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कहते हैं, एक बार एक जगह पर, कई सारे शस्त्र इकठ्ठा हुए थे। यहाँ सारे शस्त्रों के बीच घमासान विवाद हुआ, हर कोई खुद को शक्तिशाली और तेज़ साबित करने पर अड़ा था। इतने में, वहाँ किसी की हँसी सुनाई दी और ये हँसी समय के साथ और भी तेज़ होते जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई शस्त्रों की हरकत को उनकी सबसे बड़ी बेवकूफी करार करने पर तुला था। जब एकाएक सब ने मुड़ कर पीछे देखा तो सबका भ्रम ही दूर हो गया और सब एकदम से चूप हो गए। पीछे और कोई नहीं बल्कि ‘शब्द’ थे!

कहने की बात यह है कि, शब्द ऐसे शस्त्र हैं जो, सामने वाले व्यक्ति को कुछ गुजरने के लिए प्रेरित कर, उनमें सकारात्मक उर्जा पैदा कर सकता हैं या फिर उसकी जिंदगी को पूरी तरह बंजर बनाकर रख सकते हैं। इतना ही नहीं, शब्द आपके व्यक्तित्व को परखने में कारगर होते हैं। समाज में, लोगों के बीच, आपके बात करने का लहज़ा, दूसरों की नज़र में, आपके सम्मान की क़दर को उँचा भी कर सकता है या झुका भी सकता है।

हमेशा कहा जाता है कि हमें शब्दों का इस्तेमाल हमेशा सोच-समझकर करना चाहिए क्योंकि, ये शब्द जो एक बार मुख से बाहर निकल जाए तो वापस निगले नहीं जा सकते है। लेकिन आज के युग में, आप देखें तो, आज की युवा पीढ़ी खुद को ‘COOL !’ दिखाने में प्रयत्नशील रहती है, जिसके चलते उनको हर एक- दो शब्दों के बाद गालियाँ बकते पाया जाता है। भले ही उनका यह मनना है कि, ये सबकुछ सिर्फ उनके ‘CIRCLE’ के बीच होता है, लेकिन आदत नाम की भी कोई चीज़ होती है और आदतन अनेकों बार अपनों से बड़ों को भी गालियाँ दे बैठते हैं।

ये तो रही आज के युवाओं की बात, लेकिन साथ ही काम की जगहों पर भी अक्सर देखा गया है कि कैसे उच्च पदों पर काम करने वाले, उनसे नीचे स्तर पर काम करनेवालों पर अपना वर्चस्व साबित करने के लिए हो या फिर उन्हें नीचा दिखाने के लिए शब्दों के संयम की सारी सीमाएँ तोड़ देते हैं। कई परिवारों में ईर्ष्या को अपना मुख्य औजार बनाते हुए अनगिनत शब्दों की वर्षा की जाती है। भले ही, ये शब्द कोई गालियाँ ना हो लेकिन सामनेवाले को बूरी तरह घायल कर, उसके अस्तित्व को छलनी करने का सामर्थ्य रखते हैं।

व्यक्ति की किसी गलती पर डाँटना अलग बात है, लेकिन बेवजह सिर्फ अपने अहं की संतुष्टी के लिए किसी को अपने शब्दों की नोंक पर खड़ा करना, कहाँ तक सही है ? इतना ही नहीं दूसरों के मन को ठेस पहुँचाकर, उस व्यक्ति की हाय से क्या कभी कोई खुश रह पाया है ? यह बातें साधारण तो हैं, लेकिन अनदेखा करें इतनी मामूली भी नहीं।

भले ही हम कलयुग में जी रहे हो, जहाँ पाप, झूठ और अधर्म अपनी चरम पर है। हर कोई स्वार्थ के रथ पर सवार होकर आधुनिकता का कवच पहने है। आज की पीढ़ी के अनुसार, वह जो करे वही सही। लेकिन इस बात को कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि, समाज में खुद को सम्मानित व्यक्ति के रूप स्थापित करने के पीछे आपके मुख से निकले शब्द अहम भूमिका निभाते हैं। इसीलिए चाहिए की हर इंसान को, चाहे जिस उम्र या ओहदे पर हो, वह अपनी शब्द संपदा को ध्यान से इस्तेमाल करे। 

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