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वो बस एक पल था ,
जो आहिस्ता से गुज़र गया|
ना देखा मैंने उसे,
पर वो मुझको बदल के समझा गया|
एक एक पल,
कैसे जाता हैं बीत|
सपने हज़ार दिखाता  हैं,
सुना के विद्युत संगीत|
वो सितारों से भी रोशन होकर,
आसमान में जगमगा जाता हैं|
आँखों में झिलमिलाकर,
आने वाले पल की दस्तक देता हैं|
अँधेरे को चीर कर,
नए सवेरे का पैगाम दे जाता हैं|
सर्द आहट से,
गालों को सहला जाता हैं|
एक नयी मासूमियत से,
दिल को खिला जाता हैं|
बीते हुए लम्हों को,
यादों में सजा जाता हैं|
तस्वीर आने वाले कल की,
धुंधली सी समझा जाता हैं|
अपनों से दूर हुए लोगों को,
फिर से एक धागे में पिरो जाता हैं|
भूले हुए नगमों को,
फिर से दोहोरा जाता हैं|
कुछ अनकहे जज्बातों को,
लफ़्ज़ों से झलका जाता हैं|
हर बंधन को,
अटूट कर जाता हैं|
जो टूट कर बिखर गए हैं,
उनको कहीं और पनपा जाता हैं|
होंसलों को,
फिर से बुलंद कर जाता हैं|
जो रूठे हुए हैं,
उनको फिर से मिला जाता हैं|
कोई मदहोशी में भी,
सब समझ जाता हैं|
कोई जागता हुआ भी,
मदहोश हवा में खो जाता हैं|
एक दुसरे को देखने की चाह,
दिल को छुपके से दे जाता हैं|
मीलों दूर फासलों पर भी,
खुशहाली बिखेर जाता हैं|
एक लहर दौड़ती हैं,
अनगिनत जज्बातों की|
एक शुरुवात है नयी,
भगवन का नाम जपते हैं सभी|
आसान डगर होती नहीं कोई,
फिर भी चलने का होंसला कम होता नहीं कभी|
एक अजीब दस्तक भी होती हैं,
देर रात आहट से घबराहट भी होती हैं|
आस पास मन रमता भी नहीं,
नज़र अंदाज़ सबकर उड़ जाता हैं कहीं|
दूर हैं वो तारा जिसे कहते ध्रुव हैं,
अजीब हैं ना अंतरिक्ष में वो रुकता कभी नहीं हैं|
हम रुके हुए हैं,
फिर मन रुकता नहीं हैं|
निराशा भी हलकी पड़ जाती हैं,
उम्मीद के सूरज से आसमान रोशन जब हो जाता हैं|
वो नज़रें रात भर टकटकी लगाए,
सो कर एक भी पल खोना नहीं चाहती|
अपनों से दूर होकर भी,
यारों से दूर होना नहीं चाहती|
कदम उनके रुकते नहीं,
नृत्य की धूरी वो छोड़ सकते नहीं|
कोई प्रेम रंग में डूबा हैं,
अपने बदलते हुए अक्स को खुद ही खुद में देखा हैं|
अनजाने सफ़र में चल पड़े,
अनजाने साए भी मिलने को हैं|
वो साए भी छुट गए,
बसंत ऋतू में जो खिलखिलाना सिखाते थे|
ये रूह की जिज्ञासा शांत होती नहीं,
किस्मत के पन्नों को पलट देती हैं जो तकदीरें|
कृष्णमयी हैं जिंदगी,
जिंदगी जो खेल गयी रहस्यमयी अठखेली|
समझ समझके भी जो हैं परे,
स्त्री हैं वो खुबसूरत एक पहेली|
वक़्त तो बदलता बाद में हैं,
स्त्री के अंतरमन को पहले ही समझ आ जाता हैं|
ये पल भी बहुत विशिष्ट हैं,
अगर नवजात शिशु जन्मा कहीं हैं|
ये वक़्त भी बदलता हुआ,
उसके नाम में अपना अंश छोड़ जाता हैं|
ताउम्र दुनिया याद रखे,
ऐसा काम वो कुछ कर जाता हैं|
रिश्तों की भी धूरी घूम रही हैं,
बचते बचाते एक दूजे में प्यार से उलझती जा रही हैं|
ये मोह दुनिया का आखिर छूटेगा कैसे?
