"बहुत भुख लगी है"
चलपती ने कहा पत्नी पद्मावती से।
"देखती हूं, कुछ फल दूध है कि नहीं"
तब हाल से निकलने लगी प्याज और लहसुन की मजेदार खुशबू। चलपति की मूंह से पानी टपकने लगा। अपने रसनेंद्रियों को उस स्वाद का अनुभव उन्होंने देना चाहा।
पद्मा ने कहा "उस में प्याज लहसुन मिले हैं, हमें न भायेगा। कुछ तो ज़रूर रखा होगा, किश्मिश या काजू बादाम।
"आज शाम को तो कुछ भी नहीं रखा गया।"
"सुबह को क्या रखा था?"
"सिर्फ केले, और कुछ नहीं। दो तीन दिनों से ही घर में खाना नहीं बनरहा। लगातार दावत, हमें भूल चुके, तुमने कहां गौर किया? तुम् तो दुनियादारी की चक्कर में पडी रहती हो। हजारों लोगों की बुलावों का उत्तर देना पड़ता है।"
तभी दरवाजा खुला, नन्ही कुमुद भीतर आई। उसके हाथ में पीत्जा।
कुमुद ने अपनी नन्ही सी हाथ बढाई और तोतली बोली में कहने लगी, "भगवान, दादी ने कहा है, कुछ भी खाने के पहले देव और देवी को समर्पित करना है", कहते हुए बच्ची ने वेंकtaचलपति और पद्मावती माता को पीटसा समर्पित किया।
भगवान और भगवती दोनों मुस्कराए।