओं ने, अपने धैर्य, सामर्थ्य से इस धरती को अपने पराक्रम से गौरवान्वित किया है। आज भी, भारतीय इतिहास में, कई महान योध्दाओं, सम्राटों का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। ऐसा ही एक नाम है, भारतीय इतिहास के, धैर्यवान, शौर्यवान, मराठा साम्राज्य के संस्थापक श्री छत्रपति शिवाजी महाराज। आज यहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि, आज के भारत की तीन प्रबल सेनाएँ थल सेना, वायु सेना और नौसेना, जिससे भारत के दुश्मन भी खौफ खाते हैं। इनमें से नौसेना की स्थापना का श्रेय छत्रपति शिवाजी महाराज को जाता है। जैसे कि आप जानते हैं, शिवाजी के अधीन, पूरा कोंकण का इलाका था। जो समुद्री तट पर बसा था और ऐसे में, अपने साम्राज्य को पुर्तगाली, डच, फ्रेंच, जैसे शत्रुओं से बचाने के लिए, उन्होंने ना ही ऐसे अद्भुत समुद्री किलो की स्थापना की थी बल्कि, ऐसी सेना का संघटन किया था, जो समुद्र में रहकर उनके समुद्री तट की रक्षा कर सकें, दुश्मनों से उनके साम्राज्य को सुरक्षित रख सके।

राजनीतिक क्षेत्र में, मैं पाठकों का ध्यान भारतीय इतिहास के स्त्री शासकों की ओर भी खींचना चाहती हूँ, जिनमें से वैसे तो, बहुत सारे नाम हैं, लेकिन, उल्लेखनीय रहेंगा, दिल्ली की पहली महिला सुल्तान, रज़िया सुल्तान का नाम। जिन्होंने अपने पिता के, इंतकाल के बाद, दिल्ली, जो भारत की राजनीति की दृष्टि में, सबसे महत्वपूर्ण गद्दी मानी जाती है। उस राजगद्दी पर बैठकर, पूरे शासन को अच्छी तरह से संभाला था। इसके अलावा और एक नाम उल्लेखनीय रहेगा, झाँसी की महारानी श्रीमती लक्ष्मीबाई गंगाधरराव नेवलकर का। जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद, पूरे साहस और धैर्य के साथ झाँसी की राजगद्दी को संभालते हुए झाँसी को, अंग्रेजों की बुरी नज़र से बचाने के लिए, अपने जीवन की, अंतिम साँस तक वह अंग्रेजों से लड़ती रही। ध्यान देने वाली यह बात है कि, यह दोनों महिलाओं ने, जिन्होंने इस भारत देश की दो महत्वपूर्ण राजगद्दीयाँ संभाला था, यह वह दौर था जब महिलाओं को सिर्फ चूल्हा - चौका संभालने तक ही सीमित रखा जाता था। राजगद्दी संभालना, शासन करना तो बहुत दूर की बात है और इसके अलावा भारतीय समाज में व्याप्त, पुरुषवादी कट्टर मानसिकता भी उनकी बहुत बड़ी दुश्मन थी क्योंकि, उस समय की, पुरुषवादी मानसिकता के अनुसार, किसी स्त्री के अधीन काम करना यानी हीन माना जाता था। तो ऐसी मर्दानी स्त्री शासकों को मेरा सलाम है। आज की युवा पीढ़ी के लिए उन्होंने एक मिसाल कायम की है।

