प्राचीन भारत में महिलाओं और पुरुषों में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता था. परंतु, मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति में गिरावट हुआ और उनको हाशिए पर धकेल दिया गया. समाज में उनके महत्व को नकारा जाने लगा. लेकिन जब हमारा देश आजाद हुआ तब देश के संविधान निर्माताओं ने इसकी सुध ली और संविधान की प्रस्तावना मूलभूत अधिकार व दायित्व तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में समानता एवं महिलाओं को सम्मान प्रदान करने की अवधारणा को अंगीकार किया.

मानव अधिकारों की वकालत करने वाला हमारा संविधान महिला और पुरुष में किसी प्रकार का कोई भेद नहीं करता है. उन दोनों के लिए सामान्य रूप से केवल नागरिक शब्द इस्तेमाल करता है. लेकिन ऐसा होते हुए भी देश के अंदर महिलाओं के प्रति समाज का दृष्टिकोण नहीं बदला. कार्यस्थल से लेकर घरों तक महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और बुरा व्यवहार आज भी जारी है. ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा के लिए किसी ऐसे कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी जो उनके अधिकारों की संरक्षा की घोषणा स्पष्ट रूप से करता हो. तभी घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 अस्तित्व में आई.

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005.

इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण का अधिनियम, 2005 है.

यह जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होता है.

इस कानून में निहित सभी प्रावधानों का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिये यह समझना ज़रूरी है कि पीड़ित कौन होता है. यदि आप एक महिला हैं और रिश्तेदारों में कोई व्यक्ति आपके प्रति दुर्व्यवहार करता है तो आप इस अधिनियम के तहत पीड़ित हैं.

चूंकि इस कानून का उद्देश्य महिलाओं को रिश्तदारों के दुर्व्यवहार से संरक्षित करना है, इसलिये यह समझना भी ज़रूरी है कि घरेलू रिश्तेदारी या संबंध क्या है? ‘घरेलू रिश्तेदारी’ का आशय किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच के उन संबंधों से है, जिसमें वे या तो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या पहले कभी रह चुके होते हैं.

घरेलू हिंसा क्या है?

कोई भी ऐसा व्यवहार जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन के संकट, आर्थिक नुकसान और ऐसी किसी भी प्रकार के नुकसान जो असहनीय हो और जिससे उन्हें दुःख एवं बेइज्जत होना पड़े तो ये घरेलू हिंसा के दायरे में आएंगे.

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3 (ए) और धारा 3 (बी) का सम्मिलित प्रभाव यह है कि घरेलू सीमा में रहने वाली प्रत्येक महिला चाहे विवाहित महिला हो या अन्य कोई महिला यदि धारा 3(ए) और 3(बी) में उल्लेखित चीजों से प्रभावित होती है तो वह पीड़िता की श्रेणी में आकर ऐसा करने वाले के विरुद्ध एक्शन ले सकती है. खंड ए और खंड बी में वर्णित किसी भी आचरण द्वारा पीड़िता को या उसके रिश्तेदारी वाले किसी व्यक्ति को धमकी देने का प्रभाव रखता है. पीड़ित व्यक्ति को अन्यथा नुकसान पहुंचाने चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक.

आपको बता दें कि घरेलू हिंसा अधिनियम से पहले विवाहित महिला के पास परिवार द्वारा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताडि़त किये जाने की दशा में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498(ए) के तहत शिकायत करने का प्रावधान था. विवाहित महिलाओं के साथ उनके पति व पति के रिश्तेदार या नाते तारों द्वारा क्रूरता के मामलों पर दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में वर्ष 1983 में हुए संशोधन के बाद धारा 498 (ए) जोड़ी गई.

यह एक गैर-जमानती धारा है, जिसके अंतर्गत प्रतिवादियों की गिरफ्तारी तो हो सकती है पर पीडि़त महिला को भरण-पोषण अथवा निवास जैसी सुविधा दिये जाने का प्रावधान शामिल नहीं है. वहीं घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत प्रतिवादियों की गिरफ्तारी नही होती है लेकिन इसके अंतर्गत पीडि़त महिला को भरण-पोषण, निवास एवं बच्चों के लिये अस्थायी संरक्षण की सुविधा का प्रावधान किया गया है.

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