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सपने कभी सच नही होते मैं ये सुनता आया हूँ पर फिर भी सपने देखता आया हूँ । रोज़ की तरह कल रात भी मैं सोने के लिए बिस्तर पर पहुँचा । शायद नींद मुझसे कुछ नाराज़ दिखी इसलिए मैं देश में बढ़ती जनसंख्या से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में गूगल पर पढ़ने लगा और तसवीरें देखने लगा। तस्वीरें देखकर मन भावनाओं के सागर में डूबता चला गया जिसका कोई अंत नही था । मैं स्वयं नही जानता नींद की खामोशी कब टूटी और मुझे अपने साथ ले गयी ।

रास्ते में घूमते घूमते किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी । आवाज़ में एक दर्द था, कराह थी,पुकार थी । मैं उस तरफ चलने लगा, चलते-चलते सामने एक बरगद के पेड़ के नीचे एक पुरुष दिखाई दिया । अंधेरा काफी था, मेरी उत्सुकता मुझे उसके समीप ले गयी। मेरे सामने एक लाचार, शरीर से जर्जर, थका हुआ, चेहरे पे झुर्रियां लिए हुए एक बूढ़ा व्यक्ति खड़ा था। मैंने पूछा - भाई, कौन हो तुम ? उसने उत्तर दिया -"मैं जंतर मंतर हूँ" । मैं एक कदम पीछे हटा, उसने तुरंत मेरा हाथ बहुत तेज़ी से पकड़ लिया और कहा -"मैं जवान होना चाहता हूं , जवानों की तरह आगे बढ़ना चाहता हूं,गिरना चाहता हूं, उठना भी चाहता हूं परंतु रुकना नही चाहता । मैंने पूछा- मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ ? उसने फिर कहा -मैं तुम्हे और तुम्हारे सभी साथियों को अच्छे से जानता हूँ । 

मेरे दरवाजे पर देशभर से लोग आते है अपनी फरियाद लेकर। कुछ को छोड़कर हर किसी में से स्वार्थ की दुर्गंध आती है जिसके कारण मैं और ज़्यादा बीमार होता जा रहा हूँ । उसने फिर आगे कहा-अपने साथियों से कह देना विशेष रूप से मेरे (जंतर मंतर) अनिल भाई से कि मैं वृद्ध हो चला हूँ मगर मैं फिर जवान होना चाहता हूँ । यह तभी संभव है जब इस देश के हर युवा को नौकरी मिलेगी,गरीबी,भुखमरी, भ्रष्टाचार, बाल मजदूरी खत्म होगा, भारत हर क्षेत्र में आधुनिकता की पटरी पे दौड़ेगा, लोगों का जीवन स्तर बढ़ेगा, आर्थिक वृद्धि होगी, कुपोषण मिटेगा, सबके पास रहने के लिए घर होगा, विकास हर क्षेत्र में होगा । यह सब तभी संभव है जब इस देश में बढ़ती जनसंख्या पे नियंत्रण होगा । उसने आगे कहा- मेरा यह भी संदेश देना अपने साथियों को,तुम सब अकेले नही ये जंतर मंतर तुम्हारे साथ है । जंतर मंतर फिर अचानक चुप हो गया । वो हमें उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था । उसकी आँखें नम थी । वो मेरा हाथ अब छोड़ चुका था। नींद भी मुझे अलविदा कह चुकी थी।

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