Source: Image by VISHAL KUMAR from Pixabay

जीव के अंतस हृदय में अगर सबसे गहराई तक किसी वस्तु का प्रवेश होता है तो वो शब्द है। कृष्ण ने गीता में कहा- “मैं शब्द हूँ।” दुनिया में अगर सबसे बड़ी सावधानी रखनी हो तो शब्दों की सावधानी है। शब्द में ही ईर्ष्या है शब्द में ही प्रेम है शब्द में ही प्रार्थना है शब्द में ही मौन है।

ब्रह्म की वो सबसे सरल प्राप्ति है शब्दाकाररूप। श्रीभगवान अपने से ज़्यादा करुणामय अपने शब्द को बना गए। वो शब्द जो मानस के हैं गीता कज हैं भागवत के हैं जो महामंत्र के हैं। उसपे सबसे गहरा प्रभाव है। वो वैखरी है। वो वर्णरूपा हैं। शब्दों में एक समाधि भाषा है। एक शब्द में व्यक्ति समझ गया। सूत्र।।

प्रेम का उजागर सबसे पहले उन शब्दों से ही हो सकता है। जब प्रेम अपनी उत्ताल तरंग लेता है तो शब्द का उदय होता है और जब अपनी पूर्णता पर पहुँच जाता है तो वो भी मौन हो जाता है। गोपीगीत के बाद गोपी मौन हो गयीं हैं। जो आधा डूबा होता है वो हल्ला करता है जब व्यक्ति पूरा डूब जाता है तब आवाज नहीं करता।

एक साधक के जीवन में सबसे पहला प्रभाव उसकी साधना से उसकी वाणी की सार्थकता में होता है। इसलिए तो श्रद्धावान लोग कहते हैं- महात्मा जो कह दे वो होगा। बस आप कह दो। भगवान को भी आपके कहने को सम्हालना पड़ेगा निभाना पड़ेगा। महात्मा के शब्दों में सार्थकता आ जाएगी।

कृष्ण आधीन हो जाएँगे किसी महात्मा के शब्दों को सार्थक करने के लिए।

उसे कैसे झुठला सकते हैं।

सारा खेल वाणी और शब्दों का है।

अतः प्रयोग से पूर्व विचार अवश्य करें ।

Discus