अब नींद नहीं हैं ,
इन आँखों मे|
बस अनगिनत सवाल ही है ,
सपनो की सौगातों मे |
एक पहेली है ,
नारी एक अधूरी जिंदगानी है |
कोई भी उसे संतुष्ट ,
कर पता नहीं |
फिर भी सबको संतुष्ट करने की,
उसकी क्यूँ जिम्मेदारी है ??
आखिर क्यूँ बंधना पड़ता है ??
नारी को एक डोरी मे |
कोई बंधन टूट ना जाए ,
कोई सम्बन्ध छुट ना जाए |
क्यूँ ये खौफ एक नारी को ??
अंतर्मन मे रखना पड़ता है |
क्यूँ हर एक नारी को ??
अपने अस्तित्त्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है |
जब की पुरुष प्रधान समाज की ,
उत्पत्ति करने वाले प्रथम पुरुष की |
"जननी एक नारी ही कहलाती है "
नारी क्या सिर्फ एक कश्ती हैं ??
जिसका कोई किनारा नहीं |
तूफानों मे ,
रिश्तो को संभालना क्या सिर्फ उसकी जवाब दारी है ??
क्यूँ उसका हर एक सपना अधुरा रहता हैं ??
बस एक परिवार भी उसका पूरा ना होता है |
हिस्सों मे बटकर भी ,
हर एक किस्से मे उसका दर्पण धुंधला पद जाता हैं |
मातृत्व की धरोहर होती हैं ,
बचपन मैं अपनाई जाती है |
फिर क्यूँ ??
भरी जवानी के कारण खुद के बच्चो से ठुकराई जाती हैं |
कोई हमसफ़र उसे मिल पाता नहीं ,
पति के हृदय को भी जीवन भर रास आती नहीं |
अगर कुछ कहदे वो ,
तो शिकायतों का द्वार लगती है |
अगर चुप रह जाए तो ,
नज़र अंदाज़ करने की खामिया सिर्फ उसी मे झलकती है |
क्यूँ स्त्री को कभी देवी ,
तो कभी शक्ति कहा जाता है ??
फिर क्यूँ हर पल बलात्कारी द्वारा ,
उसे कुचला और मसला जाता है ??
नयी कोपलें कैसे प्रस्फुटित होंगी ,
जब कन्या भ्रूण हत्या होती चली जायेगी ??
किसी को उससे प्रेम होता नहीं ,
फिर भी प्रेम वो न्योछावर करे |
यही आकांक्षा ,
सबके हृदय मे पलती है |
नारी को हर रूप मे ,
बस प्रतारणा मिलती हैं |
और देखो पुरुष जगत का आडम्बर ,
मंदिरों के नाम पर भी |
गुरु वेश धारी ,
उसे सम्भोग की वास्तु ही समझते है |
कितने ज्योतिषी ऐसे हैं ,
जो दोष भी सिर्फ कन्या की कुंडली मे ही डुंडा करते है |
क्यूँ लड़की के माँ बाप को डराया जाता है ??
शादी के नाम पे बस धंदा किया जाता हैं |
जबरन शादी के नाम पे लड़कियों को ,
बस ख़रीदा और सरहद पार बेचा जाता हैं |
बेटी बचाओ बेटी पड़ाओ,
ये लगता सिर्फ नारा है |
किस्मत वाली है वो कन्या ,
जिसको मिला सुलझा हुआ घराना है |
पंख मिल जाते हैं ,
हम लड़कियों को |
अपनी अपनी ,
माँ के गर्भ से |
पर भूल जाते है ,
उड़ने के लिए|
ये समाज ,
बना ही नहीं है |