Source: Mike Wall from Pixabay 

दो बच्चों की मां, 38 वर्षीया रागिनी को आज जब अपना बीता समय याद आता है तो वह यह सोचकर हैरत में पड़ जाती हैं कि क्या वह वही लड़की हैं जो 19 साल की उम्र में कुछ भी नहीं करने वाले एक युवक के साथ घर से भाग गई थीं। रागिनी हंसती हैं और आश्चर्य के अंदाज में खुद से सवाल पूछती हैं, “आज मेरी बुद्धिमानी का सब लोहा मानते हैं, लेकिन उस समय मेरी अक्ल कहां चली गई थी? बाद में मैं न संभली होती और घरवालों ने वापस आने पर मेरा साथ न दिया होता तो आज में इतनी सम्मानित और सुव्यवस्थित जिंदगी नहीं जी रही होती।” आपको बताते चलें कि रागिनी (बदला हुआ नाम) आज एक सफल कामकाजी महिला हैं।

_ _ _ _

40 वर्षीय बीमाकर्मी शैलेश वर्मा को आज इस बात का बड़ा मलाल होता है कि इंटरमीडिएट में उनकी थर्ड डिवीजन आई थी, जबकि हाईस्कूल, बीए और एमए में उन्होंने प्रथम श्रेणी हासिल की थी। वर्मा इस की वजह भी जानते हैं। वजह यह थी कि उस दौरान कुछ दोस्तों की सोहबत में वह अचानक अश्लील साहित्य की तरफ आकर्षित हो गए थे। उस दौरान वह पाठ्यपुस्तकों के बीच अश्लील सामग्री रखकर पढ़ते थे। घर वालों को दिखाने के लिए पढ़ाई के पूरे घंटे पहले जैसे ही थे मगर पढ़ाई में मन बिल्कुल भी नहीं था। वर्मा को भी खुद पर आश्चर्य होता है कि उस समय कैसे वह अचानक दिशा भटक गए थे।

_ _ _ _

प्रतिष्ठित और पुरस्कार प्राप्त अध्यापिका मधु को आज 45 वर्ष की आयु में यह बात सोचकर गुस्सा आता है कि कालेज के दिनों में कैसे वह कालेज के सबसे बिगड़ैल लड़के की तरफ आकर्षित हो गई थीं? वह कैसी उम्र थी जहां अक्ल का कोई जोर नहीं था? जहां आप किधर भी बहक सकते थे। उस समय मधु की सोच थी कि उनका साथ पाकर वह बिगड़ैल युवक सुधर जाएगा, लेकिन हुआ ये था कि मधु और उनके परिवार की भारी बदनामी हुई थी। मधु तब होश में आई थीं जब उनके प्रेमी को उसके विरोधी गैंग ने कालेज में सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया था। तब मधु और उनके परिवार को शहर ही छोड़ना पड़ा था।

_ _ _ _

बैंक अफसर सुरेश महापात्र को आज यह सोचकर हंसी आती है कि कालेज के दिनों में वह अक्सर लड़कियों के कालेज के गेट के बाहर मंडराते रहते थे। जब भी उन्हें आसपास कोई लड़की दिखाई देती थी तो वह कोई न कोई गलत हरकत जरूर करते थे। और कुछ नहीं होता था तो वह बाइक का हार्न ही लगातार बजाने लगते थे। इन्हीं वजहों से एक बार पुलिस ने उन्हें “मजनू पकड़ो अभियान” में धर दबोचा था। घर आने पर पिताजी ने अलग से पिटाई की थी।

_ _ _ _

क्या अजीब उम्र थी वो? उसमें ऐसी क्या खास बात थी, जिसने ऐसी-ऐसी नादानियां कराई, जिन पर बाद में सोचने पर हंसी भी आती है और अफसोस भी होता है। हर व्यक्ति रागिनी, शैलेश, मधु और सुरेश की तरह भाग्यशाली नहीं होता कि गलतियां भी कर दे, भटक भी जाए और बाद में उसकी जिंदगी पर उन गलतियों और भटकाव का कोई असर न पड़े। वास्तव में तो ज्यादातर लोगों के साथ यही होता है कि उस उम्र में की गई गलतियां उनका तमाम जिंदगी पीछा नहीं छोड़तीं और वे जिंदगीभर संभल नहीं पाते।

