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प्रतिबिंब तुम्हारा ह्रदय पटल पर
सरल-सहज प्रदीप्त तरल पर,
नीरव उनींदित श्याम पट्ट पर
तुमने जीवित रंग उभारे,
व्याकुल निशि प्रियदर्शन को-
मध्यरात्रि शशि ! पुकारे

गहन-विपिन ,तम, घोर-निराशा
अनिद्र-नयन भयनाद सहसा,
कर विनयपत्र स्वीकार निशाकर
चंद्रप्रभा उत्संग फैलाकर-
तमा निहारे आलिंगन को,
चंद्रमुख सम्मुख खिल आये-
मिले संतृिप्त अन्तर्मन को

रजत -विभूषण हस्त-बंध
रातरानी मनोहर गंध,
कर ह्रदय समर्पण निशि-निशाकर
प्रेमपान क्षितिज मे आकर;
यौवन दमका करधानी छनकीं
देख निशाकर की चक्षु ठिठकीं,
विरह करें रसगान किया युगल ने प्रस्थान,
उमंगों भरा ललित आसमान ।

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