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खामोशियाँ गुनगुनाती है अलफ़ाज़,
जो दिलाते है बीते हुए दिनों की याद।
खामोशियों से भागता है हर कोई,
फिर खुद को जकड़ा हुआ पाता है खामोशियों में ही।

खामोशीयों का तरन्नुम,
खामोशीयों के लिए तरसे सदा।
खामोशियाँ गुनगुनाती है अलफ़ाज़,
जो दिलाते है बीते हुए दिनों की याद।

खामोशियाँ अच्छी नहीं,
दो दिलों के दरमियाँ।
खामोशीयाँ ही है वो धुरी,
जो कभी होने ना दे दो दिलों में दूरी।

खामोशियाँ गुनगुनाती है अलफ़ाज़,
जो दिलाते है बीते हुए दिनों की याद।
खामोशियों का फलसफा,
कोलाहल में जाता है खो।

खामोशियों की ऋुत हैं  कहाँ?
सारी ऋतुओं में हो जाती हैं वो फना।
खामोशियाँ गुनगुनाती है अलफ़ाज़,
जो दिलाते है बीते हुए दिनों की याद।

खामोशियाँ  भी होती है अजीब,
कोई उस सन्नाटे को चीरता हुआ बात करले वोही लगे कोई रकीब।
खामोशीयाँ और उसकी बेसुध हवा,
सुध - बुध  छीन ले और बना दे अपनो को भी अंजाना।

खामोशियाँ गुनगुनाती है अलफ़ाज़,
जो दिलाते है बीते हुए दिनों की याद।
खामोशियाँ भी करती है हिफाज़त,
रिश्तों के उलझे हुए किस्सों को देती है सुलझा।


खामोशियों में  ही तो होता है वो क्षण,
जब परमध्यान की अनुभूती होती जिसके लिए मिला ये मानव तन।

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