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The Garland of Independence movement is Decorated by many stories of revolutionaries and martyrs. One such gem of revolutionaries is Shahid Ram Prasad Bismil, whose magnum opus motivated and keeps motivating many more.

There was an idea, to pay homage to his great creation, by re-imagining it in modern scenario. This 75th anniversary of our great independence, let's ask ourselves few questions... to make ourselves worth their sacrifice.  

जश्‍न-ए-आजादी के दर पे, आज आया एक ख़याल
नज़्म-ए-हिन्दुस्तान के ज़रिये, क्यों न पूछे कुछ सवाल!
क्या वुस'अत-ए-हौसला बाकी, बची मंजिल में है?
सरफ़रोशी की तमन्ना, क्या हमारे दिल में है..?

सच है सहमा, रब भी चुप है, कोई कुछ ना बोलता.,
बिखरे चौराहों पे परचम, क्यों लहू न खौलता ?
झूठे पैमानो के चर्चे, अब भरी महफ़िल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना क्या हमारे दिल में है..?

जो भी कल तक एक थे, बट से गये क्यों, आज हम ?
दर्द उनका देख कर भी, क्यों हुई आँखे ना नम ?
क्या बचा जज़्बा का कतरा, कूचा-ए-क़ातिल में है ?
सरफ़रोशी की तमन्ना, क्या हमारे दिल में है..?

क्रांतिओ से था बुना जो, क्या यहीं वह आज है ?
या किसी अंजाम का, ये फिर नया आग़ाज़ है ?
क्या तम्मना-ए-शहादत आजके बिस्मिल में है ?
सरफ़रोशी की तमन्ना क्या हमारे दिल में है..?

था शहादत का जो मंज़र , आज भी वो याद है।
भूले उनके ख़्वाब हम, बस एक यही फ़र्याद है
फ़िर से दट के हो खड़े हम, गर वतन मुश्किल में हैं
सरफ़रोशी की तमन्ना, हा..हमारे दिल में है !!

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