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जिंदगी कहती हैं ,
रुक जा तू ज़रा|
ज़र्रा ज़र्रा तुझे चाहता है ,
थम के तो देख ज़रा|
दुनिया की दौड़ में आगे ना निकल जाना ,
हाथ थामकर रखने वाले को कहीं खो मत देना|
जिंदगी कहती हैं ,
रुक जा तू ज़रा|
बीतें हुए लम्हे ,
आने वाले कल में भी मिलेंगे|
अभी के तराने को ,
खो देता है क्यूँ ?
इस दुनिया के शोरगुल में दिल का सन्नाटा चुबता नहीं हैं ,
सन्नाटे में इस दिल की बातें अक्सर कोई समझता नहीं हैं|
जिंदगी कहती हैं ,
रुक जा तू ज़रा|
रुक के देख ,
खुद के कदमों को ज़रा|
किस रह से आया हैं ,
किस रह को जाएगा ?
मंजिल का पता अक्सर दिलों को होता नहीं हैं ,
सफ़र दिलचस्प ये दिल ही तो बनाता हैं|
जिंदगी कहती हैं ,
रुक जा तू ज़रा|
जाएगा अकेला ,
फिर भी कहाँ ?
मन-अंतरमन छोड़ेगा नहीं ,
नज़र अंदाज़ करदो तो ये संभलेगा नहीं |
जिंदगी कहती हैं ,
रुक जा तू ज़रा |
प्रेम तो धरोहर है ,
जो पनपती घरों में हैं|
व्याकुल मन को समझाओ ना ,
खुद को तराशने में शायद अब भी कमी हो गयी|
जिंदगी कहती हैं ,
रुक जा तू ज़रा|
नीव की खुद को,
कर मजबूत इतना|
तुफानो से गुज़र कर खुद के लिए थोड़ा और संवर जा ,
समुद्र से भी ज्यादा गहराई में खुद की उतरना हैं खुद को|

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