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जिसकी हिफाज़त तुम कर न सके,
वो बेटी अब है इंसाफ़ माँगती।।

ख़ुद पर हुए हर ज़ुल्म का,
वो बेटी अब है हिसाब माँगती।।

हर वक़्त उसे कमज़ोर बता कर,
और कमज़ोर है बनाया तुमने।।

क्यों? आख़िर इस दुनिया से,
लड़ना उसे न सिखाया तुमने।।

कभी मर्यादा तो कभी रिश्तों के बंधनों से,
हर बार आख़िर क्यों? उसे है डराया तुमने।।

वो कमज़ोर नहीं थी सुनलो,
बस हवस में तुम्हारी ज़ोर था।।

वो ख़ामोश नहीं थी लेकिन,
तुम्हारी हैवानियत में ज्यादा शोर था।।

वो लड़ लेती, हाँ वो लड़ लेती,
गर तुम उसे डरना न सिखाते,
अपने झूठे समाज के उसे तुम क़ायदे न बताते।।

ज़ुर्म किसी का होता है और इज़्ज़त उसकी जाती है,
बेशर्मी कोई करता है तो शर्म उसे क्यों आती है।।

आख़िर क्यों? वो सबसे ये कहने में घबराती है,
कि हाँ अन्याय हुआ, हाँ इसने मुझको छुआ है।।

मेरा कोई दोष नहीं, ये बेशर्मी इसकी है,
कि मेरा कोई दोष नहीं, ये बेशर्मी इसकी है।।

नज़रें इसकी गन्दी थीं,
तो लज़्ज़ा फिर मेरी कैसे बिखरी है।।

हाँ जिसको सवालों से घेर लिया तुमने,
वो बेटी अब है तुमसे जवाब माँगती।।

ख़ुद पर हुए जुल्मों का,
वो बेटी अब है तुमसे हिसाब माँगती।।

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