यही संसार का रूप है, हम कहाँ लम्बी-लम्बी आशाएं करते फिर रहे है। हमारे जीवन के अच्छे कृत्य के लिये अगर हमारी आकांक्षा है कि समाज प्रशंसा करेगा तो हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं है। हमारे किए गए अच्छे कृत्य की प्रशंसा समाज नहीं कर सकता पर हाँ, अगर हमारे अच्छे कृत्य से हमारे माता-पिता, गुरुवर, स्वजनऔर सबसे उप्र हमारे गोविन्द हमारे कान्हाजी प्रसन्न है तो कोई और प्रसन्न ना हो तो परवाह ना करें बस आगे बढ़ते चले । वही सद्कृत्य है।

समाज का रूप तो विकृति भी है। श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी जब हैं तब बड़ी बड़ी काशी में उन्हें झंझट झेलने पड़ते हैं बाद में सब लोग आज तक मानस का पाठ कर रहे हैं। जब श्रीमीराजी होती हैं तब जहर पिलाया जाता है आज सब मीराजी के भावों को गाते हैं। न सूरदास जी को छोड़ा।

श्रीमनमहाप्रभु रात्रि में कीर्तन करते हैं, श्रीवास आंगन में तो बाहर माँस और मदिरा रख दी जाती है कि ये लोग रात्रि में पता नहीं क्या करते हैं की इतनी निन्दा सहन होती है। हरिदास ठाकुर के ऊपर कोड़े पर कोड़े बरसते है।

न बुद्ध को छोड़ा समाज ने, न महावीर को छोड़ा। जहर दे दिया।समाज का अपना ही स्वरूप है।


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