नारायण की सुधा है वो,वो जब बोले मिश्री घोले
अपने रोचक से किस्सों से हम सबका मन मोह लेती है
कभी भौचक्के ,कभी हँसते है कभी लोटपोट हो जाते है
अपने घर की सी लगती है,इन्फोसिस की अध्यक्षिका है
सादगी प्रिय,स्पष्टवादी है,वो लिखती है वो पढ़ती है
सदा व्यस्त व्यस्त वो रहती है जनसेवा मे रत रहतीं है
देखो कितनी सरल है वो, तभी तो आनन्दित दिखती है
शान्ति,,ताज़गी और खुशी उनके चेहरे पर दिखती है
गम्भीर विषय पर कड़क है ,असंभव को संभव करती है
देश की पहली महिला इन्जीनियर का दम वो भरती है
उन्नत शिखर पर होकर भी, धरातल की बात वो करती है
पद्म भूषण से नवाज़ी गयी परोपकार बस करती है।
कविता को रूप यह देने को 'श्री'और 'जी'सब छूट गये
श्री नारायण मूर्ति जी की सुधा मूर्ती जी है वो
सब अदब ये कैसे मुझसे छूट गये...