मोहताज नहीं किसी परिचय का
अपनी जिसकी कहानी थी
बिन पंखों के उड़ान जो भरता
बात हवा से करना निशानी थी।।

अरि मस्तक पर दौड़ लगाता
ऐसी चढ़ी जवानी थी
फुर्ती की क्या बात करें हम
उससे तेज फिरती न पुतली राणा की।।

विकराल वृजमय बादल सा जो
गढ़ी शत्रुओ ने ही जिसकी कहानी थी
दंग रह जाते उसके करतब देख सब
गति-बुद्धि जिसकी, किसी के समझ न आनी थी।।

सरपट दौड़ता राणा को लेकर
चाल में जिसकी रवानी थी
तीर, तलवार-भालों से रक्षा करता
कभी आंच न राणा पर आने दी।।

प्रहार करता शत्रु पर ऐसे
देरी सोच राणा के मन में आने की
निडर-निर्भीक जो किले भेदता
जिसे वीरगति भी युद्ध में पानी थी।।

घायल था पर जिम्मेदारी जिसकी
राणा की जान बचानी थी
भरी चौकड़ी पूरी शक्ति से
जो अंतिम राणा को उसकी सलामी थी।।

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