शिव और विष्णु जो मिलें,
मोहिनी रूप वो क्यूँ ना धरें?
इस मोह में भी तो उसी का वास हैं,
जो कृष्ण की बंसी में आज भी विद्यमान हैं|
दिखती नहीं पर होगी तो कहीं,
राधा की इच्छा शक्ति खुद में बटोरे हुए गोकुल की गलियों में वहीँ|
हर पत्ता हिल रहा हैं,
चांदनी रात में हमे अपनी ओर खीच रहा हैं|
ये सन्नाटा भी कुछ मधुर हैं,
खुद से खुद की पहचान करने का अस्तित्त्व हैं|
ये एक पल नहीं,
हर पल को अपने में समेटा हैं|
कभी यादों को अश्रु में झलकता हैं,
कभी खुद ही किसी की मुस्कान में झलक उठता हैं|
ये पल इतना ख़ास होता हैं,
पल पल हर दिल के पास रहता हैं|
बहुत से लोग इस पल में चिल्ला उठते हैं,
बहुत से लोगों के मन को ये पल चहका देता हैं|
ये बस एक पल नहीं,
ये एक विस्तार हैं|
दिलों के अनकहे उमंगो का,
मानो तो सुंदर सा श्रृंगार हैं|
देखते ही देखते,
कैसे सदियाँ जाती हैं बीत?
हर पल की धड़कनों में,
जैसे झांकता हो पृथ्वी का मनमीत|
सुन्दर योवन लिए,
जैसे गुजरता हो शकुंतला और दुष्यंत का नसीब|
वो पल भी ऐसा ही होगा,
जब दो हंसो का जोड़ा मानसरोवर में दीखता होगा|
रात की चांदनी बिखेरती हैं सपने हज़ार,
हथेली की रेखाओं को चमकाती हैं वो एक बार|
उस पल में चांदनी भी,
कर लेती होगी चाँद का निहार|
जब उड़ते हुए बादलों से,
होती होगी प्यार की बोछार|
ये वक़्त भी मनचला हैं,
युहीं बदलके फिसल जाता हैं|
सारे वक़्त का रखता है हिसाब किताब,
जब भी अंगड़ाई लेता हैं उस एक रात|
आँखों के सामने जाता हैं वक़्त ऐसे गुज़र,
करना चाहो बहुत कुछ होता नहीं उसका कुछ भी असर|
ये जो वक़्त की धारा हैं,
हमे बस बहलाती हैं|
अपने बदलते हुए रूप का,
उस एक पल में एहसास कराती हैं|
वजूद किसका क्या हैं?
बदलते हुए वक़्त की ही तो तरह हैं|
वक़्त किसीके लिए थमता नहीं,
तो वक़्त ही किसीको थमने देता नहीं|
वक़्त की आघोष में,
बितालो सारे लम्हें|
जीते जीते जीते जी,
बन जायेंगे उसके हसीन नगमे|
जब भी वो रात आएगी,
तब वो ही नगमे आस पास गुनगुनाएगें|
इतराओगे तुम उसपे,
जब भी तुम्हें यादें सतायेगी|
यादें भी वो कीमती होगी,
जो उस पल में तुम्हे द्रष्टिगत होगी|
ये पल ही बहुत रोमांचक हैं,
क्या करें प्रतिवर्ष हर वर्ष को जो बदल देता हैं|
ये वो एक पल ही हैं,
जो हर साल रात्री 12 बजे छुपके से आता हैं|
और पूरी कायनात में,
सालों साल हर साल पन्नों की तरह बदल जाता हैं|

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