Photo by christian buehner on Unsplash

हमारे कोंकण में मराठी भाषा के बड़े प्रसिध्द संत रह चुके हैं, संत तुकाराम जी। उनका एक बड़ा प्रसिध्द अभंग है –

देह देवाचे मंदिर, आत आत्मा परमेश्र्वर ।।1।।
जशी उसात हो साखर, तसा देहात हो ईश्र्वर ।।
जसे दुग्धामध्ये लोणी, तसा देही चक्रपाणि ।।2।।
देव देहात देहात, का हो जातात देवळात ।।
तुका सांगे मूढ जना, देही देव का पहाना ।।3।।

संत तुकाराम जी ने, अपने अंभग में कहा है कि, इन्सान का शरीर ही अपने आप में भगवान का मंदिर है। जहाँ भगवान का वास होता है। जिस प्रकार, गन्ने में शक्कर की मिठास होती हे, और किसी भी परिस्थिति में, इन दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। संत तुकाराम जी कहते है, भगवान इस धरती पर उपस्थित हर शरीर में मौजूद है, लेकिन फिर भी, इस बात को नज़र अंदाज करते हुए, हम हर समय भगवान के लिए, मंदिर में जाकर आपनी धार्मिकता का प्रदर्शन क्यों करते हैं ? इन बेवकूफों को मानवीय शरीर में बसे ईश्वर क्यों दिखाई देते ?

यदि हर मानवीय शरीर में भगवान के बसने की बात सही है तो, आज के इस आधुनिकीकरण का झोला पहने इस समाज में, रहनेवाला इन्सान, अंहकार, लोभ, स्वार्थ का दामन पकड़े, अपने ही सामने खड़े जीवित भगवान का अपमान कर, मंदिर में जाकर अपनी धार्मिकता का ढोंग बड़ी ही आसानी से कैसे निभा पाते हैं ?

एक समय था, जब बच्चो के अच्छे संस्कारों पर, ज्यादा जोर दिया जाता था। जहाँ बच्चों को यह सीख दी जाती थी, कि हमेशा बड़ों का आदर करना चाहिए। कई बार, वे हमें डाँटते जरूर हैं, लेकिन वे सबकुछ सिर्फ हमारा भला ही चाहेगें। हमे हमेशा विनम्र रहना चाहिए। यही वो संस्कार थे, जिसकी बुनियाद इन्सानियत की नींव टीकी थी। फिर वह दौर आया जब, पैसों के चलते, अपने खुद के माता-पिता को रास्ते पर फेंकने या उन्हें वृध्दाश्रम में भेजने के किस्से सुन दिल कचोट उठता था। लेकिन, अब वह जमाना आ गया है साहब, कि जो कहा जाता था कि, माँ के पैरों में जन्नत होती है, उसी माँ को गुस्से में आकर ना ही सिर्फ मार दिया जाता है, बल्कि उसके शरीर के टुकड़े कर, उन्हें अलमारी तक में छिपाया जाता है।

सिर्फ इतना ही क्यों... याद कीजिए, देश में, जब चारों ओर करोना महामारी का तांडव अपनी चरम पर था। उस समय, सबको याद होगा, जब राजधानी दिल्ली की मस्जिदों में विदेश से आए एक जमात के लोग रूके हुए थे। करोना और न फैले, इस वजह से, उनके भले के लिए ही, उनको जबरन वहाँ से हटाने का फैसला किया गया। जब स्वास्थ्यकर्मी तथा अन्य अधिकारी जब मौके पर पहुँचे तब इन लोगों ने उन पर थूकना शुरू किया। एक ऐसी महामारी, जिसके शुरूआती दौर में, उसके बारे में, कुछ भी सही से पता नहीं था। ऐसे में भी, अपने परिवार से दूर रहकर, सिर्फ आपके भले के लिए, वे वहाँ तैनात थे, लेकिन बदले में उन्हें मिला क्या ? हर एक मनुष्य में, भगवान बसा है... कौनसा धर्म हमें यह सीखता है कि, हमें भगवान पर थूकना है? वैसे भी, करोना महामारी हमें सबसे बड़ी सीख दी है कि, मनुष्य का घमंड, स्वार्थ सबकुछ व्यर्थ है, समय का चक्र जब चलने लगता है, तब एक चुटकी में सबकुछ बदल जाता है।