जी हां, यहां हम 15 से लेकर 25 से कुछ पहले तक की उम्र की बात कर रहे हैं। यह वो उम्र है जब कोई युवा अपने व्यक्तित्व और अपने जिंदगी को जो चाहे दिशा दे सकता है। यही वो उम्र भी होती है जब शरीर में हो रहे या हो चुके तमाम बदलाव उसे तमाम सही-गलत दिशाओं में खींचते हैं। ज्यादातर लोगों की जिंदगी में भटकाव इसी उम्र के दौरान आता है। ऐसे में क्या यह कहा जा सकता है कि यदि हम खुद को 25 साल की उम्र तक संभाल लें तो फिर आगे भटकाव की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है? गंभीरता से विचार करें तो इस सवाल का जवाब हां में नजर आता है।

15 से 25 के बीच की उम्र में हम देखते हैं कि यही वह समय होता है जब कोई युवा अपराध की तरफ उन्मुख होता है। यही वह समय होता है जब वह कोई युवा व्यसन या लत पाल लेता है। यही वह समय होता है जब वह अनुशासनहीन हो जाता है। यही वह समय होता है जब शारीरिक आकर्षण और रोमांस की रहस्यमयी दुनिया, विवेक को नीचे पटककर और भावुकता का सर्वाधिक बल लगाकर, किसी युवा को अपनी ओर खींचती है।

ऐसा नहीं है कि बाद में ये सब चीजें खत्म हो जाती हैं या बाद में इनका जन्म नहीं हो सकता पर 25 साल की उम्र तक आते-आते चीजें बदलने लगती हैं। व्यक्ति पूरी तरह युवा हो जाता है। यहां तक आते-आते युवा ज्यादातर अपना अध्ययन खत्म करने के करीब होता है। व्यक्तित्व में कच्चापन खत्म होने लगता है और परिपक्वता आने लगती है। विपरीत लिंगी आकर्षण तो तब भी प्रबल होता है पर जिंदगी की सच्चाइयां भी समझ में आने लगती हैं। रोमानी विचार खत्म होने लगते हैं और नौकरी या खुद का कोई काम करने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है। स्वछंद विचरना बंद होने लगता है और कंधों पर कुछ जिम्मेदारी का बोझ भी महसूस होने लगता है। बचकानापन खत्म होने लगता है। कुछ वर्ष पहले जो रोमानी फिल्में जीवन का आदर्श सी नजर आती थीं, वो अब हास्यास्पद लगने लगती हैं। खुद को समाज में स्थापित करने का जज्बा उत्पन्न होने लगता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि यदि कोई युवा 25 की उम्र या उसके आसपास तक खुद को गलत दिशा में जाने से संभाल ले तो बाकी जिंदगी में भी भटकाव की आशंका खत्म हो जाती है।

तकनीकी रूप से किशोर अवस्था 12 से 19 वर्ष तक मानी जाती है, लेकिन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कभी-कभी किशोरावस्था 22 वर्ष तक भी विस्तारित हो जाती है। यानी पूर्ण युवावस्था 25 की उम्र या उससे थोड़ा पहले तक ही आ पाती है। किशोर अवस्था सभी प्रकार की मानसिक और शक्तियों के विकास की अवस्था होती है। भविष्य की सारी रूपरेखा किशोर अवस्था और उसके दो-तीन साल बाद तक की अवधि में बनती है। इस अवस्था में एक लड़का या लड़की जो भी सपने देखता या देखती है, भविष्य में वह उसी दिशा में आगे बढ़ता या बढ़ती है।

किशोर अवस्था में व्यक्ति दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहता है, इसलिए दूसरों से कुछ अलग भी करना चाहता है। अक्सर उसे परवाह नहीं होती कि इस अलग करने में वह अच्छा काम कर रहा है या गलत। अपनी तरफ ध्यान खींचने के प्रयास से ही उसमें डींग मारने की प्रवृत्ति भी अधिक पाई जाती है।

किसी व्यक्ति में काम भावना के विकास की भी यही अवस्था होती है। इसी अवस्था में भावनाओं का बहाव भी बहुत तीव्र होता है। इतना तीव्र कि वह अपने साथ विवेक को बहा ले जाता है और व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता कि वह गलत दिशा में चला आया है। कुल मिलाकर यदि इस अवस्था में थोड़ा धैर्य, थोड़ा विवेक और थोड़ी समझदारी जुटा ली जाए तो जिंदगी के सही-गलत दो रास्तों में से निश्चित ही सही रास्ते का चुनाव किया जा सकता है।

.    .    .

Discus