मनोरंजन क्षेत्र

आज बॉलीवुड के चर्चे, विश्व के कोने – कोने हो रहे हैं। यहाँ आज तंत्र – विज्ञान की सहायता से, अनेक नये – नये प्रयोग होते हैं। आज इसकी चकाचौंध इतनी गहरी है कि, किसी को भी अपना दीवाना बना दे। लेकिन इसके इतिहास की ओर देखें तो, उतना ही काला, गहरा अंधेरा है और इस अंधेरे में तिनके का सहारा लेकर आगे बढ़ने वाले थे, भारतीय सिनेमा के जनक श्री. धुंडीराज गोविंद फाल्के यानी दादासाहब फाल्के। अपने कारोबार में हुई हानि के पश्चात, उन्होंने फिल्मकार बनने का निर्णय लिया, क्योंकि उनको मंच, अभिनय, फोटोग्राफी से काफी लगाव था। इसके लिए, उन्होंने उस समय एक सस्ता कैमरा खरीदा तथा, विदेशी फिल्मों का अध्ययन एवं विश्लेषण करना आरंभ किया। इसके बीच भले ही समाज ने उनका हाथ छोड़ दिया था, लेकिन उनकी पत्नी श्रीमती सरस्वतीबाई ढाल की तरह उनके साथ खड़ीं रहीं। उन्होंन अपना स्त्री धन यानी, सारे जेवर तक गिरवी रख दिए थे। दादासाहब के सामने, फिल्म का कोई मानक नहीं था। तो उन्हें कामचलाऊ पध्दति अपनानी पड़ी और सारे काम, जैसे खुद अभिनय करना, दूसरों को सीखाना, दृश्य लिखना, फोटोग्राफी करना, आदि स्वयं करना पड़ा। महिला कलाकार उपलब्ध न होने की वजह से, उनकी फिल्म में पुरूषों ने ही स्त्री किरदार निभाया था। आखिरकार, अनेक मुश्किलों का सामना करते हुए, छह महिनों की कड़ी मेहनत रंग लाई और बनकर तैयार हुई, 3700 फीट लंबी, भारत की पहली मुक फिल्म, ‘राजा हरिश्चंद्र’। अनेक उपेक्षाओं के बावजुद, अपने समय में, यह फिल्म हिट रही। भले ही, हमारी पहली फिल्म मुक थी लेकिन दादासाहब तथा अन्य कलाकारों के परिश्रम ने, पूरे विश्व में, हिंदी सिनेमा को वाचाल करने की ताकत प्रदान की थी। 

भारतीय सेना

भारतीय सेना का तो कहना है क्या? इनके शौर्य से भरे किस्सों से तो, बच्चा बच्चा भी वाकिफ़ है। इनकी एक हुंकार और, दुश्मन के पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। मान लीजिए, यदि किसी देश की सीमाएँ सुरक्षित ना होती तो, देश के नागरिक, देश का विकास कैसे कर पाते? भारत के जवान अपना सब कुछ दाव पर लगाकर, मातृभूमि के प्रेम के लिए दिन-रात, भारतीय सीमा पर तैनात रहते हैं। आज भारत को आजाद हुए 75 साल बीत चुके हैं, लेकिन, हमारे देश के दुश्मनों के इरादों को चकनाचूर करने का, बुलंद हौसला हमारी सेना के पास आज भी मौजूद है। भारतीय सेना के जज्बे, धैर्य, शौर्य ने हमेशा तिरंगे की शान को ऊंचा रखा है। सेना ने हमें सिखाया है - अपना सर्वस्व त्याग कर मातृभूमि पर न्योछावर होना क्या होता है! आजादी के बाद भी, भारतीय सेना ने देश के दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया है, फिर चाहे वह पाकिस्तान हो, या फिर, अन्य कोई देश या फिर, नक्सलवाद ही क्यों ना हो। इस बीच, कई ऐसे सैनिक हैं, जिन्होंने अपने मातृभूमि के लिए मौत को गले लगाया। कईयों के नाम तो, इन 75 सालों के इतिहास में, कहीं दफन हो चुके हैं। दिल भी दहल उठता है, यह कल्पना करके भी, जब किसी जवान का बेजान शरीर, तिरंगे में लिपटा हुआ, घर आता है, तब न जाने, उसके घर वालों पर क्या बीतती होगी। ऐसे हमारे शौर्यवान भारतीय सैनिक तथा उनके माता-पिता, जिन्होंने ऐसी शौर्यशाली संतान को जन्म दिया, सभी को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम!! आपके बेखौफ जज्बे और स्वार्थ रहित बलिदान की वजह से ही, भारत का हर एक नागरिक स्वतंत्र भारत में, खुली साँस ले पा रहा है और इसीलिए मेरा भारत आज ‘अद्भुत भारत’ कहलाता है। आनेवाली हर पीढ़ी, आपके त्याग के लिए, आपकी हमेशा ऋणी रहेगी।

धन्यवाद !!!

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