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चंदा रे चंदा आजा सुनाऊं तेरी कहानी
कान्हा की ज़िद पर जसोदा माँ ने तुझे
थाली मे था दिखाया।
रोते हुये मुन्ना मुन्नी को माँ ने लोरी मे सुनाया
फिर बूढी माँ द्वारा चश्मे मे चरखा कातना था बताया
फुर्सत मे देखते तो चश्मा, चरखा बूढी माँ को ढूंढते थे
पर वैज्ञानिक के जिज्ञासु मन को तो देखो
उसने तो चन्द्रयान एक, दो और तीन बनाया
और पृथ्वी के बेटे विक्रम को तुझ तक पहुँचाया
तूने भी तो प्रीत की क्या खूब रीत निभाई है
विक्रम की चारो टाँगे अपनी सतह पर जमवाई है
पता है तेरी खातिरदारी मे कोई कमी ना होगी
और तमाम नयी जानकारी अपने विक्रम को मिलेगी
तेरी इस उदारता का तहेदिल से शुक्रिया ।।

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