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प्राचीन काल और नारी का अस्तित्व

पुरानी रूढ़िवादी धारणा के कारण उन्हें कोख में या जन्म लेने के बाद अनाथ छोड़ दिया जाता है इसके बाद भी नारी की मुश्किलें कम नहीं होती है यदि वह जन्म भी लेती है शिक्षा ग्रहण करती है ,तो उसे यह कहा जाता है कि “तू पढ़ लिख कर क्या करेगी तुझे तो पराए घर जाकर बस अपने ग्रहस्थ जीवन को सवारना है ” हर समय उसे आलोचना सहनी पड़ती है | “मैं यही पूछती हूं कि पुरुषों को क्या अधिकार मिल गया ? वह हर समय अपनी गंदी सोच से छेड़छाड़, छींटाकशी करते हैं आए दिन लड़कियों को इन सब वेदना से तार-तार होना पड़ता है और अगर लड़की आवाज उठाती है तो उसकी आवाज को दबाने वाले बहुत आगे आ जाएंगे परंतु उसकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं होगा और यहां लड़की की स्वतंत्रता नहीं खत्म होती, क्योंकि यदि वह पढ़ाई या कार्य लिए थोड़ा अधिक समय घर से बाहर रहते लोग बातें करने लगते है कि, लड़की के चाल चलन ठीक नहीं लोग यह नहीं देखते की लड़की अपने लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए परेशानी झेल रही है|हम यह तो कह सकते कि, समाज आधुनिक हो रहा है परंतु लोगों की सोच आधुनिक कभी नहीं होगी और जो लोग नारी के सम्मान की बात करते हैं वे लोग ही उनके तिरस्कार के सूचक होते है|

नारी का सम्मान या बहसबाजी का खेल

नारी के सम्मान की हमेशा से बात की जाती है कहा जाता है कि नारी की सुरक्षा इस देश की जिम्मेदारी है यदि महिलाओं को सम्मान दिया जाएगा तभी देश का विकास संभव है |परंतु क्या सच में नारी को सम्मान व सुरक्षा मिल रही है ,देश और समाज मे मुख्य मुद्दे जिसमें महिलाओं की सुरक्षा का होना प्रमुख है|वही देश और समाज के नागरिक बस एक फिल्म के प्रदर्शन पर छोटे से कारण पर बहस बाजी व तोड़फोड़ करते हैं ,वही इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाते हैं और कहते हैं कहानी के इस पहलू से हमारे धर्म, आस्था को ठेस पहुंची है यह ठेस इन नागरिकों वह समुदाय को तब नहीं पहुंचती जब एक नारी तिरस्कार वह दर्द झेल रही होती है|

बस एक बार निर्भया केस को प्रमुखता से पेश करने वह उसके लड़ने से मामले कम नहीं होंगे केवल कदम उठाना ही काफी नहीं नियम सख्त करना होगा जो न्यायपालिका वह देश के कानून कभी नहीं होने देंगे|

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