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किसी ने सही कहा है -

अदब के तो सारे
खजाने गुजर गए,
क्या खूब थे वो
लोग पुराने गुजर गए,

बाकी है बस जमीं पे
आदमी की भीड़,
इंसान को मरे तो
जमाने गुजर गए।

कभी-कभी यह लगता है कि शायद यह पंक्तियाँ, सिर्फ शब्द ना होकर समाज के चेहरे पर से नकाब उतार रहीं हैं। अक्सर यह कहा जाता है कि, घर बनता है, घर में रहनेवाले लोगों से वरना, वह घर न होकर सिर्फ चार दिवारी कहलायी जातीं हैं - काफी समय तक, समाज में यह विचार बड़ी प्रखरता से व्याप्त था। कहीं ना कहीं यह समय था, जब बाकी सब छोड़कर सिर्फ और सिर्फ इंसान को तथा उसके रिश्तों को महत्व दिया जाता था।

भारत की यह पुण्यभूमि गौरवान्वित हो उठी थी जब, इस भूमि पर पृथ्वीराज चौहान, छत्रपति शिवाजी महाराज, राणी लक्ष्मीबाई, जैसे शुरवीरों ने जन्म लिया था। यह वे महान योध्दा थे, जिन्होंने अपने स्वार्थ को, अपनी निजी जिंदगी को बहुत पीछे छोड़ कर, सिर्फ और सिर्फ अपनी मातृभूमि को आजाद कराने हेतु खुद को समर्पित कर दिया था। उनके इन्हीं उत्कृष्ट कर्मों ने, आज तक उन्हें, इस भूमि की जनता के मन पर अपनी अनोखी प्रतिमा की छाप छोड़ने में सहायता की। आज जब कभी भी, हम इतिहास के बारे में सोचते हैं, या फिर इन महान योध्दाओं के बारे में सोचते हैं तो, यह पता चलता है कि, यह सिर्फ नाम नहीं है, इनके नामों के साथ इनके गुणों की एक अनोखी, प्रभावी छवि भी जुड़ी हुई है।

मानव, ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट निर्मिती मानी जाती है, क्योंकि ईश्वर ने, मनुष्य को सोचने, समझने की अनोखी शक्ति से नवाज़ा है। लेकिन, आज यही, सबसे बुध्दिमान मनुष्य की आँखों पर मानो अहंकार, लोभ की पट्टी बँधी हुई है। आज यही ईश्वर की सबसे उत्कृष्ट निर्मिती, खुद को ही इस दुनिया का ईश्वर मानने लगी है। उसे ऐसा लगता है कि, मानो उसके आगे, यह पूरी दुनिया, मानो रेत के समान है, सब कुछ उसी से शुरू होता है और उसी पर आकर खत्म हो जाता है।

आज के युग में, यदि आप देखो तो, मानवीय गुणों की अपेक्षा, पैसे को ज्यादा महत्व दिया जाता है, जिसके पास जितना ज्यादा पैसा, उतनी ही उसकी ख्याति बड़ी।

आज के युग में सबसे दुखदाई बात यह है कि, इंसान अपनी संवेदनशीलता खोता जा रहा है। मानव में ह्रदय होते हुए भी, वह पत्थर बन गया है। ना ही, दूसरों का दुख, उसकी समझ में आता है और ना ही, सामनेवालों की भावनाओं को समझने में, समर्थ होता है। वैसे तो ह्रदय और भावनाओं का गहरा नाता होता है। लेकिन ना जाने क्यों, अब जब ह्रदय ही पत्थर का बन गया है तो, इसमें भावनाएँ आए भी तो कहाँ से? आज नवयुग के इंसान में, भावनाएँ जिंदा तो हैं लेकिन, सिर्फ खुद के बारे में सोचने के लिए। जब बात खुद पर आती है, तब सारी भावनाएँ, सारे रिश्ते - नाते उसे याद आते हैं, लेकिन, जब वही सामनेवाले की बात पर आ जाए, तो वह आँखें मुँदकर खड़ा हो जाता है।

दोगलापन तो मानो आज का नया फैशन ट्रेंड है। लोग शरीर पर, धारण किए हुए कपड़े भी, इतनी बार नहीं बदलते, जितनी बार अपने चेहरे पर लगे मुखौटे बदलते हैं। कभी-कभी आश्चर्य होता है कि, इंसान इतना कपटी कैसे हो सकता है? पहले के जमाने में लोग चेहरे पर की मासूमियत देखकर, इंसान को पर विश्वास रखते थे, लेकिन, आज के युग में, चेहरे पर की मासूमियत सिर्फ एक झाँसा है, सामने वाले को गुमराह करने के लिए।

आप भले ही, एक सफल कारीगर, अभियंता, शिक्षक, अफसर, कोई भी बन सकते हैं, लेकिन आज की दुनिया में, किसी बात को आवश्यकता है, तो वह है, सफलतापूर्वक एक अच्छा इंसान बनना। इस क्षेत्र में, उत्पादकता बढ़ाना बहुत ही जरूरी है क्योंकि, जिस ओर हम जा रहे हैं, कहीं ना कहीं, हम अपने गौरवशाली, महान इतिहास को भूलाकर सिर्फ और सिर्फ इंसानी मशीन बनते जा रहे हैं, जिसमें कोई भी भाव नहीं है।

