Source: Vânia Raposo from Pixabay 

माँ देह मे तो छोड़ देती है साथ
पर जाने कैसे रहती है आस-पास
अकसर याद आ जाती है
देखा ना , साबुत मटर मे,
कड़ाही मे बनते डंठल मे
आचार के लसौड़े मे
और तो और तोरी के छिलके मे ।
दे गयी है अनगिनत अनुभूति,अहसास
तभी तो सदा रहती है दिल के पास
आज भी अनजान पलते बचपन मे
अपनी ही माँ दिखती है ।
पिता के बिना अधूरी है वो
तभी तो पिता मे माँ की छवि दिखती है।

Digital Artwork: by Shruti Sinha

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