दोगलापन तो मानो, आज के जमाने का, आज के समाज का फैशन है। अगर आपको यह कला आ गई, तो समझ लेना कि, आप इस संसार में जीने लायक बन गए हैं। आज का इंसान आदतन दोगली जिंदगी जी रहा है। हर दिन, एक मुखौटा पहन के समाज के सामने खुद को पेश करता है। आज की, इस तकनीक की दुनिया में, तकनीक तो मानो वह अंजन है, जिसके ना होने पर, इंसान को घुटन महसूस होने लगती है। हवा-पानी के साथ-साथ, आज अंतरजाल यानी इंटरनेट भी, आम जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है।

बड़े होते - होते कई बार, यह सुना कि, समय के साथ खुद को बदलना चाहिए लेकिन, शायद समय के साथ, बदलते बदलते इन्सानियत ने, हमसे हमेशा के लिए अपना मुँह मोड़ लिया है। शायद, वह दिन दूर भी नहीं जहाँ प्रेम, ममता, करुणा जैसे भाव, उनकी गहराईयाँ आने वाली पीढ़ी को शब्द ब शब्द समझाने पड़ेगी।

आज के जमाने में, जिस पीढ़ी को हम पिछड़ा हुआ मानते हैं, उसी पीढ़ी के, हमारे पूर्वजों ने, हमें दोस्ती के रिश्ते की महत्ता समझाई थी। यह वह दौर था, जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण और श्री सुदामा की दोस्ती तथा भगवान राम और श्री सुग्रीव की मित्रता के किस्से, हर बच्चे को सुनाए जाते थे ताकि, उनमें इस रिश्ते की गहराई, छोटी उम्र में ही उनमें आ सके। आज सोशल मीडिया पर, एक व्यक्ति के अनेक फॉलोअर्स (Followers) हैं, अनेक दोस्त हैं, लेकिन जब, अपने सुख - दुख किसी के साथ साँझा करने की बात आती है तो, यह सिर्फ हमारे मोबाइल स्क्रीन के दूसरी तरफ छपे हुए सिर्फ एक नाम बनकर रह जाते हैं। वैसे ही, शायद, हम भी किसी ना किसी के लिए, एक छपे हुए नाम के अलावा और कुछ नहीं है। क्या इनमें से किसी पर भी भरोसा कर, क्या हम अपनी दिल की बात बेफिक्री से उसे बता पाएँगें ? देखा जाए तो, हर इंसान एक खोकला पुतला बनता जा रहा है। हर एक के अंदर एक सूनापन, एक अंधकार छाया हुआ है.... तो इसमें, इतने सारे वर्च्युल फ्रेंड्स (Virtual Friends) होने के पीछे फायदा ही क्या ?

हाल ही में, समाचार पत्रों के, मुखपृष्ठों पर यह खबर आई कि, जनसंख्या के मयनों में, भारत ने चीन को पछाड़कर आगे बढ़ गया है। आज भारत की जनसंख्या 142 करोड़ हो चुकी है और इससे आगे भी बढ़ेगी लेकिन, कहीं ना कहीं, मन में, इस बात का संदेह उठ रहा है कि, इस जनसंख्या के आंकड़ों को लेकर हमें गर्व करना चाहिए या आज की स्थितियों को देखते हुए, आगे आने वाली संकटों के बारे में सोच कर डरने की जरूरत है।

माना, यह कलयुग है!! पुराणों के अनुसार, आनेवाले समय में इस युग में, पाप सत्य पर हावी जाएगा। आज की स्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है, मानो, इसकी शुरूआत अब हो चुकी है। कहीं ना कहीं, यदि यह बात, हम अपने मन में रखें कि, मनुष्य का शरीर माटी का बना है और एक दिन माटी में ही जाकर मिल जाएगा... कि हर मनुष्य में ईश्वर का वास है.... और अपने कर्म करें तो शायद इस संसार में, जरूर बदलाव आऐगें। आखिरकार, मनुष्य के ना धन की गिनती होती है, ना उसके फॉलोवर्स की और ना समाज में प्राप्त उसके औहदे की... गिनती होती है तो, सिर्फ और सिर्फ मनुष्य के कर्मो की !!

धन्यवाद

.    .    .

Discus