प्रेम का आधार विश्वास है। विश्वास का मतलव faith नहीं होता, विश्वास का मतलव believe भी नहीं होता विश्वास का मतलव existence होता है। पहले विश्वास जाता है फिर हम जाते हैं ।

पर एक बात बताऊँ भगवान में विश्वास है इस बात को कहना अलग बात है पर भगवान में विश्वास है इस बात का हमारे जीवन में दिखना अलग बात है। ये दोनों अलग बात है। हमारा आचरण खुद इस बात को प्रमाणित करेगा कि भगवान है कि नहीं। उसकी सत्यता का अनुभव तभी होगा जब यह हमारे आचरण में है। किसी का होना अगर हम मान रहे हो तो हमारे व्यवहार में फरक आएगा।

एक चीज सामान्य दृष्टांत से कह रहा हूँ- एक चोर चोरी करने गया उसे लगता था कोई नहीं देखता था तो चुरा लिया उसने। आजकल सिस्टम बदल गया कैमरा लगने लगा। अब अगर उसको ये मालूम है कि ये कैमरा में से मेरा रिकॉर्ड हो रहा है तो क्या वो चोरी करेगा? उसी सड़क पर जहाँ वो चोरी करने जाता था कैमरा लगने से उसके व्यवहार में परिवर्तन हो गया।

इसलिए ये बात कह देना कि हम भगवान में विश्वास करते हैं और इस बात का अनुभव कर लेने में बहुत बड़ा फरक है। सच में अगर उसपर विश्वास है तो जीवन कुछ अलग सा होना चाहिए। भक्तों का स्वरूप विश्वास का ही स्वरूप है। वो भगवान भी हैं हम भी हैं विश्वास के जागरण होने की ज़रूरत है।

इसलिए वो प्रसिद्ध भजन है

कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं,
बैर शबरी के जैसे खिलाते नहीं।

मतलब भोजन भी है भगवान भी हैं शबरी की कमी है। वो आ जाए तो राम बैर खाने को तो तैयार हैं।

मीराजी रम गयी थी कान्हाजी में तो गले मैं डाला सर्प भी हार बन गया।

बात हर पल हर स्वरूप में ईश्वर को महसूस करने की हैं।

जय गुरूदेव..!!

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