प्रेम की अथाह क्या श्री राम बताऊं
समुद्र से गहराई बिसात है क्या|
जन्म जन्म के प्रेमी दोनों
दो शरीर और एक थी जान।।

एक ईश्वर एक शक्ति
थे ब्रह्मण्ड निर्माण में एक साथ
जन्म सृजन है एक का कार्य
दूसरा करता पालन-पोषण और संहार।।

तड़पते बिलखते श्री राम है मिलते
जब रावण ले जाता सीता साथ
अशोक वाटिका जपती मिलती
भूखी-प्यासी जय श्री राम।।

अग्नि परीक्षा जो लेते सीता की
और ज्यादा बढ़ाते सीता का मान 
हर कदम पर खुद परीक्षा देते
पर किसी को होने न देते कभी अपने दुख दर्द का भान।।

सीता का दुख तो दुनियां देखी
क्या श्री राम के अंतर्मन का उनको ध्यान
बिता न सुख के दिन कुछ 
लोग परीक्षा लेते रोज अड़ंगे डाल।।

बिन अर्धांगनी यज्ञ न होते तो
सोने की मूर्ति रखते पास 
संपन्न करते सभी धर्म कार्य
हमेशा उस मूर्ति को सीता मान।।

वनदेवी जब वो कहलाती
हमेशा मर्यादा पुरुषोत्तम की करती बात 
बाल-बच्चों गा सुनाती
महिमा प्रभु की वो दिन-रात।।

कलंक के डर से माता छोड़ते
और छोड़ते सुख-चैन और धन-वैभव साथ 
भू धरा को मानते अपना बिछौना
हो मौन-शांत-चित्त करते सीता का ध्यान।।

प्रश्न चिह्न लगाती उनके धर्म-कर्म पर 
एक दिन आकर खुद की संतान
क्या गुजरी होगी उसके दिल से पूछों
जीवनभर सुख न पाया जो इंसान।।

प्राण छोड़ते पिता प्रेम
माता त्यागती प्राण ले सीता का नाम
राज करता भाई उनके नाम पर
भरत, महल-सूख-सुविधाओं सब करके त्याग।।

हनुमान के प्रभु प्यारे
सुग्रीव के मित्र की तुलना क्या 
निषाद राज से जिनका रिश्ता अटूट
भाव राजा विभीषण का अचंभित करता।।

अमर प्रेम की अमर कहानी 
प्रेम, त्याग, बलिदान जहां एक समान
प्रेम में डूबे मात-पिता संग भाई-बंधू
वही रामायण कहलाती श्री सिया-राम का धाम।।

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