• हमें बचपन में सिखाया जाता था, तीन जादूई शब्द (Three Magical Words) - Excuse Me, Sorry, Thank You इन शब्दों के साथ, इनके पीछे छिपे भावों को भी बखूबी बच्चों तक पहुँचाया जाता था। उसी प्रकार कम उम्र में ही, बच्चों को खुद का तथा दूसरों का किस प्रकार से सम्मान किया जाए यह बताना बहुत जरूरी है। सिर्फ अपने दोस्त, अपने परिवार तक सीमित ना रहते हुए, अपने आसपास रहनेवाले, अपने साथ काम करनेवाले लोगों की ओर भी किस प्रकार से संवेदनशील रहे इस पर जोर देने की जरूरत है, क्योंकि इस उम्र में हम जो भी संस्कार ग्रहण करते हैं, वह आखिर तक हमारे साथ रहते हैं।

• आज कल की दुनिया में, दुर्लभ बात है - दूसरों पर भरोसा करना। यदि आप चाहते हो कि, आप पर कोई भरोसा करें तो, सबसे पहले आपको यह बात ध्यान में रखनी होगी कि, यदि कोई व्यक्ति, आप पर भरोसा कर रहा है तो, यह आपका कर्तव्य तथा उच्चतम दायित्व होगा कि, आप उसका भरोसा किसी भी कीमत पर ना तोड़े। क्योंकि आपके लिए तो, वह सिर्फ एक छोटी सी बात होगी, जो आपने, अपने स्वार्थ के लिए, तोड़ दी लेकिन, सामनेवाले इंसान के लिए वह एक भयानक अनुभव हो जाएगा कि, वह आनेवाली जिंदगी में, कभी भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर पाएगा। आजीवन के लिए, सामनेवाले व्यक्ति को मानसिक रूप से अपाहिज बना सकता है।

ईमानदारी यह शब्द, हम अपने बचपन से सुनते आ रहे हैं और इसका महत्व भी जानते हैं। लेकिन आज की इस दुनिया में, यह शब्द अपना गुण खो ही चुका है और यह मात्र एक शब्द बन कर रह चुका है। कभी – कभी ऐसा लगता है कि यदि यह कोई वस्तु होती तो, शायद इसे संग्रहालय में रखवाया जा सकता था, जिससे नयी पीढ़ी, को इसके बारे में पता चल पाता। फिलहाल, इस शब्द के अंदर जान फूँकना बहुत आवश्यक हो गया है। नई दुनिया की दौड़ में शामिल होने के लिए, मनुष्य ने अनेक गुणों का त्याग कर दिया है और उसी में से एक है यह ईमानदारी भी है।

परोपकार सच कह रही हूँ, यदि आप अपने आसपास भी देखो तो, हर कोई, सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचता जा रहा है - मेरा परिवार, मेरा सुख, मेरा घर...। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए, इंसान, किसी भी हद तक नीचे गिर सकता हैं। चाहे सामनेवाला, उसका सगा संबंधी ही क्यों ना हो, वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए, उसका गला तक काटने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसीलिए तो, लोभ के चलते, लोग खुद अपने माता – पिता तक की हत्या कर देते हैं। स्वार्थ का त्याग कर, परोपकार को वापस, हमारी जिंदगी में लेकर आना, आज हमारा मुख्य कर्तव्य है।

हाँ! इस बात से कभी भी नकारा नहीं जा सकता कि, एक भारतीय व्दारा, इन महान गुणों का त्याग करना, हमें आज की, इस उन्नत प्रगत कहे जानेवाली दुनिया की दौड़ में, खुद को शामिल करने के लिए बहुत जरूरी था। लेकिन आज यदि आप मुड़कर देखते हैं तो, भारत की तथा हमारे समाज की यह दुर्दशा देखकर बहुत दुख होता है। जैसे, हमारे हाथों की पाँचों उँगलियाँ एक समान नहीं होती, वैसे ही, हमारे आसपास रहनेवाले लोग, एक समान नहीं होते। जैसे ही हम किसी का भरोसा तोड़ते हैं या स्वार्थी बनकर किसी को आहत कहते हैं, हमारे लिए तो वह एक मामूली सी घटना है लेकिन, हमें पता नहीं कि, सामनेवाला व्यक्ति उस दुख को किस तरह से ग्रहण करेगा, शायद वह आजीवन, और कभी भी, किसी पर भी, भरोसा ना कर पाए। यहाँ तक कि, खुद पर भी। शायद, वह अपने जीवन से, इतना बेरुखी से पेश आने लग जाए कि, उसके लिए सिर्फ आत्महत्या यह एक मार्ग बच जाए। तो इसीलिए, जैसे कि कहा जाता है कि ‘जियो और जीने दो’, तो इस हिसाब से, हमें वापस इस इन्सानी शरीर में, इन इन्सानी गुणों को स्थापित करना होगा, ताकि यह जिंदगी सिर्फ हमारे लिए ही नहीं, दूसरों के लिए भी सुखकर साबित हो।

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