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प्रेम का नहीं है कोई फ़साना।
क्या सुनाऊँ तुम्हे इसका तराना।।

खिलना मुरझाना तो तेरे हाथ में ही था।
प्रेम का हाथ पकड़कर, नफरत को हराना भी तेरे हाथ में ही था।।

प्रेम का धागा संजोना भी तेरे हाथ में ही था।
तोड़ कर गाँठ लगाना भी तेरे हाथ में ही था।।

प्रेम से स्नेह फैलाना भी तेरे हाथ में ही था।
नफरतों का जाल भी तेरे हाथ में ही था।।

कोमलता से प्रेम के पुष्प संजोना भी तेरे हाथ में ही था।
असभ्यता का पाठ पढ़ाना भी तेरे हाथ में ही था।।

बादलों से सीख धरती के लिए प्रेम।
इंसान तो उलझा खेल कर मजहबों का गेम।।

जीतने का अनुभव भी तेरे दिल में ही है।
बशर्ते घृणा का अनुभव रोक ले ग़ालिब।।

भगवान और ईमान का प्रेम तेरे हाथ में ही था।
लेकिन इंसान को इंसान में इंसान न मिला तो ये तेरा नसीब न था।।

इंसान को उसकी कीमत समझाना भी जरूरी था।
प्रेम का पाठ पढ़ाना भी जरूरी था।।

करने लगा था अपनी हैसियत पर गुमान।
एकता की एहमियत समझाना भी जरूरी था।।

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