आखिर मनुष्य चिंता क्यों करता है,जब इस सृष्टि की रचना भगवान ने की तो यह चिन्ता तो उनकी होनी चाहिए कि मानव को पैदा किया है तो उसके रहने ,खाने का इन्तजाम करे। परन्तु ऐसा नहीं है।मानव को जन्म से ही अपना अधिकार पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है ।यही उनकी चिंता का कारण बनता है। जबकि सब यह कहते हैं कि भगवान मदद करेगा। परन्तु आजकल भगवान उनकी परीक्षा ज्यादा लेते हैं जो उनको मानते हैं। ऐसा क्यों होता है? मानव की मानसिक चिंता का कारण स्पष्ट रूप से तो नहीं परंतु वैकल्पिक दृष्टि से ही सही सुलझाने का प्रयत्न करना चाहूंगी ।
चिंतन मानव मस्तिष्क की उपज है।जिसमें मानव का सम्बन्ध उसके जैविक विकास क्रम से ही नहीं, अपितु सामाजिक विकास क्रम से भी है। चिंतन व अवधारणा है जो उसके निर्णयो, सिद्धांतों को परावर्तित करके उसके विभिन्न समस्याओं के समाधान से जुड़ी है।मनुष्य का चिंतन उसके वाणी व विचार से जुड़ा है जो की भाषा के रूप में व्यक्त किया जाता है।
आज के जीवन में मनुष्य तनावग्रस्त जिंदगी जीने के लिए लाचार है। घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई, बैंक ऋण आदि से आज हर इंसान परेशान है, की कमाए क्या और खाए क्या? स्वाभाव परिवर्तन से जहां पारिवारिक जीवन तनावग्रस्त होता है वही कार्य स्थल एवं सामाजिक संपर्क के लोग भी दूरी बना लेते हैं।
हमें इस विषय पर चिंता नहीं चिंतन करने की आवश्यकता है क्योंकि, चिंता और चिता में केवल बिंदी का फर्क है। जो हर मनुष्य के लिए घातक होता है चिंतन हर क्षेत्र के लोगों के लिए अलग-अलग दायरा तय करता है ,जैसे कवि, लेखक ,नेता ,व्यापारी, पत्रकार, मंत्री, अधिकारी, डॉक्टर, गरीब ,अमीर आदि। अगर गरीब अपनी रोटी- रोजगार की चिंता करता है तो अमीर अपने कमाए पैसों को कैसे खर्च करें इस विषय पर चिंतन करता है।
अतः प्रश्न उठता है आदर्श मनुष्य कौन है? वह जो रोगों से सर्वथा मुक्त होकर देवत्व के सिंहासन पर विराजमान है, अथवा वह जो मानवीय दुर्बलता का सामना करके बराबर उन से ऊपर रहने के प्रयास में है। मनुष्य का सामान्य लक्षण एक प्रकार का मानसिक संघर्ष है । मनुष्य जब तक मनुष्य है तब तक उसके भीतर इस प्रकार भी भावनाएं अवश्य जागेंगी। बस लक्षण थोड़ा भिन्न होगा। सामान्य मनुष्य इन भावनाओं की अधीनता को स्वीकार कर लेगा, किंतु उच्च मनुष्य उन्हें अपने नियंत्रण में रखेगा।
चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें वातावरण के अंदर मिलने वाली सूचनाओं का जोड़ व तोड़ है। चिंतन समस्या समाधान संबंधी व्यवहार है। चिंतन बिना कोई पूर्वाधार के नहीं होता। चिंतन चिंतक के पूर्वज्ञान तथा पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है। अतः चिंता नहीं चिंतन करिए और मस्त रहिए।
हम तो चले थे अपने सपने सजाने,
कम्बख्त किस्मत ही हमसे दगा कर गये,
कुछ हम झुक गये कुछ ने चलने न दिया,
कुछ हमारे ही हमसे बद्जुबां कर गये।।
मैं मंजिल के बहुत करीब थी मगर,
कुछ ने बनने न दिया और गुमां कर गये।
हम न तब दूर थे और न अब दूर हैं,
पर न जाने कितनो को हम खफा कर गये।
न तो साहिल मिला न तो मंजिल मिली,
अब तो रब भी हमसे इन्तिहा कर गये।